"बन्धन से गर छूटनू चाहत -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर

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शीर्षक उदाहरण 1

बन्धन से गर छूटनू चाहत / शिवदीन राम जोशी

शीर्षक उदाहरण 3

शीर्षक उदाहरण 4

शांत सुभाव करो मनवा, न जरो अविवेक के फंद में आकर | ज्ञान विचार दया उर धारके, राम चितार तू चित्त लगाकर | धीरज आसन दृढ जमाय के या विधि से मन को समझाकर | बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर || .............................................. नित्त ही चित्त प्रसन्न रखो यह साधन साधू से सिख तू जाकर | फेर भी भूल परे तुमको धृक है धृक है तन मानव पाकर | क्रोध व तृष्णा को दूर करो कहूँ संत समागम संगत जाकर | बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर || .................................................. परलोक बनावन से हटके मद क्रोध भर्यो तृष्णा उर आकर | क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी पाकर | जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ पढ़ाकर | बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर || ................................................. अजपा वही जो जपे दिन रैन यह होता है स्वांस के साथ सुनाकर | ध्यान से युक्त व सत्य परायण उच्च विचार हृदय में धराकर | भोजन अल्प एकांत निवास तू थोरी ही नींद ले जाग उठाकर | बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ||

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