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'''मंगल कलश''' [[भारतीय संस्कृति]] के प्रतीकों में से एक है। वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना [[हिन्दू धर्म]] की विशेषता है। हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।  
'''मंगल कलश''' [[भारतीय संस्कृति]] के प्रतीकों में से एक है। वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना [[हिन्दू धर्म]] की विशेषता है। हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।  
==भारतीय संस्कृति में मंगल कलश का महत्त्व==
==भारतीय संस्कृति में मंगल कलश का महत्त्व==
भारतीय संस्कृति में [[फूल|फूलों]] और [[जल]] से परिपूर्ण कलश की स्थापना पूजा अर्चना आदि सभी संस्कारों में की जाती है। पूजा पाठ में भी कलश किसी न किसी रूप में स्थापित किया जाता है। कलश के मुख पर [[ब्रह्मा]], ग्रीवा में [[शिव|शंकर]] और मूल में [[विष्णु]] तथा मध्य में मातृगणों का वास होता है। ये सभी [[देवता]] कलश में प्रतिष्ठित होकर शुभ कार्य संपन्न कराते हैं। हमारे प्राचीन साहित्य में कलश की बहुत सराहना की गई है। [[अथर्ववेद]] में [[घी]] और अमृतपूरित कलश का वर्णन है। वहीं [[ऋग्वेद]] में सोमपूरित कलश के बारे में बताया गया है। मंगल का प्रतीक कलश अष्ट मांगलिकों में से एक होता है। [[जैन साहित्य]] में कलशाभिषेक का महत्वपूर्ण स्थान है। जो जल से सुशोभित है वही कलश है। [[भारतीय संस्कृति]] में कलश को विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जीवन के हर क्षेत्र में धार्मिक कार्य का शुभारंभ मंगल कलश स्थापित करके ही किया जाता है। छोटे अनुष्ठानों से लेकर बड़े-बड़े धार्मिक कार्यों में कलश का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार कलश भारतीय संस्कृति का वो प्रतीक है जिसमें समस्त मांगलिक भावनाएं निहित होती हैं।<ref name="wdh">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-article/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%95-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%B6-1111231149_1.htm |title=भारतीय संस्कृति का प्रतीक मंगल कलश |accessmonthday=23 नवम्बर  |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेबदुनिया हिंदी |language=हिंदी  }}</ref>
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==पौराणिक उल्लेख==
==पौराणिक उल्लेख==
* कलश की उत्पत्ति के विषय में अनेक कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से एक [[समुद्र मंथन]] से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीने के लिए [[विश्वकर्मा]] ने कलश का निर्माण किया। मंदिरों में प्रायः कलश शिवलिंग के ऊपर स्थापित होता है जिसमें से निरंतर जल की बूंदें शिवलिंग पर पड़ती रहती है।<ref name="wdh"/>
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08:01, 1 अगस्त 2013 का अवतरण

मंगल कलश

मंगल कलश भारतीय संस्कृति के प्रतीकों में से एक है। वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना हिन्दू धर्म की विशेषता है। हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।

भारतीय संस्कृति में मंगल कलश का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में फूलों और जल से परिपूर्ण कलश की स्थापना पूजा अर्चना आदि सभी संस्कारों में की जाती है। पूजा पाठ में भी कलश किसी न किसी रूप में स्थापित किया जाता है। कलश के मुख पर ब्रह्मा, ग्रीवा में शंकर और मूल में विष्णु तथा मध्य में मातृगणों का वास होता है। ये सभी देवता कलश में प्रतिष्ठित होकर शुभ कार्य संपन्न कराते हैं। हमारे प्राचीन साहित्य में कलश की बहुत सराहना की गई है। अथर्ववेद में घी और अमृतपूरित कलश का वर्णन है। वहीं ऋग्वेद में सोमपूरित कलश के बारे में बताया गया है। मंगल का प्रतीक कलश अष्ट मांगलिकों में से एक होता है। जैन साहित्य में कलशाभिषेक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जो जल से सुशोभित है वही कलश है। भारतीय संस्कृति में कलश को विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जीवन के हर क्षेत्र में धार्मिक कार्य का शुभारंभ मंगल कलश स्थापित करके ही किया जाता है। छोटे अनुष्ठानों से लेकर बड़े-बड़े धार्मिक कार्यों में कलश का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार कलश भारतीय संस्कृति का वो प्रतीक है जिसमें समस्त मांगलिक भावनाएं निहित होती हैं।[1]

पौराणिक उल्लेख

  • कलश की उत्पत्ति के विषय में अनेक कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से एक समुद्र मंथन से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीने के लिए विश्वकर्मा ने कलश का निर्माण किया। मंदिरों में प्रायः कलश शिवलिंग के ऊपर स्थापित होता है जिसमें से निरंतर जल की बूंदें शिवलिंग पर पड़ती रहती है।[1]
  • रामायण में बताया गया है कि श्रीराम का राज्याभिषेक कराने के लिए राजा दशरथ ने सौ सोने के कलशों की व्यवस्था की थी। राजा हर्ष भी अपने अभियान में स्वर्ण एवं रजत कलशों से स्नान करते थे। जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक कलश अनेक रूपों में उपयोग होता है। [1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारतीय संस्कृति का प्रतीक मंगल कलश (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 23 नवम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख