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[[भारत]] की राजधानी [[दिल्ली]] में स्थित कालकाजी के इस मन्दिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। हालाँकि मन्दिर का विस्तार पिछले 50 सालों का ही है, लेकिन मन्दिर का सबसे पुराना हिस्सा अठारहवीं शताब्दी का है। | [[भारत]] की राजधानी [[दिल्ली]] में स्थित कालकाजी के इस मन्दिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। हालाँकि मन्दिर का विस्तार पिछले 50 सालों का ही है, लेकिन मन्दिर का सबसे पुराना हिस्सा अठारहवीं शताब्दी का है। | ||
*कालकाजी मन्दिर (आजकल प्रचलित नाम) का महाभारतकालीन इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजधानी [[इंद्रप्रस्थ]] की स्थापना के बाद साम्राज्य और सुख:शांति के लिए | *कालकाजी मन्दिर (आजकल प्रचलित नाम) का महाभारतकालीन इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजधानी [[इंद्रप्रस्थ]] की स्थापना के बाद साम्राज्य और सुख:शांति के लिए माँ युगों-[[युग|युगों]] की जाती रही है। माँ कालका देवी जी की पूजा स्वयं भगवान श्री [[कृष्ण]] ने [[पांडव|पांडवों]] से करवाई थी। | ||
*ओखला की पर्वतमालाओं पर स्थित यह मन्दिर [[नवरात्र|नवरात्रों]] में श्रद्धालुओं के लिए मनोकामना केन्द्र बनकर उभरता है। हालांकि श्रद्धालु तो सारे वर्ष ही आते हैं परंतु नवरात्रों में | *ओखला की पर्वतमालाओं पर स्थित यह मन्दिर [[नवरात्र|नवरात्रों]] में श्रद्धालुओं के लिए मनोकामना केन्द्र बनकर उभरता है। हालांकि श्रद्धालु तो सारे वर्ष ही आते हैं परंतु नवरात्रों में माँ कालका के दर्शन एवं पूजन विशेष फलदायी होते हैं। | ||
*[[महाभारत]] के अनुसार इन्द्रप्रस्थ की स्थापना के समय सभी पांडवों सहित महाराज [[युधिष्ठिर]] व भगवान श्री कृष्णजी सूर्यकूट पर्वत पर स्थित इस सिद्ध पीठ में माता की अराधना की थी। | *[[महाभारत]] के अनुसार इन्द्रप्रस्थ की स्थापना के समय सभी पांडवों सहित महाराज [[युधिष्ठिर]] व भगवान श्री कृष्णजी सूर्यकूट पर्वत पर स्थित इस सिद्ध पीठ में माता की अराधना की थी। | ||
*महाभारत की विजय के बाद पुन: महाराज युधिष्ठिर ने यहाँ पर माता भगवती की पूजा व यज्ञ किया था। | *महाभारत की विजय के बाद पुन: महाराज युधिष्ठिर ने यहाँ पर माता भगवती की पूजा व यज्ञ किया था। |
14:10, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित कालकाजी के इस मन्दिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। हालाँकि मन्दिर का विस्तार पिछले 50 सालों का ही है, लेकिन मन्दिर का सबसे पुराना हिस्सा अठारहवीं शताब्दी का है।
- कालकाजी मन्दिर (आजकल प्रचलित नाम) का महाभारतकालीन इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजधानी इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद साम्राज्य और सुख:शांति के लिए माँ युगों-युगों की जाती रही है। माँ कालका देवी जी की पूजा स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से करवाई थी।
- ओखला की पर्वतमालाओं पर स्थित यह मन्दिर नवरात्रों में श्रद्धालुओं के लिए मनोकामना केन्द्र बनकर उभरता है। हालांकि श्रद्धालु तो सारे वर्ष ही आते हैं परंतु नवरात्रों में माँ कालका के दर्शन एवं पूजन विशेष फलदायी होते हैं।
- महाभारत के अनुसार इन्द्रप्रस्थ की स्थापना के समय सभी पांडवों सहित महाराज युधिष्ठिर व भगवान श्री कृष्णजी सूर्यकूट पर्वत पर स्थित इस सिद्ध पीठ में माता की अराधना की थी।
- महाभारत की विजय के बाद पुन: महाराज युधिष्ठिर ने यहाँ पर माता भगवती की पूजा व यज्ञ किया था।
- दिल्ली के व्यापारियों द्वारा यहाँ निकट ही धर्मशाला भी बनवाई गई है।
- अक्टूबर-नवम्बर में आयोजित वार्षिक नवरात्र महोत्सव के समय देश-विदेश से हज़ारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
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