"प्यासा (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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09:19, 13 दिसम्बर 2012 का अवतरण
जिस प्रकार साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। उसी प्रकार फ़िल्में भी समकालीन परिस्तिथियों से प्रभावित होती हैं। फिल्म 'प्यासा' भी तत्कालिक प्रभावों से अछूती नहीं है। समाज के छल और कपट से आक्रोशित नायक द्वारा अपना मौलिक अस्तित्व को ही अस्वीकार कर देना, इस चरम सीमा की इसी हताशा को गुरुदत्त ने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
टाइम की वेबसाइट ने 10 सर्वश्रेष्ठ रोमांटिक फ़िल्मों की एक सूची पेश की है। जिसमें ‘प्यासा’ को शीर्ष पांच फ़िल्मों में स्थान दिया गया है। यह फ़िल्म 1957 में आई थी। इस फ़िल्म में एक संघर्षशील कवि और उसकी एक सेक्स वर्कर के साथ दोस्ती को खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया गया है। 'प्यासा' में आजादी से पहले के भारत के हालात दर्शाए गए हैं। इसके पहले टाइम पत्रिका ने वर्ष 2005 में भी ‘प्यासा’ को सर्वश्रेष्ठ 100 फ़िल्मों में शामिल किया था। टाइम पत्रिका का कहना है कि भारतीय फ़िल्मों में अब भी परिवार के प्रति निष्ठा और सभी का प्यार से दिल जीतने की भावना देखने को मिलती है। टाइम की सूची में पहले स्थान पर 'सन ऑफ द शेख' (1926), दूसरे पर 'डॉड्सवर्थ' (1939), तीसरे पर 'कैमिली' (1939), चौथे पर 'एन एफे़यर टू रिमेम्बर' (1957) और पांचवे स्थान पर 'प्यासा' (1957) को रखा गया है।[1]
कथानक
आज़ादी के 10 वर्ष बाद 1957 में रिलीज फिल्म "प्यासा" संघर्षरत कवि विजय (गुरुदत्त) की कहानी है, जो श्रेष्ठ होते हुए भी अपनी कृतियों को स्थान नहीं दिला पाए। विजय की रचनाएँ अमीरों के अत्याचारों का विरोध व गरीबों के समर्थन में हैं। पर प्रकाशकों ने उनका महत्व न समझा और स्वयं उनके भाई उनके लेखन को व्यर्थ समझते हैं तथा उनकी रचनाओं को एक कबाड़ी को बेच देते हैं। ये रचनाएं संयोग से गुलाबो (वहीदा रहमान) खरीदती है तथा इन पंक्तियों को गुनगुनाती है। समाज के ढर्रे से त्रस्त विजय घर छोड़ देता है और उसका अधिकांश समय सड़कों पर ही गुजरता है। एक संयोगवश गुलाबो की भेंट विजय की मित्र मीना (माला सिन्हा) से होती है जिसने विजय की गरीबी के कारण एक प्रकाशक घोष बाबू (रहमान) से शादी कर ली। परन्तु वह अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं है और वापस विजय के जीवन में आना चाहती है,परन्तु विजय को मंज़ूर नहीं।
दूसरी ओर विजय को एक दुर्घटना में चोट लगती है और वह एक संयोगवश मृत समझ लिया जाता है। गुलाबो अपने कुछ अन्य प्रभावशाली परिचितों की सहायता से विजय की रचनाएं प्रकाशित करा देती है। ये कवितायेँ घोष इस आशा से प्रकाशित करता है कि वह विजय की मृत्यु से उपजी सहानुभूति का लाभ उठाकर धन कमा लेगा पर उसके भाई (महमूद) घोष के पास जाते है और वो पैसा हथियाने के लिए प्रयास करते हैं।
परन्तु विजय जीवित है और उसका इलाज़ एक मानसिक रोग अस्पताल में चल रहा है। एक दिन नर्स से अपनी ही प्रकाशित रचना सुन कर तथा अपनी प्रसिद्धि का समाचार जान कर विजय सामान्य हो जाता है। परन्तु कोई उसका विश्वास नहीं करता तथा उसको पागलों वाले कमरे में ही रखा जाता है। घोष को जब यह पता चलता है तो वह विजय के मित्र श्याम व भाईयों को अपने रचे षड्यंत्र में शामिल कर लेता है तथा सब मिल कर उसको पहचानने से मना कर देते हैं। फिर शुरू होती है विजय की दुनिया के सामने अपना अस्तित्व साबित करने की कशमकश।[2]
कहानीकार
अबरार अली की लिखी यह कहानी एक सन्देश समेटे हुए है और ये सन्देश अपने उत्कृष्ट अभिनय के माध्यम से गुरुदत्त,वहीदा रहमान , जॉनी वाकर ,रहमान व माला सिन्हा ने प्रस्तुत किया है।
निर्देशन
गुरु दत्त का निर्देशन ठोस है और उन्होंने बेहद उम्दा पटकथा दी है। फिल्म का चरम दिल छू लेने वाला है और पूरे फिल्म की जान है\ गुरु दत्त ने एक बेहतरीन और भावुक चरम से दुनिया की सच्चाई सामने रखने की कोशिश की है।
संगीत
फिल्म में संगीत ठोस है और फिल्म की थीम पर सही बैठता है। एस. डी. बर्मन का संगीत तथा मोहम्मद रफ़ी के गाये कुछ गीत आज भी उतने ही पसंद किये जाते हैं|
क्रमांक | गाना | गायक/ गायिका का नाम |
---|---|---|
1. |
आज सजन मोहे संग लगा लो |
गीता दत्त |
2. | हम आपकी आँखों में इस दिल को | गीता दत्त, मोहम्मद रफ़ी |
3. | सर जो तेरा चकराये | मोहम्मद रफ़ी |
4. | जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को | हेमंत कुमार |
5. | ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है | मोहम्मद रफ़ी |
6. | जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं | मोहम्मद रफ़ी |
7. | जाने क्या तूने कही | गीता दत्त |
8. | तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िंदगी से हम | मोहम्मद रफ़ी |
9. | ये हँसते हुए फूल, यह महका हुआ गुलशन | मोहम्मद रफ़ी |
10. | गम इस क़दर बढ़े कि मैं घबरा के पी गया | मोहम्मद रफ़ी |
संवाद
फिल्म में संवाद भी अबरार अल्वी के हैं,जो फिल्म की जान हैं। "अपने शौक के लिए प्यार करती है और अपने आराम के लिए प्यार बेचती है" संवाद विजय के साथ हुई बेवफ़ाई बयान करती है। वही "तो मै यहाँ क्या कर रहा हूँ मैं जिन्दा क्यों हूँ ,गुलाबो" निराश हताश विजय की दुर्दशा दिखाती है। हालाँकि फिल्म एक दृष्टि से बहुत ही धीमे चलती है और कुछ स्थानों पर थोड़ी बोरियत सी लगती है। पर गीत, संगीत, अभिनय, संवाद शेष सभी कसौटियों पर खरी उतरती है।
कलाकार
प्यासा में गुरु दत्त और वहीदा रहमान ने प्रमुख भूमिका निभाई हैं।
क्रमांक | कलाकार | पात्र का नाम | विशेष |
---|---|---|---|
1. | माला सिन्हा | मीना | |
2. | गुरुदत्त | विजय | कवि |
3. | वहीदा रहमान | गुलाबो | |
4. | रहमान | मि. घोष | प्रकाशक, मीना के पति |
5. | जॉनी वाकर | अब्दुल सत्तार | तेल मालिश करने वाला |
6. | कुमकुम | जूही | |
7. | लीला मिश्रा | विजय की माँ | माँ |
8. | महमूद | विजय का भाई | भाई |
9. | टुनटुन | पुष्पलता |
महत्त्व
गुरुदत्त की 'प्यासा' आज भी उतना ही महत्व रखती और और शायद इसलिए ही इस फिल्म की आज भी उतनी ही महता है।
क्रमांक | विभाग | नाम |
---|---|---|
1. |
निर्देशक |
गुरुदत्त |
2. | निर्माता | गुरुदत्त |
3. | लेखक, कहानीकार | अबरार अल्वी |
4. | कलाकार | गुरुदत्त, माला सिन्हा, वहीदा रहमान, महमूद, रहमान |
5. | संगीत | एस.डी.बर्मन |
6. | फिल्म रिलीज़ | 19 फरवरी,1957 |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्यासा सबसे रोमांटिक फ़िल्मों में से एक: टाइम (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2012।
- ↑ प्यासा (Pyaasa Movie) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2012।
- ↑ Pyaasa (1973) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2012।
- ↑ Pyaasa (1957) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2012।
- ↑ प्यासा (Pyaasa Movie) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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