"गर्भाधान संस्कार": अवतरणों में अंतर

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[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में गर्भाधान—संस्कार प्रथम संस्कार है। यहीं से बालक का निर्माण होता है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पश्चात दम्पती-युगल को पुत्र उत्पन्न करने के लिए मान्यता दी गयी है। इसलिये शास्त्र में कहा गया है--'गर्भाधानं प्रथमतः' (व्यासस्मृति 1।16)। उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए सबसे पहले गर्भाधान-संस्कार करना होता है। पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
*<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]]</u> में गर्भाधान—संस्कार प्रथम संस्कार है।  
*यहीं से बालक का निर्माण होता है।  
*गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पश्चात दम्पती-युगल को पुत्र उत्पन्न करने के लिए मान्यता दी गयी है।
*इसलिये शास्त्र में कहा गया है कि-<ref>'गर्भाधानं प्रथमतः' (व्यासस्मृति 1।16)।</ref> उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए सबसे पहले गर्भाधान-संस्कार करना होता है।  
*पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है।  
*इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
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[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
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12:06, 29 मई 2010 का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में गर्भाधान—संस्कार प्रथम संस्कार है।
  • यहीं से बालक का निर्माण होता है।
  • गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पश्चात दम्पती-युगल को पुत्र उत्पन्न करने के लिए मान्यता दी गयी है।
  • इसलिये शास्त्र में कहा गया है कि-[1] उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए सबसे पहले गर्भाधान-संस्कार करना होता है।
  • पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है।
  • इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
  1. 'गर्भाधानं प्रथमतः' (व्यासस्मृति 1।16)।