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गुजरात के पाटन नगर को मध्यकालीन [[अन्हिलवाड़]] से समीकृत किया जाता हैं, जो गुजरात के [[मेहसाणा]] के उत्तर-पश्चिम में 40 किलोमीटर दूर अवस्थित है। [[चालुक्य वंश]] की एक शाखा के [[मूलराज प्रथम]] (942-995 ई.) ने गुजरात के एक बड़े भाग को जीतकर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज प्रथम ने अपने साम्राज्य का संतोषजनक विस्तार कर लिया था। मूलराज प्रथम ने वृद्धावस्था में अपने पुत्र चामुण्डराय के लिए सिंहासन त्याग दिया था। अन्हिलवाड़ 1025 ई. में [[महमूद गजनवी]] के आक्रमण का शिकार हुआ। उस समय यहाँ का शासक [[भीमदेव प्रथम]] था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक जयसिंह सिद्धराज (1094-1153ई.) था। प्रसिद्ध [[जैन]] आचार्य एवं विद्धान [[हेमचन्द्र राय चौधरी|हेमचन्द्र]] उसके दरबार में था। हेमचन्द्र ने [[व्याकरण]], [[छन्द]], शब्द-शास्त्र, साहित्य कोश, [[इतिहास]], [[दर्शन]] आदि विभिन्न विषयों पर ग्रंथों की रचना की। कालांतर में 1178 ई. में [[आबू]] के निकट अन्हिलवाड़ के शासक [[मूलराज द्धितीय]] ने [[मुहम्मद गौरी]] को हराया। 1197 ई. में [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ को लूटा। उस समय भीमदेव द्धितीय यहाँ शासन कर रहा था। | |||
1299 ई. में [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] की सेना ने अन्हिलवाड़ के राजा कर्ण को हराया और उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया। गुजरात तब से लेकर 1401 ई. तक [[दिल्ली]] | 1299 ई. में [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] की सेना ने अन्हिलवाड़ के राजा कर्ण को हराया और उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया। गुजरात तब से लेकर 1401 ई. तक [[दिल्ली सल्तनत]] का प्रांत बना रहा। [[अहमदशाह]] (1411-1442ई.) ने अन्हिलवाड़ के स्थान पर नयी राजधानी [[अहमदाबाद]] बनायी। इसके साथ ही अन्हिलवाड़ (पाटन) के गौरव का सूर्य अस्त हो गया। | ||
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10:02, 5 जुलाई 2012 का अवतरण
पाटन या 'पाटण' गुजरात का एक नगर है, जो महसाणा से 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) दूर है। स्थानीय जनश्रुति है कि महाभारत में उल्लिखित हिडिंब वन पाटन के निकट ही स्थित था और भीम ने हिडिंब राक्षस को मारकर उसकी बहिन हिडिंबा से यहीं विवाह किया था। पाटन के खण्डहर सहस्त्रलिंग झील के किनारे स्थित हैं। इसकी खुदाई में अनेक बहुमूल्य स्मारक मिले हैं| इनमें मुख्य हैं भीमदेव प्रथम की रानी उदयमती की बाव या बावड़ी, रानी महल और पार्श्वनाथ का मंदिर। ये सभी स्मारक वास्तुकला के सुंदर उदाहरण हैं।
इतिहास
गुजरात के पाटन नगर को मध्यकालीन अन्हिलवाड़ से समीकृत किया जाता हैं, जो गुजरात के मेहसाणा के उत्तर-पश्चिम में 40 किलोमीटर दूर अवस्थित है। चालुक्य वंश की एक शाखा के मूलराज प्रथम (942-995 ई.) ने गुजरात के एक बड़े भाग को जीतकर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज प्रथम ने अपने साम्राज्य का संतोषजनक विस्तार कर लिया था। मूलराज प्रथम ने वृद्धावस्था में अपने पुत्र चामुण्डराय के लिए सिंहासन त्याग दिया था। अन्हिलवाड़ 1025 ई. में महमूद गजनवी के आक्रमण का शिकार हुआ। उस समय यहाँ का शासक भीमदेव प्रथम था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक जयसिंह सिद्धराज (1094-1153ई.) था। प्रसिद्ध जैन आचार्य एवं विद्धान हेमचन्द्र उसके दरबार में था। हेमचन्द्र ने व्याकरण, छन्द, शब्द-शास्त्र, साहित्य कोश, इतिहास, दर्शन आदि विभिन्न विषयों पर ग्रंथों की रचना की। कालांतर में 1178 ई. में आबू के निकट अन्हिलवाड़ के शासक मूलराज द्धितीय ने मुहम्मद गौरी को हराया। 1197 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ को लूटा। उस समय भीमदेव द्धितीय यहाँ शासन कर रहा था।
1299 ई. में अलाउद्दीन ख़िलज़ी की सेना ने अन्हिलवाड़ के राजा कर्ण को हराया और उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया। गुजरात तब से लेकर 1401 ई. तक दिल्ली सल्तनत का प्रांत बना रहा। अहमदशाह (1411-1442ई.) ने अन्हिलवाड़ के स्थान पर नयी राजधानी अहमदाबाद बनायी। इसके साथ ही अन्हिलवाड़ (पाटन) के गौरव का सूर्य अस्त हो गया।
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