"कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता": अवतरणों में अंतर
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'''कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन''' [[1906]] ई. में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में नरम दल तथा गरम दल के बीच जो मतभेद थे, वह उभरकर सामने आ गये। इन मतभेदों के कारण अगले ही वर्ष [[1907]] ई. के 'सूरत अधिवेशन' में [[कांग्रेस]] के दो टुकड़े हो गये और अब कांग्रेस पर नरमपंथियों का क़ब्ज़ा हो गया। | '''कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन''' [[1906]] ई. में [[कलकत्ता]] (वर्तमान कोलकाता) में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में नरम दल तथा गरम दल के बीच जो मतभेद थे, वह उभरकर सामने आ गये। इन मतभेदों के कारण अगले ही वर्ष [[1907]] ई. के 'सूरत अधिवेशन' में [[कांग्रेस]] के दो टुकड़े हो गये और अब कांग्रेस पर नरमपंथियों का क़ब्ज़ा हो गया। | ||
1906 ई. के [[कलकत्ता]] में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में नरम एवं गरम दल में काफ़ी मतभेद था। जहाँ गरम दल [[बाल गंगाधर तिलक]] को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहता था, वहीं उदारवादी इसका विरोध कर रहे थे। इस स्थिति में उदारवादीयों ने [[दादाभाई नौरोजी]] को [[इंग्लैण्ड]] से वापस बुला कर कांग्रेस के 'कलकत्ता अधिवेशन' का अध्यक्ष बना दिया। दादाभाई नौरोजी के योग्य नेतृत्व ने कांग्रेस में होने वाली फूट को बचा लिया। मतभेद समाप्त तो नही हुए, लेकिन दब अवश्य गये, जिसका परिणाम [[1907]] ई. में कांग्रेस के 'सूरत अधिवेशन' में दिखने को मिला। उग्रवादी दल इस अधिवेशन में चार प्रस्तावों को पास करवाने में सफल रहा- | 1906 ई. के [[कलकत्ता]] में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में नरम एवं गरम दल में काफ़ी मतभेद था। जहाँ गरम दल [[बाल गंगाधर तिलक]] को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहता था, वहीं उदारवादी इसका विरोध कर रहे थे। इस स्थिति में उदारवादीयों ने [[दादाभाई नौरोजी]] को [[इंग्लैण्ड]] से वापस बुला कर कांग्रेस के 'कलकत्ता अधिवेशन' का अध्यक्ष बना दिया। दादाभाई नौरोजी के योग्य नेतृत्व ने कांग्रेस में होने वाली फूट को बचा लिया। मतभेद समाप्त तो नही हुए, लेकिन दब अवश्य गये, जिसका परिणाम [[1907]] ई. में कांग्रेस के 'सूरत अधिवेशन' में दिखने को मिला। उग्रवादी दल इस अधिवेशन में चार प्रस्तावों को पास करवाने में सफल रहा- |
11:19, 21 अप्रैल 2012 का अवतरण
कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन 1906 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में नरम दल तथा गरम दल के बीच जो मतभेद थे, वह उभरकर सामने आ गये। इन मतभेदों के कारण अगले ही वर्ष 1907 ई. के 'सूरत अधिवेशन' में कांग्रेस के दो टुकड़े हो गये और अब कांग्रेस पर नरमपंथियों का क़ब्ज़ा हो गया।
1906 ई. के कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में नरम एवं गरम दल में काफ़ी मतभेद था। जहाँ गरम दल बाल गंगाधर तिलक को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहता था, वहीं उदारवादी इसका विरोध कर रहे थे। इस स्थिति में उदारवादीयों ने दादाभाई नौरोजी को इंग्लैण्ड से वापस बुला कर कांग्रेस के 'कलकत्ता अधिवेशन' का अध्यक्ष बना दिया। दादाभाई नौरोजी के योग्य नेतृत्व ने कांग्रेस में होने वाली फूट को बचा लिया। मतभेद समाप्त तो नही हुए, लेकिन दब अवश्य गये, जिसका परिणाम 1907 ई. में कांग्रेस के 'सूरत अधिवेशन' में दिखने को मिला। उग्रवादी दल इस अधिवेशन में चार प्रस्तावों को पास करवाने में सफल रहा-
- स्वराज्य की प्राप्ति
- राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाना
- स्वदेशी आन्दोलन को प्रोत्साहन देना
- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करना
दादाभाई नौरोजी ने कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में ही सर्वप्रथम 'स्वराज्य' की मांग प्रस्तुत की।
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