"रक्षा मंत्रालय": अवतरणों में अंतर
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[[भारत]] के पड़ोसी देश विभिन्न राजनीतिक अनुभवों, प्रयोगों और परिस्थितियों के बीच परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं। भारत सरकार देश के सीमा क्षेत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है। [[भारतीय सशस्त्र सेना|भारतीय सशस्त्र सेनाओं]] की कमान [[राष्ट्रपति]] के पास है और देश की रक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के पास है। यह कार्य रक्षा मंत्रालय द्वारा होता है जो देश में रक्षा के संदर्भ में नीतिगत ढांचे और सशस्त्र बलों को जिम्मेदारियां प्रदान करता है। रक्षा मंत्री रक्षा मंत्रालय का प्रमुख होता है। | [[भारत]] के पड़ोसी देश विभिन्न राजनीतिक अनुभवों, प्रयोगों और परिस्थितियों के बीच परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं। भारत सरकार देश के सीमा क्षेत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है। [[भारतीय सशस्त्र सेना|भारतीय सशस्त्र सेनाओं]] की कमान [[राष्ट्रपति]] के पास है और देश की रक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के पास है। यह कार्य रक्षा मंत्रालय द्वारा होता है जो देश में रक्षा के संदर्भ में नीतिगत ढांचे और सशस्त्र बलों को जिम्मेदारियां प्रदान करता है। रक्षा मंत्री रक्षा मंत्रालय का प्रमुख होता है। | ||
==राजनीतिक गतिविधियाँ== | |||
21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में इस बात के साक्ष्य उत्तरोत्तर बढ़ते रहे हैं कि सीमाएं इन सुरक्षा खतरों को रोक सकने में अक्षम रही है। भारत का हर पड़ोसी एक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जिससे वहां राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं और विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं। आतंकवाद और हथियार, ड्रग्स एवं आणविक तकनीक का विस्तार खतरे उत्पन्न कर रहा है, जिस पर लगातार ध्यान दिए जाने की जरूरत है। | |||
* वर्ष 2008 में हुए विकासों के चलते, विशेषकर वैश्विक आर्थिक प्रणाली की चुनौतियों ने वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा में तनावों को उत्पन्न किया है। | |||
* उग्रवादी और आतंकी संगठनों के साथ पाकिस्तान के सम्मिलन ने अधिक जटिलताओं और खतरों को उत्पन्न किया है, जिससे हमें दो चार होना पड़ रहा है। इसलिए आंतरिक और सीमाओं दोनों स्तरों पर हमारे सुरक्षा उपकरणों की मजबूती सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता है। | |||
* [[चीन]] के सुदूर जल में अभियानों के संचालन के लिए समुद्री बेड़े और सामरिक मिसाइल तथा आकाशीय प्रक्षेपास्त्रों का विस्तार, साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों में क्रमिक ढांचागत विकास, गहन सर्वेक्षण और निगरानी, चौकसी, त्वरित प्रतिक्रिया और अभियानात्मक क्षमताओं की बढ़ोतरी को अपने श्वतेपत्र में घोषित उद्देश्यों के रूप में शामिल करने को भारत की रक्षा-सुरक्षा पर निकट भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों के मद्देनजर, सजग जांच-पड़ताल की जरूरत है। वैसे ही पाकिस्तान के साथ इसका सहयोग और इसकी सैन्य सहायता, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य के अवैध पाकिस्तानी कब्जे वाले भू-भाग के जरिए पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाए जाने की संभावना शामिल है, का भारत पर सीधा सैन्य प्रभाव पड़ेगा। | |||
* भारत की विश्वसनीय न्यूनतम भयकारी/हतोत्साहन की नीति का क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में महत्वपूर्ण योगदान है। न्यूनतम हतोत्साहन की स्थिति रखते हुए भारत ने 'प्रथम प्रयोग नहीं' की नीति एवं गैर-परमाणु हथियार वाले देशों के लिए 'प्रयोग नहीं' की नीति की घोषणा की है। साथ ही, भारत स्वैच्छिक रूप से आणविक परीक्षण के एकपक्षीय विलंबन/स्थगन की स्थिति भी बनाए रखता है। | |||
* आवर्धित समुद्री सुरक्षा को लंबी तटरेखा की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए जो पश्चिम में [[अरब सागर]], पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] एवं दक्षिण में विशाल [[हिंद महासागर]] से लगी हुई है। तटीय इलाकों में बढ़ी आर्थिक गतिविधियों और शहरों के विकास ने भी सुरक्षा जरूरतों को बढ़ाया है। | |||
* हाल के कुछ वर्षों में, जहाजरानी मुद्दे जैसे- समुद्री पथों की सुरक्षा, गहरे समुद्र में लूटपाट, ऊर्जा सुरक्षा, डब्ल्यूएमडी, आतंकवाद आदि भारत की सुरक्षा में महत्वपूर्ण तत्व बन गए हैं। [[भारतीय नौसेना]] ने हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री लूटपाट के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई है। [[मुंबई]] के आतंकी हमलों ने एक बार फिर भारत की सुरक्षा में जहाजरानी की महत्ता को विशिष्टता प्रदान की है। | |||
* उत्तरोत्तर विकसित हो रही अर्थव्यवस्था ने सुरक्षित और शांत विश्व के निर्माण में भारत की भूमिका को बढ़ाया है। विकास, स्थायित्व और शाति की स्थापना के लिए एक शक्तिशाली रक्षा ताकत का होना अनिवार्य आवश्यकता है। सभी प्रकार पारंपरिक और गैरपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए न्यूनतम प्रतिरक्षा विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता भारत पहले ही जाहिर कर चुका है। | |||
*सशस्त्र बलों का सर्वोच्च नियंत्रण [[भारत के राष्ट्रपति]] में निहित होता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के हाथ में होती है। देश के सुरक्षा से सम्बंधित सभी मामलों के लिये रक्षा मंत्री संसद के सामने जिम्मेदार होता है। सशत्र सेनाओं के प्रशासनिक और संचालन सम्बंधित नियंत्रण रक्षा मंत्रालय और तीनों सेवा मुख्यालयों के द्वारा किया जाता है। | |||
==रक्षा मंत्रालय के कार्य== | ==रक्षा मंत्रालय के कार्य== | ||
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। सरकार के नीति निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा आवंटित संसाधनों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्यान्वित करना भी उसका काम है। | रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। सरकार के नीति निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा आवंटित संसाधनों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्यान्वित करना भी उसका काम है। | ||
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*[http://bharat.gov.in/outerwin.php?id=http://mod.nic.in/ आधिकारिक वेबसाइट (रक्षा मंत्रालय)] | |||
*[http://bharat.gov.in/sectors/defence/index.php रक्षा] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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10:39, 29 नवम्बर 2012 का अवतरण
भारत के पड़ोसी देश विभिन्न राजनीतिक अनुभवों, प्रयोगों और परिस्थितियों के बीच परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं। भारत सरकार देश के सीमा क्षेत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं की कमान राष्ट्रपति के पास है और देश की रक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के पास है। यह कार्य रक्षा मंत्रालय द्वारा होता है जो देश में रक्षा के संदर्भ में नीतिगत ढांचे और सशस्त्र बलों को जिम्मेदारियां प्रदान करता है। रक्षा मंत्री रक्षा मंत्रालय का प्रमुख होता है।
राजनीतिक गतिविधियाँ
21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में इस बात के साक्ष्य उत्तरोत्तर बढ़ते रहे हैं कि सीमाएं इन सुरक्षा खतरों को रोक सकने में अक्षम रही है। भारत का हर पड़ोसी एक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जिससे वहां राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं और विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं। आतंकवाद और हथियार, ड्रग्स एवं आणविक तकनीक का विस्तार खतरे उत्पन्न कर रहा है, जिस पर लगातार ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
- वर्ष 2008 में हुए विकासों के चलते, विशेषकर वैश्विक आर्थिक प्रणाली की चुनौतियों ने वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा में तनावों को उत्पन्न किया है।
- उग्रवादी और आतंकी संगठनों के साथ पाकिस्तान के सम्मिलन ने अधिक जटिलताओं और खतरों को उत्पन्न किया है, जिससे हमें दो चार होना पड़ रहा है। इसलिए आंतरिक और सीमाओं दोनों स्तरों पर हमारे सुरक्षा उपकरणों की मजबूती सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
- चीन के सुदूर जल में अभियानों के संचालन के लिए समुद्री बेड़े और सामरिक मिसाइल तथा आकाशीय प्रक्षेपास्त्रों का विस्तार, साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों में क्रमिक ढांचागत विकास, गहन सर्वेक्षण और निगरानी, चौकसी, त्वरित प्रतिक्रिया और अभियानात्मक क्षमताओं की बढ़ोतरी को अपने श्वतेपत्र में घोषित उद्देश्यों के रूप में शामिल करने को भारत की रक्षा-सुरक्षा पर निकट भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों के मद्देनजर, सजग जांच-पड़ताल की जरूरत है। वैसे ही पाकिस्तान के साथ इसका सहयोग और इसकी सैन्य सहायता, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य के अवैध पाकिस्तानी कब्जे वाले भू-भाग के जरिए पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाए जाने की संभावना शामिल है, का भारत पर सीधा सैन्य प्रभाव पड़ेगा।
- भारत की विश्वसनीय न्यूनतम भयकारी/हतोत्साहन की नीति का क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में महत्वपूर्ण योगदान है। न्यूनतम हतोत्साहन की स्थिति रखते हुए भारत ने 'प्रथम प्रयोग नहीं' की नीति एवं गैर-परमाणु हथियार वाले देशों के लिए 'प्रयोग नहीं' की नीति की घोषणा की है। साथ ही, भारत स्वैच्छिक रूप से आणविक परीक्षण के एकपक्षीय विलंबन/स्थगन की स्थिति भी बनाए रखता है।
- आवर्धित समुद्री सुरक्षा को लंबी तटरेखा की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए जो पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी एवं दक्षिण में विशाल हिंद महासागर से लगी हुई है। तटीय इलाकों में बढ़ी आर्थिक गतिविधियों और शहरों के विकास ने भी सुरक्षा जरूरतों को बढ़ाया है।
- हाल के कुछ वर्षों में, जहाजरानी मुद्दे जैसे- समुद्री पथों की सुरक्षा, गहरे समुद्र में लूटपाट, ऊर्जा सुरक्षा, डब्ल्यूएमडी, आतंकवाद आदि भारत की सुरक्षा में महत्वपूर्ण तत्व बन गए हैं। भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री लूटपाट के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई है। मुंबई के आतंकी हमलों ने एक बार फिर भारत की सुरक्षा में जहाजरानी की महत्ता को विशिष्टता प्रदान की है।
- उत्तरोत्तर विकसित हो रही अर्थव्यवस्था ने सुरक्षित और शांत विश्व के निर्माण में भारत की भूमिका को बढ़ाया है। विकास, स्थायित्व और शाति की स्थापना के लिए एक शक्तिशाली रक्षा ताकत का होना अनिवार्य आवश्यकता है। सभी प्रकार पारंपरिक और गैरपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए न्यूनतम प्रतिरक्षा विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता भारत पहले ही जाहिर कर चुका है।
- सशस्त्र बलों का सर्वोच्च नियंत्रण भारत के राष्ट्रपति में निहित होता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के हाथ में होती है। देश के सुरक्षा से सम्बंधित सभी मामलों के लिये रक्षा मंत्री संसद के सामने जिम्मेदार होता है। सशत्र सेनाओं के प्रशासनिक और संचालन सम्बंधित नियंत्रण रक्षा मंत्रालय और तीनों सेवा मुख्यालयों के द्वारा किया जाता है।
रक्षा मंत्रालय के कार्य
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। सरकार के नीति निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा आवंटित संसाधनों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्यान्वित करना भी उसका काम है।
रक्षा मंत्रालय के विभाग
रक्षा मंत्रालय चार विभागों का मिला जुला रूप है जो निम्नलिखित है-
- 1. रक्षा विभाग (डीओडी)
रक्षा विभाग एकीकृत रक्षा स्टाफ और तीनों सेनाओं तथा विभिन्न अंतर सेवा संगठनों की जिम्मेदारियों का वहन करता है। रक्षा बजट, स्थापना कार्य, रक्षा नीति, संसद से जुड़े मुद्दे, बाहरी देशों के साथ रक्षा सहयोग तथा समस्त क्रियाकलापों का समन्वय इसी विभाग के दायित्व हैं।
- 2 रक्षा उत्पाद विभाग (डीडीपी)
रक्षा उत्पादन विभाग का प्रमुख सचिव इसका प्रमुख होता है और यह रक्षा उत्पादन, आयातित भंडार के स्वदेशीकरण, उपकरणों और अतिरिक्त कलपुर्जों तथा हथियार कारखाना बोर्ड और सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उद्यमों की विभागीय उत्पादन इकाइयों के नियंत्रण संबंधी कार्यों को निपटाता है।
- 3. रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग (डीआरडीओ)
रक्षा, शोध तथा विकास विभाग का प्रमुख सचिव होता है जो रक्षा मंत्री का सलाहकार भी होता है। इसका काम सैनिक साजो-सामान के वैज्ञानिक पक्ष, संचालन तथा सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले उपकरणों से संबंधित शोध, डिजाइन और विकास की योजनाएं बनाना है।
- 4. पूर्व सैनिकों के कल्याण और वित्त प्रभाग
भूतपूर्व सैनिक/रक्षाकर्मी कलयाण विभाग का प्रमुख एक अतिरिक्त सचिव होता है। इसके जिम्मे पेंशनयाफ्ता भूतपूर्व सैनिकों, भूतपूर्व कर्मचारी स्वास्थ्य योजना, पुनःनियोजन और केंद्रीय सैनिक बोर्ड महानिदेशालय तथा तीनों रक्षा सेवाओं के पेंशन नियमों से जुड़े मुद्दों का निष्पादन है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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