"उज्जयिनी शक्तिपीठ": अवतरणों में अंतर
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'''उज्जयिनी शक्तिपीठ''' [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ [[उज्जैन]] के निकट [[शिप्रा नदी]] के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ [[गुजरात]] के [[गिरनार पर्वत]] के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। | |||
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'''उज्जयिनी शक्तिपीठ''' [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। [[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है। | [[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है। भूत-भावना [[महाकालेश्वर]] की क्रीड़ा-स्थली 'अवंतिका' ([[उज्जैन]]) पावन शिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। वहीं [[पार्वती]] हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है। मान्यता है कि यहाँ [[सती]] की कुहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कुहनी की [[पूजा]] होती है। यहाँ की शक्ति 'मंगल चण्डिका' तथा भैरव 'मांगल्य कपिलांबर हैं- | ||
भूत-भावना महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली अवंतिका ([[उज्जैन]]) पावन | |||
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भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।<ref>[[स्कंद पुराण]], अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य</ref></poem></blockquote> | भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।<ref>[[स्कंद पुराण]], अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य</ref></poem></blockquote> | ||
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कहते हैं | कहते हैं कि प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव [[कमल|कमलपुष्पों]] से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि' का तथा पूर्वी तट पर '[[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकालेश्वर]]' का मंदिर था। 18वीं [[शताब्दी]] में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहार दीवारी से घिरा है। | ||
====देवी प्रतिमा==== | |||
मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती [[अन्नपूर्णा देवी|अन्नपूर्णा]] की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में [[महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], [[सरस्वती|महासरस्वती]] की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर [[संवत]] 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। | |||
==पौराणिक उल्लेख== | |||
[[शिवपुराण]] के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें [[विक्रमादित्य]] की आराध्या माना जाता है। [[स्कंद पुराण]]<ref>[[स्कंद पुराण]] के अवंतिका खण्ड (उज्जयिनी माहात्म्य)</ref> में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों [[नवरात्र|नवरात्रों]] में यहाँ उनकी महापूजा होती है- | |||
<blockquote>नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया</blockquote> | |||
प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर [[द्वारका]] ([[सौराष्ट्र]]) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। [[इंदौर]] से 80 किलोमीटर दूर [[पुणे]] मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का [[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग)]] तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं। | दोनों दीप स्तंभों पर [[दीपक|दीप]] जलाए जाते हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े [[नगाड़ा|नगाड़े]] रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। | ||
====विशेष तथ्य==== | |||
प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर [[द्वारका]] ([[सौराष्ट्र]]) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। [[इंदौर]] से 80 किलोमीटर दूर [[पुणे]] मार्ग पर स्थित [[उज्जैन]] प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का [[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग)]] तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं। | |||
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09:10, 25 सितम्बर 2014 का अवतरण
उज्जयिनी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
मान्यता
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। भूत-भावना महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली 'अवंतिका' (उज्जैन) पावन शिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। वहीं पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है। मान्यता है कि यहाँ सती की कुहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कुहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति 'मंगल चण्डिका' तथा भैरव 'मांगल्य कपिलांबर हैं-
उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।[1]
तीर्थस्थल
कहते हैं कि प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि' का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर' का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहार दीवारी से घिरा है।
देवी प्रतिमा
मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं।
पौराणिक उल्लेख
शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण[2] में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी महापूजा होती है-
नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया
दोनों दीप स्तंभों पर दीप जलाए जाते हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं।
विशेष तथ्य
प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। इंदौर से 80 किलोमीटर दूर पुणे मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग) तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं।
इन्हें भी देखें: भैरवपर्वत शक्तिपीठ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्कंद पुराण, अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य
- ↑ स्कंद पुराण के अवंतिका खण्ड (उज्जयिनी माहात्म्य)
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