"सुदामा चरित भाग-3": अवतरणों में अंतर
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'''भाग-3 पुनः ग्रह आगमन''' | '''भाग-3 पुनः ग्रह आगमन''' | ||
(सुदामा ) - | (सुदामा) - | ||
वैसेइ राज | वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ। | ||
वैसेइ कंचन के सब धाम | वैसेइ कंचन के सब धाम हैं, द्वारिके के महिलों फिरि आयौ। | ||
भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ। | भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ। | ||
पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न | पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न पायौ॥।।70।। | ||
देवनगर कै जच्छपुर, हौं भटक्यो कित आय। | देवनगर कै जच्छपुर, हौं भटक्यो कित आय। | ||
नाम कहा यहि नगर को, सौ न कहौ समुझाय।। | नाम कहा यहि नगर को, सौ न कहौ समुझाय।। | ||
से न कहौ समुझाय, नगरवासी तुम कैसे। | |||
पथिक जहॉ झंखहि तहॉ के लोग अनैसे। | |||
लोग अनैसे नाहिं, लखौ द्विजदेव नगर कै। | लोग अनैसे नाहिं, लखौ द्विजदेव नगर कै। | ||
कृपा करी हरि देव, दियौ है देवनगर कै।।71।। | कृपा करी हरि देव, दियौ है देवनगर कै।।71।। | ||
सुन्दर महल मनि-मानिक जटित अति, | सुन्दर महल मनि-मानिक जटित अति, | ||
पंक्ति 58: | पंक्ति 55: | ||
ऐसी उसा फिरी जब द्वारिका दरस पायो, | ऐसी उसा फिरी जब द्वारिका दरस पायो, | ||
द्वारिका के सरिस सुदामापुर ह्वै रह्यो।।72।। | द्वारिका के सरिस सुदामापुर ह्वै रह्यो।।72।। | ||
कनक | कनक दंड कर में लिये द्वारपाल हैं द्वार। | ||
जाय दिखायौ सबनि लैंए या है महल | जाय दिखायौ सबनि लैंए या है महल तुम्हार।।73।। | ||
कह्यो सुदामा हॅसत हौ, ह्वै करि परम प्रवीन। | कह्यो सुदामा हॅसत हौ, ह्वै करि परम प्रवीन। | ||
कुटी दिखावहु मोहिं वह , जहॉ बॉभनी दीन।।74।। | कुटी दिखावहु मोहिं वह, जहॉ बॉभनी दीन।।74।। | ||
द्वारपाल सों तिन कही, कही पठवहु यह गाथ। | द्वारपाल सों तिन कही, कही पठवहु यह गाथ। | ||
आये बिप्र महाबली, देखहु होहु सनाथ।।75।। | आये बिप्र महाबली, देखहु होहु सनाथ।।75।। | ||
सुनत चली आनत्द युत, सब सखियन लै संग। | सुनत चली आनत्द युत, सब सखियन लै संग। | ||
किंकिनी नूपुर दुन्दुभि, मनहु काम चतुरंग।।76।। | किंकिनी नूपुर दुन्दुभि, मनहु काम चतुरंग।।76।। | ||
(सुदामा की पत्नी) - | (सुदामा की पत्नी) - | ||
कही बॉभनी आइ कै, यहै कन्त निज गेह। | कही बॉभनी आइ कै, यहै कन्त निज गेह। | ||
श्री जदुपति | श्री जदुपति तिहुँ लोक में, कीन्ह प्रगट निजु नेह।।77।। | ||
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(सुदामा ) - | (सुदामा ) - | ||
तामैं परो दुख काटौं कहाँ हेम-धाम री। | |||
तामैं परो दुख काटौं कहाँ हेम | जेवर-जराऊ तुम साजे प्रति अंग-अंग, | ||
जेवर | |||
सखी सोहै संग वह छूछी हुती छाम री। | सखी सोहै संग वह छूछी हुती छाम री। | ||
तुम तो पटंबर री ओढ़े | तुम तो पटंबर री ओढ़े किनारीदार, | ||
सारी जरतारी वह ओढ़े कारी कामरी। | सारी जरतारी वह ओढ़े कारी कामरी। | ||
मेरी वा पंडाइन तिहारी अनुहार ही | मेरी वा पंडाइन तिहारी अनुहार ही पै, | ||
विपदा सताई वह पाई कहाँ | विपदा सताई वह पाई कहाँ पामरी?।।80।। | ||
ठाडी पंडिताइन कहत मंजु भावन सों, | ठाडी पंडिताइन कहत मंजु भावन सों, | ||
पंक्ति 111: | पंक्ति 101: | ||
चलो पति भूलो मति दीन्हों सुख जदुपति, | चलो पति भूलो मति दीन्हों सुख जदुपति, | ||
सम्पति सो लीजिये समेत सुरूतरू है।।81।। | सम्पति सो लीजिये समेत सुरूतरू है।।81।। | ||
समझायो पुनि कन्त को, मुदित गई लै गेह। | समझायो पुनि कन्त को, मुदित गई लै गेह। | ||
अन्हवायो तुरतहिं उबटि, सुचि सुगन्ध मलि देह।।82।। | अन्हवायो तुरतहिं उबटि, सुचि सुगन्ध मलि देह।।82।। | ||
पूज्यो अधिक सनेह सों, सिंहासन बैठाय। | पूज्यो अधिक सनेह सों, सिंहासन बैठाय। | ||
सुचि सुगन्ध अम्बर रचे, बर भूसन पहिराय।।83।। | सुचि सुगन्ध अम्बर रचे, बर भूसन पहिराय।।83।। | ||
सीतल जल अँचवाइ कै, पानदान धरि पान। | |||
सीतल जल | |||
धर्यो आय आगे तुरत, छवि रवि प्रभा समान।।84।। | धर्यो आय आगे तुरत, छवि रवि प्रभा समान।।84।। | ||
झरहिं चौंर चहुँ ओर तें, रम्भादिक सब नारि। | |||
झरहिं चौंर | |||
प्तिव्रता अति प्रेम सों, ठाढी करै बयारि।।85।। | प्तिव्रता अति प्रेम सों, ठाढी करै बयारि।।85।। | ||
08:51, 8 सितम्बर 2012 का अवतरण
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भाग-3 पुनः ग्रह आगमन |
टीका टिप्पणी और संदर्भ