"कोलकाता का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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बंगाल में मुग़ल पद्धति के अनुसार क़ाज़ी अपराधिक और दीवानी मामलों का निपटारा किया करते थे। जब कि ज़मींदारों पर लगान वसूलने की ज़िम्मेदारी थी। क़ाज़ी इस्लामी पद्धति से न्याय करते थे, हिन्दुओं के मामले में पंडितों का सहयोग प्राप्त किया जाता था। मूल इकाई के रूप में पंचायतें कायम थीं। क़ाज़ी के निर्णय के विरुद्ध क़ाज़ी-ए-सूबा को अपील की जा सकती थी। क़ाज़ी का पद वंशानुगत होता था जिस के लिए बाद में बोली लगने लगी थी। विधि से अनभिज्ञ लोग न्याय कर रहे थे। भ्रष्टाचार और पक्षपात का बोलबाला था। 1733 में क़ाज़ी के अधिकार ज़मींदारों को दे दिए गए। ज़मीदारों ने भी अपनी स्वार्थ सिद्धि के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। ज़मींदारों को सभी तरह के न्याय के अधिकार दिए गए थे अपील सूबे के नवाब को की जा सकती थी लेकिन वे इने-गिने मामलों में ही होती थी। ज़मींदार न्याय के लिए सौदेबाज़ी करने लगे थे। सामान्य जन लूट के भारी शिकार थे।<ref>{{cite web |url=http://knol.google.com/k/%E0%A4%AD-%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%AE-%E0%A4%B5-%E0%A4%A7-%E0%A4%95-%E0%A4%87%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-7-%E0%A4%95-%E0%A4%B2%E0%A4%95-%E0%A4%A4-%E0%A4%AE-%E0%A4%85-%E0%A4%97-%E0%A4%B0-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%B8-%E0%A4%A4# |title=भारत में विधि का इतिहास-7 कोलकाता|accessmonthday=21 जुलाई |accessyear=2010 |last=राय द्विवेदी |first=दिनेश |authorlink=|format= |publisher=|language=[[हिन्दी]]}}</ref> | बंगाल में मुग़ल पद्धति के अनुसार क़ाज़ी अपराधिक और दीवानी मामलों का निपटारा किया करते थे। जब कि ज़मींदारों पर लगान वसूलने की ज़िम्मेदारी थी। क़ाज़ी इस्लामी पद्धति से न्याय करते थे, हिन्दुओं के मामले में पंडितों का सहयोग प्राप्त किया जाता था। मूल इकाई के रूप में पंचायतें कायम थीं। क़ाज़ी के निर्णय के विरुद्ध क़ाज़ी-ए-सूबा को अपील की जा सकती थी। क़ाज़ी का पद वंशानुगत होता था जिस के लिए बाद में बोली लगने लगी थी। विधि से अनभिज्ञ लोग न्याय कर रहे थे। भ्रष्टाचार और पक्षपात का बोलबाला था। 1733 में क़ाज़ी के अधिकार ज़मींदारों को दे दिए गए। ज़मीदारों ने भी अपनी स्वार्थ सिद्धि के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। ज़मींदारों को सभी तरह के न्याय के अधिकार दिए गए थे अपील सूबे के नवाब को की जा सकती थी लेकिन वे इने-गिने मामलों में ही होती थी। ज़मींदार न्याय के लिए सौदेबाज़ी करने लगे थे। सामान्य जन लूट के भारी शिकार थे।<ref>{{cite web |url=http://knol.google.com/k/%E0%A4%AD-%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%AE-%E0%A4%B5-%E0%A4%A7-%E0%A4%95-%E0%A4%87%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-7-%E0%A4%95-%E0%A4%B2%E0%A4%95-%E0%A4%A4-%E0%A4%AE-%E0%A4%85-%E0%A4%97-%E0%A4%B0-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%B8-%E0%A4%A4# |title=भारत में विधि का इतिहास-7 कोलकाता|accessmonthday=21 जुलाई |accessyear=2010 |last=राय द्विवेदी |first=दिनेश |authorlink=|format= |publisher=|language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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पूर्वी भारत में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी और जॉब चार्नोक को यह सुरक्षित व स्थायी ठिकाना मिलना बड़ी उपलब्धि थी। योरोप से एशिया तक व्यापार के लिए अग्रसर अंग्रेज़ व्यापारियों के लिए [[सूरत]], [[मुंबई]] और मद्रास के बाद पूर्वी भारत में सूतानती एक ऐसा केंद्र मिल गया जहाँ ईस्ट इंडिया कंपनी के नुमाइंदे व्यापार के | पूर्वी भारत में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी और जॉब चार्नोक को यह सुरक्षित व स्थायी ठिकाना मिलना बड़ी उपलब्धि थी। योरोप से एशिया तक व्यापार के लिए अग्रसर अंग्रेज़ व्यापारियों के लिए [[सूरत]], [[मुंबई]] और मद्रास के बाद पूर्वी भारत में सूतानती एक ऐसा केंद्र मिल गया जहाँ ईस्ट इंडिया कंपनी के नुमाइंदे व्यापार के लिहाज़ से कारखाने खोले और बाद में फोर्ट विलियम की क़िलेबंदी करके अपनी स्थिति मज़बूत करने में सफल हुए।<ref>{{cite web |url=http://aajkaitihas.blogspot.com/2009/08/blog-post.html |title=कोलकाता और जॉब चार्नोक|accessmonthday=21 जुलाई |accessyear=2010 |last=सिंह |first=मांधाता |authorlink=|format=एच.टी.एम.एल |publisher=|language=हि्न्दी}}</ref> | ||
====शहर का विकास==== | ====शहर का विकास==== |
14:03, 25 अगस्त 2012 का अवतरण
प्रारम्भिक काल
कालीकाता नाम का उल्लेख मुग़ल बादशाह अकबर (शासन काल, 1556-1605) के राजस्व खाते में और बंगाली कवि बिप्रदास (1495) द्वारा रचित 'मनसामंगल' में भी मिलता है। एक ब्रिटिश बस्ती के रूप में कोलकाता का इतिहास 1690 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी जाब चार्नोक द्वारा यहाँ पर एक व्यापार चौकी की स्थापना से शुरू होता है। हुगली नदी के तट पर स्थित बंदरगाह को लेकर पूर्व में चार्नोक का मुग़ल साम्राज्य के अधिकारियों से विवाद हो गया था और उन्हें वह स्थान छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने नदी तट पर स्थित अन्य स्थानों पर स्वयं को स्थापित करने के कई असफल प्रयास किए।
मुग़ल अधिकारियों ने ब्रिटिश कम्पनी के वाणिज्य से होने वाले लाभ को न खोने की चाह में जब जॉब चार्नोक को पुनः लौटने की अनुमति दी, तब उन्होंने कोलकाता को अपनी गतिविधियों के केन्द्र के रूप में चुना। स्थल का चुनाव सावधानीपूर्वक किया गया प्रतीत होता है, क्योंकि यह पश्चिम में हुगली नदी, उत्तर में ज्वार नद और पूर्व में लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर लवणीय झील द्वारा संरक्षित था। नदी के पश्चिमी तट पर ऊँचे स्थानों पर डच, फ़्राँसीसी व अन्य प्रतिद्वन्द्वियों की बस्तियाँ स्थित थीं। चूँकि यह हुगली के बंदरगाह पर स्थित था, इसलिए समुद्र से पहुँचने के मार्ग को कोई ख़तरा नहीं था। इस स्थल पर नदी चौड़ी और गहरी भी थी। केवल एक ही हानि थी कि यह अत्यन्त दलदली क्षेत्र था, जिससे यह जगह अस्वास्थ्यकर हो गई। इसके अतिरिक्त, अंग्रेज़ों के आने के पहले, तीन स्थानीय गाँवों, सुतानती, कालीकाता और गोविन्दपुर, जो बाद में सामूहिक रूप में कोलकाता कहलाने लगे, का चयन उन भारतीय व्यापारियों के द्वारा बसने के लिए किया गया था, जो गाद से भरे सतगाँव के बंदरगाह से प्रवासित हुए थे। चार्नोक के स्थल चयन में इन व्यापारियों की उपस्थिति भी कुछ हद तक उत्तरदायी रही होगी।
1696 में निकटवर्ती बर्द्धमान ज़िले में एक विद्रोह होने तक मुग़ल प्रान्तीय प्रशासन का इस बढ़ती हुई बस्ती के प्रति दोस्ताना व्यवहार हो गया था। कम्पनी के कर्मचारियों ने जब व्यापार चौकी या फ़ैक्ट्री की क़िलेबन्दी की अनुमति माँगी, तब उनकी सुरक्षा की सामान्य शर्तों पर उन्हें इजाज़त दे दी गई। मुग़ल शासन ने विद्रोह को आसानी से दबा दिया, किन्तु उपनिवेशियों का ईंट व मिट्टी से बना सुरक्षात्मक ढाँचा वैसा ही बना रहा और 1700 में यह फ़ोर्ट विलियम कहलाया। 1698 में अंग्रेज़ों ने वे पत्र प्राप्त कर लिए, जिसने उन्हें तीन गाँवों के ज़मींदारी अधिकार (राजस्व संग्रहण का अधिकार, वास्तविक स्वामित्व) ख़रीदने का विशेषाधिकार प्रदान कर दिया।
कलकत्ता की काल कोठरी
20 जून 1756 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला द्वारा नगर पर क़ब्ज़ा करने और ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रतिरक्षक सेना द्वारा परिषद के एक सदस्य जॉन जेड हॉलवेल के नेतृत्व में समर्पण करने के बाद घटी घटना में नवाब ने शेष बचे यूरोपीय प्रतिरक्षकों को एक कोठरी में बंद कर दिया था, जिसमें अनेक बंदियों की मृत्यु हो गई थी, यह घटना भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आदर्शीकरण का एक सनसनीखेज मुक़दमा और विवाद का विषय बनी।
फोर्ट विलियम
बंगाल में मुग़ल पद्धति के अनुसार क़ाज़ी अपराधिक और दीवानी मामलों का निपटारा किया करते थे। जब कि ज़मींदारों पर लगान वसूलने की ज़िम्मेदारी थी। क़ाज़ी इस्लामी पद्धति से न्याय करते थे, हिन्दुओं के मामले में पंडितों का सहयोग प्राप्त किया जाता था। मूल इकाई के रूप में पंचायतें कायम थीं। क़ाज़ी के निर्णय के विरुद्ध क़ाज़ी-ए-सूबा को अपील की जा सकती थी। क़ाज़ी का पद वंशानुगत होता था जिस के लिए बाद में बोली लगने लगी थी। विधि से अनभिज्ञ लोग न्याय कर रहे थे। भ्रष्टाचार और पक्षपात का बोलबाला था। 1733 में क़ाज़ी के अधिकार ज़मींदारों को दे दिए गए। ज़मीदारों ने भी अपनी स्वार्थ सिद्धि के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। ज़मींदारों को सभी तरह के न्याय के अधिकार दिए गए थे अपील सूबे के नवाब को की जा सकती थी लेकिन वे इने-गिने मामलों में ही होती थी। ज़मींदार न्याय के लिए सौदेबाज़ी करने लगे थे। सामान्य जन लूट के भारी शिकार थे।[1]
पूर्वी भारत में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी और जॉब चार्नोक को यह सुरक्षित व स्थायी ठिकाना मिलना बड़ी उपलब्धि थी। योरोप से एशिया तक व्यापार के लिए अग्रसर अंग्रेज़ व्यापारियों के लिए सूरत, मुंबई और मद्रास के बाद पूर्वी भारत में सूतानती एक ऐसा केंद्र मिल गया जहाँ ईस्ट इंडिया कंपनी के नुमाइंदे व्यापार के लिहाज़ से कारखाने खोले और बाद में फोर्ट विलियम की क़िलेबंदी करके अपनी स्थिति मज़बूत करने में सफल हुए।[2]
शहर का विकास
1717 में मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सीयन ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को 3,000 रुपये वार्षिक भुगतान पर व्यापार की अनुमति दे दी। इस व्यवस्था ने कोलकाता के विकास को बहुत बढ़ावा दिया। बड़ी संख्या में भारतीय व्यापारी शहर में एकत्र होने लगे। कम्पनी के झण्डे के नीचे कम्पनी के कर्मचारी शुल्क-मुक्त निजी व्यापार करने लगे। 1742 में मराठों ने जब दक्षिण-पश्चिम से बंगाल के पश्चिमीज़िलों में मुग़लों के विरुद्ध आक्रमण शुरू किया, तब अंग्रेज़ों ने बंगाल के नवाब (शासक) अलीवर्दी ख़ाँ से शहर के उत्तरी और पूर्वी भाग में एक खाई खोदने की अनुमति प्राप्त कर ली। यह मराठा खाई के नाम से जानी गई। हालाँकि यह बस्ती के दक्षिण छोर तक पूरी तरह नहीं बन पाई, पर इसने शहर की पूर्वी सीमा का निर्माण किया। 1756 में नवाब के उत्तराधिकारी, सिराजुद्दौला ने क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया और शहर को लूटा। भारत में ब्रिटिश शक्ति के संस्थापकों में से एक राबर्ट क्लाइव और ब्रिटिश नौसेनाध्यक्ष चार्ल्स वाटसन ने जनवरी 1757 में कोलकाता पर फिर से अधिकार कर लिया। थोड़े समय के बाद प्लासी (जून 1757) में नवाब हार गए। जिसके बाद बंगाल में ब्रिटिश राज सुनिश्चित हो गया। गोविन्दपुर के जंगलों को काट दिया गया और हुगली की उपेक्षा कर वर्तमान स्थल कोलकाता पर नए फ़ोर्ट विलियम का निर्माण किया गया, जहाँ यह ब्रिटिश सत्तारोहण का प्रतीक बन गया।
1772 तक कोलकाता ब्रिटिश भारत की राजधानी नहीं बना, उस वर्ष प्रथम गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिग्ज़ ने प्रान्तीय मुग़ल राजधानी मुर्शिदाबाद से सभी महत्त्वपूर्ण कार्यालयों का स्थानान्तरण इस शहर में किया। 1773 में बंबई और मद्रास, फ़ोर्ट विलियम स्थित शासन के अधीन आ गए। ब्रिटिश क़ानून को लागू करने वाले उच्चतम न्यायालय ने अपना प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार शहर में मराठा खाई (वर्तमान आचार्य प्रफुल्ल चंद्र और जगदीश चंद्र बोस मार्गों) तक लागू करना प्रारम्भ कर दिया।
1706 में कोलकाता की जनसंख्या लगभग 10,000 से 12,000 थी। 1752 में यह लगभग 1,20,000 तक और 1821 में यह 1,80,000 तक पहुँची। श्वेत (ब्रिटिश) नगर का निर्माण उस भूमि पर किया गया, जो कई बार बसी और कई बार उजड़ी थी। ब्रिटिश भाग में इतने महल थे कि शहर का नाम ही महलों का शहर पड़ गया। ब्रिटिश उपनगर के बाहर नवधनाढ्य लोगों के भव्य आवासों के साथ-साथ झोपड़ियों के समूह निर्मित किए गए। नगर के विभिन्न भागों के नाम, जैसे कुमारटुली (कुम्हारों का क्षेत्र) और सांकारीपाड़ा (शंख-सीप कारीगरों का क्षेत्र) अब भी अलग-थलग व्यावसायिक जातियों के लोगों को दर्शाते हैं, जो बढ़ते हुए महानगर के निवासी बन गए। दो अलग-अलग प्रजातियाँ, अंग्रेज़ और भारतीय, कोलकाता में एक साथ निवास करने लगीं।
उस समय कोलकाता को असुविधाजनक शहर माना जाता था। सड़कें बहुत ही कम थीं। जनकार्य में सुधार के लिए लॉटरी के माध्यम से वित्त प्रबन्ध के लिए 1814 में एक लॉटरी समिति का गठन किया गया, उसने हालत सुधारने के लिए 1814 से 1836 के बीच कई प्रभावी कार्य किए। 1814 में निगम की स्थापना की गई। यद्यपि 1864, 1867 और 1870 के चक्रवात ने निचले क्षेत्र में रह रहे ग़रीब लोगों को तबाह कर दिया। क्रमिक चरणों में जैसे-जैसे ब्रिटिश शक्ति का प्रायद्वीप में विस्तार होता गया, सम्पूर्ण उत्तर भारत कोलकाता बंदरगाह का पृष्ठ क्षेत्र बन गया। 1835 में आंतरिक चुंगी शुल्क समाप्त किए जाने से एक खुला बाज़ार निर्मित हुआ और रेलवे के निर्माण (प्रारम्भ 1854 में) ने व्यापार एवं उद्योग के विकास को और अधिक बढ़ावा दिया। इसी समय कोलकाता से पेशावर (अब पाकिस्तान) तक ग्रैंड ट्रंक रोड को पूरा किया गया। ब्रिटिश व्यापार, बैंकिग और बीमा व्यवसाय फले-फूले। कोलकाता का भारतीय उपक्षेत्र भी व्यवसाय का व्यस्त केन्द्र बन गया और भारत के सभी भागों और एशिया के कई अन्य भागों के लोगों से भर गया। कोलकाता प्रायद्वीप का बौद्धिक केन्द्र बन गया। नईहाटी नगर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में हुगली नदी पर कोलकाता से 22 मील उत्तर चौबीस परगना ज़िले में स्थित है।
20वीं शताब्दी में कोलकाता
20वीं सदी में कोलकाता के दुर्भाग्य का उदय हुआ। भारत के वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न ने 1905 में बंगाल को विभाजित किया व ढाका को पूर्व बंगाल और असम की राजधानी बनाया। विभाजन को रद्द करने के लिए तीव्र आन्दोलन किए गए। किन्तु 1912 में ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली लाई गई, जहाँ से सरकार अपेक्षाकृत शान्ति से चल सकती थी। 1947 में बंगाल का विभाजन अन्तिम प्रहार था। चूँकि कोलकाता की जनसंख्या बढ़ गई थी, यहाँ सामाजिक समस्याएँ भी तीव्र हो गईं और भारत के लिए स्वशासन की माँग भी। 1926 में साम्प्रदायिक दंगे हुए और जब 1930 में महात्मा गांधी ने अन्यायपूर्ण क़ानूनों की अवज्ञा करने का आह्वान किया, तब फिर से दंगे हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोलकाता बंदरगाह पर हुए जापानी हवाई हमलों से बहुत नुक़सान हुआ और जनहानि भी हुई। सबसे भयानक साम्प्रदायिक दंगे 1946 में हुए, जब ब्रिटिश भारत का विभाजन तय था और मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच तनाव चरम पर था।
वृहद कोलकाता में 30 से अधिक संग्रहालय है, जो विविध विषयों पर आधारित हैं। 1814 में स्थापित 'इंडियन म्यूज़ियम' भारत में सबसे पुराना और अपनी तरह का देश का सबसे बड़ा संग्रहालय है। पुरातत्त्व और मुद्राविषयक खण्डों में सबसे मूल्यवान संग्रह हैं।
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1947 में बंगाल के भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन से कोलकाता बहुत पिछड़ गया, क्योंकि यह अपने पूर्व पृष्ठभाग के एक हिस्से का व्यापार खोकर, केवल पश्चिम बंगाल की राजधानी बनकर रह गया। इसी समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्ला देश) से हज़ारों शरणार्थी कोलकाता आ गए, जिससे सामाजिक समस्याएँ व जनसंख्या और भी बढ़ गई, जो पहले ही चिंताजनक अनुपात में पहुँच चुकी थी। 1960 के दशक के मध्य तक आर्थिक गतिहीनता ने नगर के सामाजिक व राजनीतिक जीवन में अस्थिरता को बढ़ा दिया और शहर से पूँजी के निकास को बढ़ावा दिया। राज्य शासन ने कई कम्पनियों का प्रबन्ध अपने हाथों में लिया। विशेषकर 1980 के दशक में बड़ी संख्या में लोक निर्माण कार्यक्रम और केन्द्रीकृत क्षेत्रीय योजनाओं ने शहर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के सुधार में योगदान दिया।
अतीत के झरोखे से
भारत की बौद्धिक राजधानी माना जाने वाला कोलकाता ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटिश भारत की राजधानी थी, कोलकाता को लंदन के बाद ब्रिटिश एम्पायर का दूसरा सबसे बड़ा शहर माना जाता था। इस शहर को किसी जमाने में पूरब का मोती पुकारा जाता था। अंग्रेज़ इसे भले ही 'कैलकटा' पुकारते थे लेकिन बंगाल और बांग्ला में इसे हमेशा से कोलकाता या कोलिकाता के नाम से ही पुकारा जाता रहा है जबकि हिन्दी भाषी इसको कलकत्ता या कलकत्ते के नाम से पुकारते रहे है।
सम्राट अकबर के चुंगी दस्तावेजों और पंद्रहवी सदी के बांग्ला कवि विप्रदास की कविताओं में इस नाम का बार बार उल्लेख मिलता है। लेकिन फिर भी नाम की उत्पत्ति के बारे में कई तरह की कहानियाँ मशहूर हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी के अनुसार हिंदुओं की देवी काली के नाम से इस शहर के नाम की उत्पत्ति हुई है। इस शहर के अस्तित्व का उल्लेख व्यापारिक बंदरगाह के रूप में चीन के प्राचीन यात्रियों के यात्रा वृतांत और फारसी व्यापारियों के दस्तावेज़ों में भी उल्लेख है। महाभारत में भी बंगाल के कुछ राजाओं के नाम है जो कौरव सेना की तरफ से युद्ध में शामिल हुये थे।
बौद्धिक विरासत से भरपूर कोलकाता भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में केन्द्रीय भूमिका रह इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा चुका है। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के साथ-साथ कई प्रमुख राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों जैसे 'हिन्दू मेला' और क्रांतिकारी संगठन 'युगांतर', 'अनुशीलन' की स्थापना इसी शहर में हुई साथ ही इस शहर को भारत की बहुत सी महान हस्तियों जैसे प्रारंभिक राष्ट्रवादी अरविंद घोष, इंदिरा देवी चौधरानी, विपिनचंद्र पाल थे। राष्ट्रवादियों के प्रेरणा के केन्द्र बिन्दु बने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द भी। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के पहले अध्यक्ष श्री व्योमेश चंद्र बैनर्जी और स्वराज की वक़ालत करने वाले श्री सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी भी थे। 19 वी सदी के उत्तरार्द्ध और 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रख्यात बांग्ला साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी जिनका लिखा आनंदमठ का गीत 'वन्दे मातरम' आज भारत का राष्ट्र गीत है और नेताजी सुभाषचंद्र बोस, इसके अलावा राष्टकवि रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान रचनाकार से लेकर सैकड़ों स्वाधीनता के सिपाहियों का घर होने का गौरव प्राप्त है।[3]
1757 के बाद से इस शहर पर पूरी तरह अंग्रेज़ों का प्रभुत्व स्थापित हो गया और 1850 के बाद से इस शहर का तेजी से औद्योगिक विकास होना शुरू हुआ ख़ासकर कपड़ों के उद्योग का विकास नाटकीय रूप से यहाँ बढा हालाकि इस विकास का असर शहर को छोड़कर आसपास के इलाकों में कहीं परिलक्षित नहीं हुआ। 5 अक्टूबर 1864 को समुद्री तूफ़ान[4] की वजह से कोलकाता में बुरी तरह तबाही होने के बावजूद कोलकाता अधिकांशत: अनियोजित रूप से अगले डेढ सौ सालों में बढता रहा और आज इसकी आबादी लगभग 14 मिलियन है। कोलकाता 1980 से पहले भारत की सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर था, लेकिन इसके बाद मुंबई ने इसकी जगह ली। भारत की आज़ादी के समय 1947 में और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद 'पूर्वी बंगाल' (अब बांग्लादेश) से यहाँ शरणार्थियों की बाढ आ गयी जिसने इस शहर की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकझोर दिया।[5]
As we enter the town, a very expansive Square opens before us, with a large expanse of water in the middle, for the public use… The Square itself is composed of magnificent houses which render Calcutta not only the handsomest town in Asia but one of the finest in the world. L. de Grandpré[6]
इन्हें भी देखें: कोलकाता इतिहास तिथिक्रम
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राय द्विवेदी, दिनेश। भारत में विधि का इतिहास-7 कोलकाता (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010।
- ↑ सिंह, मांधाता। कोलकाता और जॉब चार्नोक (हि्न्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010।
- ↑ शिशोदिया, संदीप। एक शहर रूमानियत से भरा : कोलकाता (हि्न्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010।
- ↑ जिसमे साठ हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गये
- ↑ सिंह, मांधाता। हमारावतन-हमारासमाज, कोलकाता (हि्न्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010।
- ↑ Kolkata Quotes (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2010।