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-‘सारे मानसमासाद्य म्यविशत् फाल्गुनस्तथी, | -‘सारे मानसमासाद्य म्यविशत् फाल्गुनस्तथी, | ||
तं हेमकूट राजेन्द्र समतिकम्य पांडवः, | तं हेमकूट राजेन्द्र समतिकम्य पांडवः, | ||
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तान् सर्वाश्च दृश्ट्वा मुदायुक्तो धर्मजयः, | तान् सर्वाश्च दृश्ट्वा मुदायुक्तो धर्मजयः, | ||
वशेचकेऽथरत्नानि लेभे च सुबहूनि च, | वशेचकेऽथरत्नानि लेभे च सुबहूनि च, | ||
ततो निषधमासाद्य गिरिस्वानजयत् | ततो निषधमासाद्य गिरिस्वानजयत् प्रभुः’।<ref>[[महाभारत सभापर्व]] 28,5 तथा आगे दाक्षिणास्य पाठ</ref></poem> | ||
*[[महाभारत]]<ref>[[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्म.]] 6,8</ref> में हेमकूट के परे हरिवर्ष की स्थिति बताई गई है-‘हेमकूटात् परं चैव हरिवर्ष प्रचक्षते’। | *[[महाभारत]]<ref>[[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्म.]] 6,8</ref> में हेमकूट के परे हरिवर्ष की स्थिति बताई गई है-‘हेमकूटात् परं चैव हरिवर्ष प्रचक्षते’। | ||
*हेमकूट को [[कैलाश पर्वत]] माना गया है- ‘हेमकूटस्तु समुहान् कैलासो नाम पर्वतः’।<ref>भीष्म 6,41</ref> | *हेमकूट को [[कैलाश पर्वत]] माना गया है- ‘हेमकूटस्तु समुहान् कैलासो नाम पर्वतः’।<ref>भीष्म 6,41</ref> |
06:34, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण
हरिवर्ष प्राचीन भूगोल के अनुसार जंबूद्वीप का एक भाग या वर्ष।
- विष्णु पुराण के वर्णन में जंबूद्वीपक अधीश्वर राजा आग्नीध्र के नौ पुत्रों में हरिवर्ष का भी नाम है।
- इसके नाम पर ही संभवतः हरिवर्ष भूखण्ड का नाम प्रसिद्ध हुआ।[1] यहाँ निषध पर्वत स्थित था।
- हरिवर्ष का मेरु पर्वत के दक्षिण की ओर माना गया है।
- इसके तथा भारत के बीच में किंपुरुषवर्ष स्थित था-‘भारतं प्रथम वर्ष ततः किंपुरुषंस्मृतम्, हरिवर्ष तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज’।[2]
- महाभारत सभापर्व में हरिवर्ष को मालसरोवर, गंधर्वों के देश और हेमकूट पर्वत ( कैलाश ) के उत्तर में स्थित माना गया है।
- अर्जुन ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में इस देश को भी विजित किया था।
- यहां उन्होंने बहुत से मनोरम नगर, सुंदर वन तथा निर्मल जल वाली नदियां देखी थीं।
- यहां के स्त्री-पुरुष बहुत सुंदर थे तथा भूमि रत्नप्रसवा थी।
- यहां अर्जुन ने निषध पर्वत को भी देखा था।
-‘सारे मानसमासाद्य म्यविशत् फाल्गुनस्तथी,
तं हेमकूट राजेन्द्र समतिकम्य पांडवः,
हविर्ष विवेशश्र,
सैज्ञेन महतावृतः तत्र पार्थो ददर्शाथ बहूनि हि मनोरमान्,
नसरांइन वनादिचैव मदीश्च विमलोदकाः,
तान् सर्वाश्च दृश्ट्वा मुदायुक्तो धर्मजयः,
वशेचकेऽथरत्नानि लेभे च सुबहूनि च,
ततो निषधमासाद्य गिरिस्वानजयत् प्रभुः’।[3]
- महाभारत[4] में हेमकूट के परे हरिवर्ष की स्थिति बताई गई है-‘हेमकूटात् परं चैव हरिवर्ष प्रचक्षते’।
- हेमकूट को कैलाश पर्वत माना गया है- ‘हेमकूटस्तु समुहान् कैलासो नाम पर्वतः’।[5]
- प्रसंग से हरिवर्ष उत्तरी तिब्बत तथा दक्षिणी चीन का समीपवर्ती भूख्रंड जान पड़ता है।
- वर्तमान शिक्यांग का प्रदेश है जो पहले चीनी तुर्किस्तान कहलाता था।
- महाभारत के हरिवर्ष के उत्तर में इलावृत का उल्लेख है जिसे जम्बूद्वीप का मध्य भाग बताया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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