"परदेशी -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | ||
लैला रोती रही किन्तु, कितने | लैला रोती रही किन्तु, कितने मजनूं मुँह मोड़ चले। | ||
जीवन का मधुमय उल्लास, औ' यौवन का हास विलास, | जीवन का मधुमय उल्लास, औ' यौवन का हास विलास, | ||
रूप-राशि का यह अभिमान, एक स्वप्न है, स्वप्न अजान। | रूप-राशि का यह अभिमान, एक स्वप्न है, स्वप्न अजान। |
09:01, 28 जून 2016 के समय का अवतरण
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माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी? |
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