"पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार": अवतरणों में अंतर

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*केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए—निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।  
*केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए—निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।  
ये वे सोलह संस्कार हैं, जो हिन्दू धर्म के मेरुदण्ड के समान हैं।  
ये वे सोलह संस्कार हैं, जो हिन्दू धर्म के मेरुदण्ड के समान हैं।  
पुस्तक-कल्याण संस्कार-अंक (जनवरी सन् 2006 ई0 से)
पुस्तक-कल्याण संस्कार-अंक (जनवरी सन् 2006 ई॰ से)
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13:19, 11 जून 2010 का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारोंमें पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार षोदश संस्कार है।
  • यह अन्तिम संस्कार है।
  • मृत्यु के पश्चात् यह संस्कार किया जाता है।
  • इस संस्कार को पितृमेध, अन्त्कर्म, दाह-संस्कार, श्मशानकर्म तथा अन्त्येष्टि-क्रिया आदि भी कहते हैं।
  • यह संस्कार भी वेदमंत्रों के उच्चारण के द्वारा होता है।
  • हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद दाह-संस्कार करने का विधान है।
  • केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए—निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।

ये वे सोलह संस्कार हैं, जो हिन्दू धर्म के मेरुदण्ड के समान हैं। पुस्तक-कल्याण संस्कार-अंक (जनवरी सन् 2006 ई॰ से)

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