"हिस्टीरिया": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "ज्यादा" to "ज़्यादा") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "मौका " to "मौक़ा ") |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
ऐसे ही एक पति-पत्नी की आपस मे बनती नहीं है तो पत्नी ना तो अपने पति को समाज के मारे छोड़ सकती है और ना ही उसे कुछ कह सकती है। इसी कारण वो मन ही मन मे कुढ़ते हुए हिस्टीरिया रोग की शिकार हो सकती है जहां बीमारी के बहाने उसका बैचेन मन एक ओर तो उसके पति से बदला लेने लगता है दूसरी ओर खुद ही उसके मन को राहत मिलने लगती है। बैचेन मन की ये दबी हुई इच्छा उसको पूरी तरह यौन सन्तुष्टि ना मिलने के कारण भी हो सकती है और इसे लेकर मन की अपराधी भावना भी कि उसे ये इच्छा सताती ही क्यों है वह तो यह चाहती ही नहीं। | ऐसे ही एक पति-पत्नी की आपस मे बनती नहीं है तो पत्नी ना तो अपने पति को समाज के मारे छोड़ सकती है और ना ही उसे कुछ कह सकती है। इसी कारण वो मन ही मन मे कुढ़ते हुए हिस्टीरिया रोग की शिकार हो सकती है जहां बीमारी के बहाने उसका बैचेन मन एक ओर तो उसके पति से बदला लेने लगता है दूसरी ओर खुद ही उसके मन को राहत मिलने लगती है। बैचेन मन की ये दबी हुई इच्छा उसको पूरी तरह यौन सन्तुष्टि ना मिलने के कारण भी हो सकती है और इसे लेकर मन की अपराधी भावना भी कि उसे ये इच्छा सताती ही क्यों है वह तो यह चाहती ही नहीं। | ||
इस तरह भविष्य मे कुछ बनना, काबिल व्यक्ति को ऊंचा उठने की लालसा, जब पूरी नहीं हो पाती तो आर्थिक सामाजिक स्थितियां या कर्त्तव्य की कोई आवाज उन्हे रोकती है और ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से इस बाधा या अभाव को स्वीकार भी नहीं कर पाते तो अवचेतन को | इस तरह भविष्य मे कुछ बनना, काबिल व्यक्ति को ऊंचा उठने की लालसा, जब पूरी नहीं हो पाती तो आर्थिक सामाजिक स्थितियां या कर्त्तव्य की कोई आवाज उन्हे रोकती है और ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से इस बाधा या अभाव को स्वीकार भी नहीं कर पाते तो अवचेतन को मौक़ा मिलता है किसी दूसरे रास्ते से इस दबी इच्छा या भावना को निकालने का। | ||
इस तरह रोगी को दिमागी रूप से बीमारी के दो अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं एक मै बीमार हूं इसलिए मै ये काम नहीं कर सकता, यह सन्तोष प्राथमिक लाभ है तथा इस माध्यम से रोगी को अगर कुछ सहानभूति मिलने लगती है तो ये दूसरे दर्जे का लाभ है। इस लाभ को लेने बैचेन मन इस ओर चल पड़ता है और हिस्टीरिया अपने विविध लक्षणों और रूपों मे प्रकट होने लगता है। भूत आते हो, देवता आते हो, या बेहोशी के साधारण दौरे पड़ते हैं इसलिए शरीर के किसी ख़ास अंग मे अगर कोई कमज़ोरी महसूस होती है, रोगी अपनी पहले की कमज़ोरी से, पहले की कल्पना से, जोड़कर और किसी को देखकर अवचेतन रूप से सुझाव ग्रहण कर वैसे ही करने लगता है। जैसे आंख अगर पहले कमज़ोर है और रोगी को इसका अहसास है तभी वो आंख से ना दिखाई देने का सुझाव ग्रहण करेगा और तब सचमुच उसे अंधेपन का एहसास होगा। इसी तरह मन की कमज़ोरी रहने पर किसी तरह के मानसिक आघात से बोलने या हाथ-पैर हिलाने की ताकत कुछ समय के लिए रूक सकती है। अगर शरीर के ऐसे लक्षणों के कारण जांच मे नहीं मिलते तो उसे हिस्टीरिया रोग कहते हैं। ये स्थिति कुछ समय के लिए ही होती है। पर अगर समय रहते इलाज ना किया जाए तो ये कंपन, लकवा जैसे लक्षण कभी-कभी हमेशा के लक्षणों मे बदल सकते हैं। इसलिए इस रोग का इलाज करवाने के बाद रोगी को दिमागी डॉक्टर की देखरेख में पूरा इलाज करवाना चाहिए। | इस तरह रोगी को दिमागी रूप से बीमारी के दो अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं एक मै बीमार हूं इसलिए मै ये काम नहीं कर सकता, यह सन्तोष प्राथमिक लाभ है तथा इस माध्यम से रोगी को अगर कुछ सहानभूति मिलने लगती है तो ये दूसरे दर्जे का लाभ है। इस लाभ को लेने बैचेन मन इस ओर चल पड़ता है और हिस्टीरिया अपने विविध लक्षणों और रूपों मे प्रकट होने लगता है। भूत आते हो, देवता आते हो, या बेहोशी के साधारण दौरे पड़ते हैं इसलिए शरीर के किसी ख़ास अंग मे अगर कोई कमज़ोरी महसूस होती है, रोगी अपनी पहले की कमज़ोरी से, पहले की कल्पना से, जोड़कर और किसी को देखकर अवचेतन रूप से सुझाव ग्रहण कर वैसे ही करने लगता है। जैसे आंख अगर पहले कमज़ोर है और रोगी को इसका अहसास है तभी वो आंख से ना दिखाई देने का सुझाव ग्रहण करेगा और तब सचमुच उसे अंधेपन का एहसास होगा। इसी तरह मन की कमज़ोरी रहने पर किसी तरह के मानसिक आघात से बोलने या हाथ-पैर हिलाने की ताकत कुछ समय के लिए रूक सकती है। अगर शरीर के ऐसे लक्षणों के कारण जांच मे नहीं मिलते तो उसे हिस्टीरिया रोग कहते हैं। ये स्थिति कुछ समय के लिए ही होती है। पर अगर समय रहते इलाज ना किया जाए तो ये कंपन, लकवा जैसे लक्षण कभी-कभी हमेशा के लक्षणों मे बदल सकते हैं। इसलिए इस रोग का इलाज करवाने के बाद रोगी को दिमागी डॉक्टर की देखरेख में पूरा इलाज करवाना चाहिए। |
13:21, 24 मार्च 2012 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
परिचय
हिस्टीरिया (HYSTERIA) (गुल्म-रोग / गुल्यवायु) रोग `न्यूरोसिस´ की ही एक किस्म है इसलिए इसे दिमागी बीमारी कहते हैं। हिस्टीरिया का रोग ज़्यादातर स्त्रियों को होने वाला एक दिमागी रोग होता है। इसको स्त्रियों का मानसिक रोग भी कहा जाता है। यह रोग 15-20 साल की युवतियों को अधिक होता है। हिस्टीरिया रोग में स्त्रियों को मिर्गी के समान ही बेहोशी के दौरे आते हैं।
लक्षण
जब हिस्टीरिया होता है, तो इसमें रोगी अचेत अवस्था में पहुंच जाता है। हिस्टीरिया रोग में सिर्फ रोगी को बेहोशी के दौरे ही नहीं पड़ते बल्कि कभी-कभी दूसरे लक्षण भी सामने आते हैं जैसे - हिस्टीरिया का दौरा पड़ने पर कुछ समय के लिए देखना और सुनना बन्द हो जाना, मुंह से आवाज ना निकलना, हाथ-पैरों का कांपना, शरीर का कोई भी हिस्सा बिल्कुल सुन्न पड़ जाना जैसा लकवे मे होता है। इसमें रोगी विभिन्न प्रकार की कुचेष्टायें यानी अजीब कार्य करने लगता है।
हिस्टीरिया रोग के होने पर रोगी स्त्री का जी मिचलाने लगता है, सांस कभी धीरे और कभी तेज चलने लगती है तथा बेहोशी छा जाती है। पीड़ित स्त्री के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और उसके चेहरे की आकृति बिगड़ने लगती है। इस रोग से पीड़ित स्त्री अपने दिमाग पर काबू नहीं रख पाती है और अचानक हंसने लगती है और अचानक ही रोने लगती है। वह बिना किसी कारण से चिल्लाने लगती है और कोई-कोई रोगी इसमें मौन या चुप भी पड़ा रहता है। इस रोग से पीड़ित स्त्रियां कुछ बड़बड़ाने लगती है और दूसरों को मारने-पीटने लगती है और कभी चीख के साथ जमीन पर गिर जाती है। कभी बैठे-बैठे बेहोश होकर गिर पड़ती है। रोगी स्त्री को ऐसा लगता है कि वो कितनी ताकतवर है लेकिन दूसरे ही पल ऐसा महसूस होता है कि उसके शरीर में जान ही नहीं है। उसको परेशान करने वाली डकारें और हिचकी शुरू हो जाती है, आवाज में खराबी पैदा हो जाती है, पेशाब बन्द हो जाता है।
इस रोग में पूरी तरह से बेहोश नहीं होती है। बेहोशी की हालत समाप्त हो जाने पर स्त्री को खुलकर पेशाब आता है। इस रोग की उत्पत्ति से पूर्व या आरम्भ में हृदय में पीड़ा, जंभाई, बेचैनी आदि लक्षण भी होते हैं। इस रोग से पीड़ित स्त्री को सांस लेने में कठिनाई, सिर, पैर, पेट और छाती में दर्द, गले में कुछ फंस जाने का आभास, शरीर को छूने मात्र से ही दर्द महसूस होता है, आलसी स्वभाव, मेहनत करने में बिल्कुल भी मन ना करना, रात में बिना बात के जागना, सुबह देर तक सोते रहना, भ्रम होना, पेट में गोला सा उठकर गले तक जाना, दम घुटना, थकावट, गर्दन का अकड़ना, पेट में अफारा होना, डकारों का अधिक आना और हृदय की धड़कन बढ़ जाना, साथ ही लकवा और अंधापन हो जाना आदि हिस्टीरिया के लक्षण हैं। इस रोग से पीड़ित स्त्री को प्रकाश की ओर देखने में परेशानी होने लगती है। जब स्त्री को इस रोग का दौरा पड़ता है तो उसका गला सूखने लगता है और वह बेहोश हो जाती है।
कारण
हिस्टीरिया रोग कई कारणों की वजह से होता है। हिस्टीरिया के रोग का कारण अधिक चिंता और मानसिक तनाव होता है। स्त्रियों को हिस्टीरिया का रोग किसी तरह के सदमे, चिन्ता, प्रेम में असफलता, मानसिक दु:ख और किसी दुख का गहरा आघात होने से अधिक होता है। स्त्रियों की यौन-उत्तेजना बढ़ने के कारण भी हिस्टीरिया रोग के लक्षण पैदा हो जाया करते हैं। बहुत सी स्त्रियों को जरायु (गर्भावस्था) में विकार या गर्भाशय या डिम्बकोष में गड़बड़ी होने के कारण भी हिस्टीरिया रोग हो जाया करता है। स्नायु-मंडल की क्रिया में किसी तरह के विकार (स्नायुविक कमज़ोरी) उत्पन्न होने के कारण से भी यह रोग हो सकता है। किसी तरह के अपने मनोभावों को व्यक्त न कर पाने के कारण भी यह गुल्मवायु या हिस्टीरिया रोग हो जाता है।
मासिक स्राव का सही समय पर न होना, मासिक स्राव होने के समय बहुत अधिक कष्ट (दर्द) होना, विवाह के लिए उम्र हो जाने पर भी युवती की शादी न होने पर, सेक्स क्रिया करते समय पूरी तरह से संतुष्ट न होने पर, योनि और गर्भाशय के अंदर सूजन आदि के रोग होने से तथा डर, दिमागी आघात, शोक और शरीर की कमज़ोरी की वजह से भी हिस्टीरिया का रोग अधिकतर स्त्रियों को हो जाता है। यह रोग उन स्त्रियों को भी हो जाता हो, जो विधवा हो जाती है तथा उन शादीशुदा स्त्रियों को भी यह रोग हो जाता है जिनके पति विदेश चले जाते हैं।
अगर रोगी के साथ कोई बड़ी दुर्घटना हुई है और वह उसे भुलाने की कोशिश कर रहा हो पर न भुला पाए तो भी उसे हिस्टीरिया का रोग हो सकता है। अगर किसी युवती को संभोग करने की इच्छा होती है और बार-बार किसी कारण से उसे अपनी इस इच्छा को दबाना पड़ता हो तथा जिनकी संभोग (सेक्स की इच्छा पूरी नहीं होती) के प्रति इच्छा पूर्ण नहीं होती है और वह हीनभावना से ग्रस्त हो जाती है तो उसे हिस्टीरिया का रोग हो सकता है। हिस्टीरिया रोग दूसरे कई रोगों के के कारण भी हो सकता है जैसे- कब्ज बनना, मासिक धर्म संबन्धी कोई आदि। इसके अलावा वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के बीच अक्सर नोक-झोंक लगी रहना भी हिस्टीरिया रोग का कारण हो सकता है तथा जो अपने पति से कलेश या नफरत करती है।
हिस्टीरिया और मिर्गी में अंतर
अक्सर लोग हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरे मे अन्तर नहीं समझ पाते। मिर्गी के दौरे में रोगी को अचानक दौरा पड़ता है, रोगी कहीं पर भी रास्ते में, बस में, घर पर गिर जाता है, उसके दांत भिंच जाते हैं जिससे उसके होठ और जीभ भी दांतों मे आ जाते हैं जबकि हिस्टीरिया रोग मे ऐसा नहीं होता है रोगी को हिस्टीरिया का दौरा पड़ने से पहले ही महसूस हो जाता है और वो कोई सुरक्षित सा स्थान देखकर वहां पर लेट सकता है, उसके दांत भिचने पर होठ और जीभ दांतों के बीच मे नहीं आती। पर हाथ-पैरों का अकड़ना दोनों ही मे एक ही जैसा होता है लेकिन मिर्गी के दौरे का समय अनिश्चित नहीं होता, हिस्टीरिया में ये कम या ज़्यादा हो सकता है। हिस्टीरिया में लक्षण भी बदलते रहते हैं। हिस्टीरिया के रोगी को अमोनिया आदि सुंघाने पर दौरा खुलकर दुबारा भी आ सकता है। रोगी को दौरा आने पर ज़्यादा परेशान करना या छेड़ना ठीक नहीं है यह दौरा खुलकर दोबारा भी आ सकता है। रोगी को दौरे के समय ज़्यादा परेशान नहीं करना चाहिए। दौरा पड़ने पर रोगी के कपड़े ढीले कर देने चाहिए और उसके शरीर को हवा लगने दें। जैसे-जैसे दौरा खत्म होगा तो रोगी खुद ही धीरे-धीरे खड़ा हो जाएगा। कमज़ोरी महसूस होने पर रोगी को गर्म चाय या कॉफी पिला सकते हैं। पर ये इलाज कुछ समय के लिए ही होता है। हिस्टीरिया के रोगी को दिमाग के डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। बहुत से लोग हिस्टीरिया के दौरे को भूत-प्रेत का मामला मानते हैं पर इसके पीछे भी दिमागी कारण अक्सर एक ही जैसे होते हैं और तान्त्रिको के द्वारा जो चिकित्सा की जाती है वो भी कुछ समय के लिए ही होती है। पर भूत-प्रेत वाली स्थिति को भी हम हिस्टीरिया रोग के मामले मे केवल अंधविश्वास या झूठ नहीं मान सकते। रोगी इन लक्षणों को देखकर कहीं से सुझाव के रूप मे अपना लेता है।
जानकारी
कुछ लोग सोचते हैं कि स्त्रियों के मन में यौन भावना को दबाने के कारण हिस्टीरिया रोग हो जाता है पर ये बिल्कुल गलत है, माना ये एक दबाव हो सकता है पर बहुत सारे दबावों में से एक। केवल यौन भावना को दबा देना हिस्टीरियां के रोगियों के लिए सही बात नहीं होगी। इसकी वजह से उन्हे गलत समझ लिया जाएगा जिससे उनको मानसिक तौर पर काफ़ी परेशानी सहनी पड़ती है जिसके कारण उनका रोग और भी बढ़ सकता है।
हिस्टीरिया रोग में रोगी के मन मे कोई दबी हुई इच्छा रह सकती है जिसे ना तो रोगी किसी को बता सकता है और ना ही मन मे दबा सकता है। अगर बच्चें को अपने मां-बाप से कोई शिकायत है तो ना तो वो अपने मां-बाप से बोलकर बात ना मनवा सकते हैं और ना ही उनसे कुछ कह सकते हैं पर वो इस बात के दबाव मे आकर हिस्टीरिया रोग के शिकार हो जाते हैं।
ऐसे ही एक पति-पत्नी की आपस मे बनती नहीं है तो पत्नी ना तो अपने पति को समाज के मारे छोड़ सकती है और ना ही उसे कुछ कह सकती है। इसी कारण वो मन ही मन मे कुढ़ते हुए हिस्टीरिया रोग की शिकार हो सकती है जहां बीमारी के बहाने उसका बैचेन मन एक ओर तो उसके पति से बदला लेने लगता है दूसरी ओर खुद ही उसके मन को राहत मिलने लगती है। बैचेन मन की ये दबी हुई इच्छा उसको पूरी तरह यौन सन्तुष्टि ना मिलने के कारण भी हो सकती है और इसे लेकर मन की अपराधी भावना भी कि उसे ये इच्छा सताती ही क्यों है वह तो यह चाहती ही नहीं।
इस तरह भविष्य मे कुछ बनना, काबिल व्यक्ति को ऊंचा उठने की लालसा, जब पूरी नहीं हो पाती तो आर्थिक सामाजिक स्थितियां या कर्त्तव्य की कोई आवाज उन्हे रोकती है और ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से इस बाधा या अभाव को स्वीकार भी नहीं कर पाते तो अवचेतन को मौक़ा मिलता है किसी दूसरे रास्ते से इस दबी इच्छा या भावना को निकालने का।
इस तरह रोगी को दिमागी रूप से बीमारी के दो अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं एक मै बीमार हूं इसलिए मै ये काम नहीं कर सकता, यह सन्तोष प्राथमिक लाभ है तथा इस माध्यम से रोगी को अगर कुछ सहानभूति मिलने लगती है तो ये दूसरे दर्जे का लाभ है। इस लाभ को लेने बैचेन मन इस ओर चल पड़ता है और हिस्टीरिया अपने विविध लक्षणों और रूपों मे प्रकट होने लगता है। भूत आते हो, देवता आते हो, या बेहोशी के साधारण दौरे पड़ते हैं इसलिए शरीर के किसी ख़ास अंग मे अगर कोई कमज़ोरी महसूस होती है, रोगी अपनी पहले की कमज़ोरी से, पहले की कल्पना से, जोड़कर और किसी को देखकर अवचेतन रूप से सुझाव ग्रहण कर वैसे ही करने लगता है। जैसे आंख अगर पहले कमज़ोर है और रोगी को इसका अहसास है तभी वो आंख से ना दिखाई देने का सुझाव ग्रहण करेगा और तब सचमुच उसे अंधेपन का एहसास होगा। इसी तरह मन की कमज़ोरी रहने पर किसी तरह के मानसिक आघात से बोलने या हाथ-पैर हिलाने की ताकत कुछ समय के लिए रूक सकती है। अगर शरीर के ऐसे लक्षणों के कारण जांच मे नहीं मिलते तो उसे हिस्टीरिया रोग कहते हैं। ये स्थिति कुछ समय के लिए ही होती है। पर अगर समय रहते इलाज ना किया जाए तो ये कंपन, लकवा जैसे लक्षण कभी-कभी हमेशा के लक्षणों मे बदल सकते हैं। इसलिए इस रोग का इलाज करवाने के बाद रोगी को दिमागी डॉक्टर की देखरेख में पूरा इलाज करवाना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
- किसी स्त्री में हिस्टीरिया रोग के लक्षण नज़र आते ही उसे तुरन्त किसी मनोचिकित्सक से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
- हिस्टीरिया के रोगी को गुस्से में या किसी और कारण से मारना नहीं चाहिए क्योंकि इससे उसे और ज़्यादा मानसिक और शारीरिक कष्ट हो सकते हैं।
- एक बात का ख़ासतौर पर ध्यान रखना चाहिए कि हिस्टीरिया रोगी अपने आपको किसी तरह का नुकसान ना पहुंचा पाए।
- इस रोग के रोगी की सबसे अच्छी चिकित्सा उसकी इच्छाओं को पूरा करना तथा उसे संतुष्टि देना है। इसके अलावा रोगी को शांत वातावरण में घूमना चाहिए। रोगी के सामने ऐसी कोई बात न करनी चाहिए जिससें उसे चिन्ता सतायें।
- इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को जब दौरा पड़ता है तो उसके शरीर के सारे कपड़े ढीले कर देने चाहिए तथा उसे खुली जगह पर लिटाना चाहिए और उसके हाथ और तलवों को मसलना चाहिए।
- जब इस रोग से पीड़ित रोगी बेहोश हो जाए तो उसके अंगूठे के नाखून में अपने नाखून को चुभोकर उसकी बेहोशी को दूर करना चाहिए और फिर उसके चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारनी चाहिए। इससे रोगी स्त्री को होश आ जाता है और उसका बेहोशीपन दूर हो जाता है।
- जब रोगी स्त्री बेहोश हो जाती है तो हींग तथा प्याज को काटकर सुंघाने से लाभ मिलता है।
- बेहोश होने वाली स्त्री को होश में लाने के लिए सबसे पहले रोगी की नाक में नमक मिला हुआ पानी डाल दें। इससे बेहोशी रोग ठीक हो जाएगा, लेकिन यह उपाय शीघ्र ही और कुछ ही समय के लिए है। इसका अच्छी तरह से इलाज तो अपने डाक्टर या अपने वैद्य से ही कराना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित स्त्री का इलाज करने के लिए कुछ दिनों तक उसे फल तथा बिना पका हुए भोजन खिलाना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए जामुन का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है। इसलिए रोगी स्त्री को प्रतिदिन जामुन खिलाना चाहिए।
- यदि इस रोग से पीड़ित स्त्री प्रतिदिन 1 चम्मच शहद को सुबह-दोपहर-शाम चाटे तो उसका यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- केसर, कज्जली, बहेड़ा, कस्तूरी, छोटी इलायची, जायफल और लौंग को बराबर मात्रा में मिलाकर 7 दिन तक सौंफ के काढ़े में मिलाकर और घोटकर तैयार कर लें। इसके बाद इस मिश्रण को तैयार करके इलायची के दाने के बराबर की गोलियां बना लें। 4-4 ग्राम मूसली सफेद तथा सौंफ के काढ़े से सुबह और शाम सेवन करना चाहिए। अगर मासिकस्राव के समय में कोई कमी हो तो सबसे पहले ऊपर बताई गई दवा से इलाज करें।
- यह रोग कई बार रक्त की कमी के हो जाने के कारण से भी जाता है। हिस्टीरिया रोग के होने पर रोगी स्त्री को लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग के बराबर लोह भस्म को एक चम्मच के बराबर शहद में मिलाकर सुबह और शाम के समय में चटा दें और फिर ऊपर से 10-12 ग्राम मक्खन तथा मलाई के साथ खिला दें। इसके साथ दाल, रोटी, दूध, मलाई, घी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- हिस्टीरिया की रोगी स्त्री को कुछ दिन के लिए किसी ठण्डे स्थान पर ले जाना अच्छा होता है।
- हिस्टीरिया रोग अक्सर ज़्यादा पेशाब करने से ही कम हो जाता है इसलिए इस रोग की स्त्री को बार-बार पेशाब कराने की कोशिश कराते रहना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को सकारात्मक सोच रखनी चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
- इस रोग को ठीक करने के लिए स्त्रियों को योगनिद्रा का अभ्यास करना चाहिए।
- हिस्टीरिया रोग को ठीक करने के लिए स्त्रियो को प्रतिदिन ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद वायु स्नान और फिर धूपस्नान (धूप में शरीर की सिंकाई करना) करना चाहिए।
- हिस्टीरिया रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन है जिनको प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- ताड़ासन, गर्भासन, उत्तानपादासन गोरक्षासन, कोनासन, भुंगगासन, शवासन, पद्मासन, सिंहासन तथा वज्रासन आदि।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ