"कीरत सिंह जू देव": अवतरणों में अंतर
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'''कीरत सिंह जू देव''' घोषचन्द्र वंशीय नरेश थे। 17वीं शताब्दी में इन्होंने तत्कालीन घोरा<ref>घुवारा</ref> राज्य को संपूर्ण [[बुन्देलखंड]] में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनका जन्म [[11 दिसम्बर]], 1683 ई. में घोरा | {{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र | ||
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'''कीरत सिंह जू देव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Keerat Singh Ju Dev'', जन्म- [[11 दिसम्बर]], 1683 ई; मृत्यु- [[19 अप्रैल]], 1728 ई.) घोषचन्द्र वंशीय नरेश थे। 17वीं [[शताब्दी]] में इन्होंने तत्कालीन 'घोरा'<ref>घुवारा</ref> राज्य को संपूर्ण [[बुन्देलखंड]] में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। | |||
==जन्म तथा राज्य विस्तार== | |||
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कीरत सिंह जू देव एक कुशल योद्धा होने के साथ-ही-साथ प्रजापालक भी थे। लोक कल्याण के कार्यों के लिए उन्होंने बहुत प्रयत्न किए थे। उन्होंने घुवारा में 'जगदी स्वामी मंदिर' का निर्माण भी करवाया था, जिसमें [[जगन्नाथपुरी]] से भगवान जगदीश स्वामी की प्रतिमा लाकर स्थापित करवाई थी। उन्होंने घुवारा में ही 'कीरत सागर तालाब' का भी निर्माण कराया था।<ref>{{cite web |url=http://www.shubhbharat.com/index.php?option=com_content&view=article&id=29404:2012-03-11-17-23-17&catid=59:2011-07-04-09-26-59&Itemid=94|title=महाराजा कीरत सिंह जू देव|accessmonthday=18 मार्च|accessyear=2012|last=जैन|first=रवि|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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1727 ई. में जब नबाव वंगश ने बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया तो बुन्देलखण्ड केशरी महाराजा [[छत्रसाल]] ने नबाव का प्रतिरोध करते हुए उससे युद्ध किया। इसी समय बुन्देलखण्ड की आन, वान और शान बचाने के लिए 45 [[वर्ष]] की आयु में महाराजा कीरत सिंह जू भी इस युद्ध में छत्रसाल की ओर से शामिल हुए और नबाव के साथ भीषण युद्ध किया। [[बुन्देलखण्ड]] के स्वाभिमान की रक्षा में ही इसी युद्ध में लड़ते हुए [[19 अप्रैल]], 1728 ई. को महाराजा कीरत सिंह जू देव ने वीरगति प्राप्त की। | |||
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13:01, 7 अप्रैल 2016 का अवतरण
कीरत सिंह जू देव
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पूरा नाम | कीरत सिंह जू देव |
जन्म | 11 दिसम्बर, 1683 ई. |
जन्म भूमि | बुन्देलखंड |
मृत्यु तिथि | 19 अप्रैल, 1728 ई. |
निर्माण | 'जगदी स्वामी मंदिर' तथा कीरत सागर तालाब। |
राजघराना | घोरा राजपरिवार |
वंश | घोषचन्द्र वंश |
संबंधित लेख | बुन्देलखण्ड, छत्रसाल, मध्य प्रदेश का इतिहास |
अन्य जानकारी | मात्र 20 वर्ष की अल्पायु में ही कीरत सिंह जू देव ने अपने राज्य की सीमा का विस्तार ओरछा राज्य की सीमा तक कर लिया था। |
कीरत सिंह जू देव (अंग्रेज़ी: Keerat Singh Ju Dev, जन्म- 11 दिसम्बर, 1683 ई; मृत्यु- 19 अप्रैल, 1728 ई.) घोषचन्द्र वंशीय नरेश थे। 17वीं शताब्दी में इन्होंने तत्कालीन 'घोरा'[1] राज्य को संपूर्ण बुन्देलखंड में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जन्म तथा राज्य विस्तार
इनका जन्म 11 दिसम्बर, 1683 ई. में घोरा राजपरिवार में हुआ था। महज 20 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार ओरछा राज्य की सीमा तक कर लिया था।
प्रजावत्सल
कीरत सिंह जू देव एक कुशल योद्धा होने के साथ-ही-साथ प्रजापालक भी थे। लोक कल्याण के कार्यों के लिए उन्होंने बहुत प्रयत्न किए थे। उन्होंने घुवारा में 'जगदी स्वामी मंदिर' का निर्माण भी करवाया था, जिसमें जगन्नाथपुरी से भगवान जगदीश स्वामी की प्रतिमा लाकर स्थापित करवाई थी। उन्होंने घुवारा में ही 'कीरत सागर तालाब' का भी निर्माण कराया था।[2]
वीरगति
1727 ई. में जब नबाव वंगश ने बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया तो बुन्देलखण्ड केशरी महाराजा छत्रसाल ने नबाव का प्रतिरोध करते हुए उससे युद्ध किया। इसी समय बुन्देलखण्ड की आन, वान और शान बचाने के लिए 45 वर्ष की आयु में महाराजा कीरत सिंह जू भी इस युद्ध में छत्रसाल की ओर से शामिल हुए और नबाव के साथ भीषण युद्ध किया। बुन्देलखण्ड के स्वाभिमान की रक्षा में ही इसी युद्ध में लड़ते हुए 19 अप्रैल, 1728 ई. को महाराजा कीरत सिंह जू देव ने वीरगति प्राप्त की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ घुवारा
- ↑ जैन, रवि। महाराजा कीरत सिंह जू देव (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2012।