"घराना": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) ('{{पुनरीक्षण}} '''घराना''' (परिवार), हिंदुस्तानी शास्त्रीय...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{पुनरीक्षण}} | {{पुनरीक्षण}} | ||
'''घराना''' (परिवार), हिंदुस्तानी शास्त्रीय [[संगीत]] की विशिष्ट शैली है, क्योंकि हिंदुस्तानी संगीत | '''घराना''' (परिवार), हिंदुस्तानी शास्त्रीय [[संगीत]] की विशिष्ट शैली है, क्योंकि हिंदुस्तानी संगीत बहुत विशाल भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत है, [[कालांतर]] में इसमें अनेक भाषाई तथा शैलीगत बदलाव आए हैं। | ||
*इसके अलावा शास्त्रीय संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा में प्रत्येक [[गुरु]] वा उस्ताद अपने हाव-भाव अपने शिष्यों की जमात को देता जाता है। | *इसके अलावा शास्त्रीय संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा में प्रत्येक [[गुरु]] वा उस्ताद अपने हाव-भाव अपने शिष्यों की जमात को देता जाता है। | ||
*घराना किसी क्षेत्र विशेष का प्रतीक होने के अलावा, व्यक्तिगत आदतों की पहचान बन गया है, यह परंपरा ज़्यादातर संगीत शिक्षा के पारंपरिक तरीके <ref>जिसमें शिष्य गुरु के घर पर ही रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करता था</ref> तथा संचार सुविधाओं के अभाव के कारण फली-फूली, क्योंकि इन परिस्थितियों में शिष्यों की पहुँच संगीत की अन्य शैलियों तक बन नहीं पाती थी। | *घराना किसी क्षेत्र विशेष का प्रतीक होने के अलावा, व्यक्तिगत आदतों की पहचान बन गया है, यह परंपरा ज़्यादातर संगीत शिक्षा के पारंपरिक तरीके <ref>जिसमें शिष्य गुरु के घर पर ही रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करता था</ref> तथा संचार सुविधाओं के अभाव के कारण फली-फूली, क्योंकि इन परिस्थितियों में शिष्यों की पहुँच संगीत की अन्य शैलियों तक बन नहीं पाती थी। |
04:56, 29 मई 2012 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
घराना (परिवार), हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशिष्ट शैली है, क्योंकि हिंदुस्तानी संगीत बहुत विशाल भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत है, कालांतर में इसमें अनेक भाषाई तथा शैलीगत बदलाव आए हैं।
- इसके अलावा शास्त्रीय संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा में प्रत्येक गुरु वा उस्ताद अपने हाव-भाव अपने शिष्यों की जमात को देता जाता है।
- घराना किसी क्षेत्र विशेष का प्रतीक होने के अलावा, व्यक्तिगत आदतों की पहचान बन गया है, यह परंपरा ज़्यादातर संगीत शिक्षा के पारंपरिक तरीके [1] तथा संचार सुविधाओं के अभाव के कारण फली-फूली, क्योंकि इन परिस्थितियों में शिष्यों की पहुँच संगीत की अन्य शैलियों तक बन नहीं पाती थी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिसमें शिष्य गुरु के घर पर ही रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करता था
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख