"दुर्गा खोटे": अवतरणों में अंतर
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====निर्माण एवं निर्देशन==== | ====निर्माण एवं निर्देशन==== | ||
अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फिल्में, विज्ञापन फिल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया। | अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फिल्में, विज्ञापन फिल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया। | ||
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|+दुर्गा खोटे की प्रमुख फिल्में | |||
! वर्ष | |||
! फ़िल्म | |||
! चरित्र | |||
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{| class="bharattable-pink" border="1" width="98%" | |||
|- | |||
| 1983 | |||
| दौलत के दुश्मन | |||
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| 1980 | |||
| कर्ज़ | |||
| शान्ता प्रसाद वर्मा | |||
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| 1977 | |||
| पहेली | |||
| ब्रिजमोहन की माँ | |||
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| 1977 | |||
| डार्लिंग डार्लिंग | |||
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| 1977 | |||
| पापी | |||
| अशोक की माँ | |||
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| 1977 | |||
| चोर सिपाही | |||
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| 1977 | |||
| साहेब बहादुर | |||
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| 1977 | |||
| चाचा भतीजा | |||
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| 1976 | |||
| शक | |||
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| 1976 | |||
| रंगीला रतन | |||
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| 1976 | |||
| जानेमन | |||
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| 1976 | |||
| जय बजरंग बली | |||
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| 1975 | |||
| खुशबू | |||
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| 1975 | |||
| चैताली | |||
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| 1975 | |||
| काला सोना | |||
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| 1974 | |||
| विदाई | |||
| पार्वती | |||
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| 1973 | |||
| अग्नि रेखा | |||
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| 1973 | |||
| बॉबी | |||
| मिसेज़ ब्रैगैन्ज़ा | |||
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| 1973 | |||
| अभिमान | |||
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| 1972 | |||
| बावर्ची | |||
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| 1972 | |||
| राजा जानी | |||
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| 1971 | |||
| बनफूल | |||
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| 1971 | |||
| एक नारी एक ब्रह्मचारी | |||
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| 1970 | |||
| खिलौना | |||
| ठकुराइन सूरज सिंह | |||
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| 1970 | |||
| गोपी | |||
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| 1970 | |||
| [[आनन्द (फ़िल्म)|आनन्द]] | |||
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| 1969 | |||
| जीने की राह | |||
| पार्वती | |||
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| 1969 | |||
| धरती कहे पुकार के | |||
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| 1969 | |||
| प्यार का सपना | |||
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| 1968 | |||
| सपनों का सौदागर | |||
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| 1968 | |||
| संघर्ष | |||
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| 1968 | |||
| झुक गया आसमाँ | |||
| दादी माँ | |||
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| 1967 | |||
| चन्दन का पालना | |||
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| 1966 | |||
| प्यार मोहब्बत | |||
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| 1966 | |||
| अनुपमा | |||
| अशोक की माँ | |||
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| 1966 | |||
| सगाई | |||
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| 1966 | |||
| दादी माँ | |||
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| 1965 | |||
| काजल | |||
| रानी साहिबा | |||
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| 1964 | |||
| कैसे कहूँ | |||
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| 1964 | |||
| दूर की आवाज़ | |||
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| 1964 | |||
| बेनज़ीर | |||
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| 1963 | |||
| मुझे जीने दो | |||
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| 1962 | |||
| मनमौजी | |||
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| 1962 | |||
| मैं शादी करने चला | |||
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| 1961 | |||
| भाभी की चूड़ियाँ | |||
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| 1960 | |||
| पारख | |||
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| 1960 | |||
| [[मुगल-ए-आज़म]] | |||
| महारानी जोधा बाई | |||
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| 1960 | |||
| उसने कहा था | |||
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| 1959 | |||
| अर्द्धांगिनी | |||
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| 1957 | |||
| भाभी | |||
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| 1956 | |||
| राजधानी | |||
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| 1954 | |||
| लकीरें | |||
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| 1954 | |||
| मिर्ज़ा गालिब | |||
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| 1953 | |||
| शिकस्त | |||
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| 1952 | |||
| आँधियां | |||
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| 1952 | |||
| मोरद्वाज | |||
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| 1951 | |||
| आराम | |||
| सीता | |||
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| 1951 | |||
| सज़ा | |||
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| 1950 | |||
| बेकसूर | |||
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| 1950 | |||
| निशाना | |||
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| 1949 | |||
| सिंगार | |||
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| 1949 | |||
| जीत | |||
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| 1935 | |||
| इन्कलाब | |||
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==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
* दुर्गा खोटे को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1983 में [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया। | * दुर्गा खोटे को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1983 में [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया। |
13:42, 21 सितम्बर 2012 का अवतरण
दुर्गा खोटे (अंग्रेज़ी: Durga Khote) (जन्म: 14 जनवरी, 1905− मृत्यु: 22 सितंबर, 1991) अपने जमाने मे हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फिल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तब उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। दुर्गा खोटे ने करीब 200 फिल्मों के साथ ही सैंकड़ों नाटकों में भी अभिनय किया और फिल्मों को लेकर सामजिक वर्जनाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई।
जीवन परिचय
एक प्रतिष्ठित परिवार में 14 जनवरी 1905 को पैदा हुईं दुर्गा खोटे का शुरुआती जीवन सुखमय नहीं रहा और मात्र 26 साल की उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया। दुर्गा खोटे का बचपन तो सामान्य रूप से कटा लेकिन अपनी पसन्द से विवाह के बाद भी उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन व दुख से भरा रहा। अपने पति की ओर से बेहद परेशान रही दुर्गा को जो कुछ खुशी मिली, वह अपने बच्चों से ही मिली।
फ़िल्मों में प्रवेश
पति के निधन के बाद दुर्गा खोटे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी भी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने फिल्मों की राह ली। उस दौर में बहुधा पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे और अधिकतर घरों में फिल्मों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। दुर्गा खोटे मूक फिल्मों के दौर में ही फिल्मों में आ गई थी और 'फरेबी जाल' उनकी पहली फिल्म थी। बतौर नायिका 'अयोध्येचा राजा' उनकी पहली फिल्म थी जो मराठी के साथ साथ हिंदी में भी थी। यह फिल्म कामयाब रही और दुर्गा खोटे नायिका के रूप में सिनेमा की दुनिया में स्थापित हो गईं। दुर्गा खोटे की कामयाबी ने कइयों को प्रेरित किया और हिंदी फिल्मों से जुड़ी सामाजिक वर्जना टूटने लगी। दुर्गा खोटे ने एक और पहल करते हुए स्टूडियो व्यवस्था को भी दरकिनार कर दिया और फ्रीलांस कलाकार बन गई। स्टूडियो सिस्टम में कलाकार मासिक वेतन पर किसी एक कंपनी के लिए काम करते थे। लेकिन दुर्गा खोटे ने इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए एक साथ कई फिल्म कंपनियों के लिए काम किया।[1]
लड़कियों को दिखाई फिल्म की राह
दुर्गा खोटे के फिल्मों में काम करने से पहले पुरुष ही स्त्री पात्र भी निभाते थे। हिन्दी फिल्मों के पितामह दादा साहेब फाल्के ने जब पहली हिन्दी फीचर फिल्म “राजा हरिश्चंद्र” बनायी तो उन्हें राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई महिला नहीं मिली। उन्हें मजबूर होकर एक युवक सालुंके से यह भूमिका करानी पडी। इस स्थिति को देखकर दुर्गा खोटे ने फिल्मों में काम करने का फैसला किया और उनके इस कदम से सम्मानित परिवारों की लड़कियों के लिए भी फिल्मों के दरवाजे खोलने में मदद मिली। उन्होंने 1931 में प्रभात फिल्म कम्पनी की मूक फिल्म ‘फरेबी जाल’ में एक छोटी सी भूमिका से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की लेकिन उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा और फिल्मों से उनका मोहभंग हो गया था। वह शायद फिर फिल्मों में काम नहीं करतीं लेकिन निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम ने उन्हें मराठी और हिन्दी भाषाओं में बनने वाली अपनी अगली फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ 1932, में रानी तारामती की भूमिका के लिए किसी तरह मना लिया। उन्होंने इस काम के लिए फिल्म के नायक गोविंदराव तेम्बे की मदद ली। कहा जाता है कि तेम्बे शांताराम बापू के साथ दुर्गा खोटे के घर इतनी बार गए कि उनका रंग काला पड गया और लोग कहने लगे थे कि उन्हें ‘अयोध्येचा राजा’ कहा जाए या ‘अफ्रीकाचा राजा’ बोला जाए।
मराठी की इस पहली सवाक् फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद दुर्गा खोटे ने फिर पलट कर नहीं देखा। प्रभात फिल्म कंपनी की ही 1936 में बनी फिल्म ‘अमर ज्योति’ से वह सुर्खियों में आ गयीं। 1934 में कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी ने ‘सीता’ फिल्म का निर्माण किया, जिसमें उनके नायक पृथ्वीराज कपूर थे। देवकी कुमार बोस निर्देशित इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें शीर्ष अभिनेत्रियों की कतार में खडा कर दिया। वह भारतीय अभिनेत्रियों की कई पीढियों की प्रेरणास्रोत रहीं। इनमें शोभना समर्थ जैसी नायिकाएं भी शामिल थीं जो बताया करती थीं कि किस तरह दुर्गा खोटे से उन्हें प्रेरणा मिली।[2]
यादगार फ़िल्में
हिंदी फिल्मों में उन्हें मां की भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है। फिल्मकार के. आसिफ की बहुचर्चित फिल्म मुगल ए आजम में जहां उन्होंने सलीम की मां जोधाबाई की यादगार भूमिका निभाई वहीं उन्होंने विजय भट्ट की 'भरत मिलाप' में कैकेई की भूमिका को भी जीवंत बना दिया। बतौर मां उन्होंने चरणों की दासी, मिर्जा गालिब, बॉबी, विदाई जैसी फिल्मों में भी बेहतरीन भूमिका की।
- ‘माया मछिन्द्र’
प्रभात कंपनी की ही फिल्म ‘माया मछिन्द्र’ 1932 में दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने, हाथ में तलवार पकडी और सिर पर शिरस्त्राण पहना। फिल्म के एक दृश्य में एक बाज ने एक चरित्र अभिनेता पर सचमुच हमला कर दिया तो दुर्गा खोटे ने उसे पकड लिया और उसे तब तक काबू में किए रखा जब तक उसका प्रशिक्षक नहीं आ गया। इस तरह की भूमिकाओं ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करने का काम किया।
निर्माण एवं निर्देशन
अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फिल्में, विज्ञापन फिल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में 'साथी' नाम की एक फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।
वर्ष | फ़िल्म | चरित्र |
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सम्मान और पुरस्कार
- दुर्गा खोटे को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1983 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।
- उन्हें 1968 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
- बिदाई में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
आत्मकथा
दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथा (मी दुर्गा खोटे) भी लिखी जिसकी व्यापक सराहना हुई। मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी आत्मकथा का अंग्रेज़ी में भी अनुवाद हुआ है।
निधन
सिनेमा जगत में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इस हस्ती का 22 सितंबर 1991 में निधन हो गया। हिंदी एवं मराठी फिल्मों के अलावा रंगमंच की दुनिया में करीब पांच दशक तक सक्रिय रहीं दुर्गा खोटे अपने दौर की प्रमुख हस्तियों में थी जिन्होंने फिल्मों में महिलाओं की राह सुगम बनाई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दुर्गा खोटे: सिने जगत में महिलाओं की राह सुगम बनाई (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2012।
- ↑ दुर्गा खोटे ने अमीर लडकियों को दिखाई फिल्म की राह (हिन्दी) (पी.एच.पी) cgnewsupdate। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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