"दक्ष स्मृति": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी==" to "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
*वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।<ref>7/1</ref>  
*वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।<ref>7/1</ref>  
*उन्होंने [[पतंजलि]] योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है।
*उन्होंने [[पतंजलि]] योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है।
==टीका टिप्पणी==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:स्मृति ग्रन्थ]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:स्मृति ग्रन्थ]]
__INDEX__
__INDEX__

15:00, 15 जून 2010 का अवतरण

  • सात अध्यायों में निबद्ध दक्ष स्मृति मुख्य रूपेण गृहस्थधर्म, सदाचार एवं अध्यात्म ज्ञान का निरूपण करता है।
  • गृहस्थाश्रम महिमा, सन्ध्यावंदन विधि नित्यकर्म, धन सम्पत्ति का दान, सदुपयोग, आतिथ्य-सत्कार, करणीय एवं अकरणीय कर्म, अध्यात्म, योग निरुपण की विवेचना मिलती है।
  • वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।[1]
  • उन्होंने पतंजलि योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 7/1