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[[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान डाकू की शोक सभा]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान डाकू की शोक सभा]]

15:34, 14 अप्रैल 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

एक महान डाकू की शोक सभा
     वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है।
मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाँए हाथ का खेल था। पूरा पढ़ें

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