"अमिता (उपन्यास)": अवतरणों में अंतर
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) ('साहित्यकार यशपाल का 'अमिता' उपन्यास '[[दिव्या (उपन्य...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
साहित्यकार [[यशपाल]] का 'अमिता' उपन्यास '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्या]]' की भाँति ऐतिहासिक है। ‘अमिता’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कल्पना को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है। इस उपन्यास के प्राक्कथन में यशपाल स्वयं इसके मूल मन्तव्य की ओर इशारा करते हैं–‘विश्वशान्ति के प्रयत्नों में सहयोग देने के लिए मुझे भी तीन वर्ष में दो बार यूरोप जाना पड़ा है। स्वभावतः इस समय (1954-1956) में लिखे मेरे इस उपन्यास में, मुद्दों द्वारा लक्ष्यों को प्राप्त करने अथवा समस्याओं को सुलझाने की नीति की विफलता का विचार कहानी का मेरुदंड बन गया है।’ | साहित्यकार [[यशपाल]] का 'अमिता' उपन्यास '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्या]]' की भाँति ऐतिहासिक है। ‘अमिता’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कल्पना को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है। इस उपन्यास के प्राक्कथन में यशपाल स्वयं इसके मूल मन्तव्य की ओर इशारा करते हैं–‘विश्वशान्ति के प्रयत्नों में सहयोग देने के लिए मुझे भी तीन वर्ष में दो बार यूरोप जाना पड़ा है। स्वभावतः इस समय (1954-1956) में लिखे मेरे इस उपन्यास में, मुद्दों द्वारा लक्ष्यों को प्राप्त करने अथवा समस्याओं को सुलझाने की नीति की विफलता का विचार कहानी का मेरुदंड बन गया है।’ | ||
==कथानक== | ==कथानक== | ||
कलिंग पर अशोक के आक्रमण की घटना में परिवर्तन करके यशपाल ने इस उपन्यास का केन्द्र कलिंग की बालिका राजकुमारी अमिता को बनाया है। उपन्यास के माध्यम से वे जो सन्देश युद्ध-त्रस्त संसार को देना चाहते हैं, वह उन्हीं के शब्दों में : ‘मनुष्य ने अपने अनुभव और विकास से शान्ति की रक्षा का अधिक विश्वास योग्य उपाय खोज लिया है। यह सत्य बहुत सरल है। मनुष्य अन्तर्राष्ट्रीय रूप में दूसरों की भावना और सदिच्छा पर विश्वास करे, दूसरों के लिए भी अपने समान ही जीवित रहने और आत्म-निर्णय से सह-अस्तित्व के अधिकार को स्वीकार करे। सभी राष्ट्र और समाज अपने राष्ट्रों की सीमाओं में, अपने सिद्धान्तों और विश्वासों के अनुसार व्यवस्था रखने में स्वतन्त्र हों। जीवन में समृद्धि और सन्तोष पाने का मार्ग अपनी शक्ति को उत्पादन में लगाना है, दूसरों को डरा कर और मारकर छीन लेने की इच्छा करना नहीं है।’ | यशपाल जी का नया उपन्यास 'अमिता' [[अशोक|प्रियदर्शन सम्राट अशोक]] की [[कलिंग|कलिंग विजय]] के आधार पर लिखा गया है । इसके बहुत पहले यशपाल जी ने अतीत से राजनीतिक कथानक लेकर '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्या]]' नामक उपन्यास लिखा था। <ref>{{cite web |url=http://books.google.co.in/books?id=YjiZm0L7MX0C&pg=PT133&lpg=PT133&dq=%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE+(%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8)&source=bl&ots=T6d7nozn5T&sig=JadEIf7QRMJsytj-vq3LVrmapQU&hl=hi&sa=X&ei=bNzWUJv_MsemrAfrvIDYDw&ved=0CEAQ6AEwBA |title=क्रांतिकारी यशपाल:एक समर्पित व्यक्तित्व |accessmonthday=23 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>कलिंग पर अशोक के आक्रमण की घटना में परिवर्तन करके यशपाल ने इस उपन्यास का केन्द्र कलिंग की बालिका राजकुमारी अमिता को बनाया है। उपन्यास के माध्यम से वे जो सन्देश युद्ध-त्रस्त संसार को देना चाहते हैं, वह उन्हीं के शब्दों में : ‘मनुष्य ने अपने अनुभव और विकास से शान्ति की रक्षा का अधिक विश्वास योग्य उपाय खोज लिया है। यह सत्य बहुत सरल है। मनुष्य अन्तर्राष्ट्रीय रूप में दूसरों की भावना और सदिच्छा पर विश्वास करे, दूसरों के लिए भी अपने समान ही जीवित रहने और आत्म-निर्णय से सह-अस्तित्व के अधिकार को स्वीकार करे। सभी राष्ट्र और समाज अपने राष्ट्रों की सीमाओं में, अपने सिद्धान्तों और विश्वासों के अनुसार व्यवस्था रखने में स्वतन्त्र हों। जीवन में समृद्धि और सन्तोष पाने का मार्ग अपनी शक्ति को उत्पादन में लगाना है, दूसरों को डरा कर और मारकर छीन लेने की इच्छा करना नहीं है।’ | ||
==ऐतिहासिकता== | ==ऐतिहासिकता== | ||
‘अमिता’ इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर व्यक्ति और समाज की प्रवृत्ति और गति का चित्र है। लेखक ने कला के अनुराग से काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण के आधार पर यथार्थ का रंग देने का प्रयत्न किया है। | ‘अमिता’ इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर व्यक्ति और समाज की प्रवृत्ति और गति का चित्र है। लेखक ने कला के अनुराग से काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण के आधार पर यथार्थ का रंग देने का प्रयत्न किया है। |
10:33, 23 दिसम्बर 2012 का अवतरण
साहित्यकार यशपाल का 'अमिता' उपन्यास 'दिव्या' की भाँति ऐतिहासिक है। ‘अमिता’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कल्पना को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है। इस उपन्यास के प्राक्कथन में यशपाल स्वयं इसके मूल मन्तव्य की ओर इशारा करते हैं–‘विश्वशान्ति के प्रयत्नों में सहयोग देने के लिए मुझे भी तीन वर्ष में दो बार यूरोप जाना पड़ा है। स्वभावतः इस समय (1954-1956) में लिखे मेरे इस उपन्यास में, मुद्दों द्वारा लक्ष्यों को प्राप्त करने अथवा समस्याओं को सुलझाने की नीति की विफलता का विचार कहानी का मेरुदंड बन गया है।’
कथानक
यशपाल जी का नया उपन्यास 'अमिता' प्रियदर्शन सम्राट अशोक की कलिंग विजय के आधार पर लिखा गया है । इसके बहुत पहले यशपाल जी ने अतीत से राजनीतिक कथानक लेकर 'दिव्या' नामक उपन्यास लिखा था। [1]कलिंग पर अशोक के आक्रमण की घटना में परिवर्तन करके यशपाल ने इस उपन्यास का केन्द्र कलिंग की बालिका राजकुमारी अमिता को बनाया है। उपन्यास के माध्यम से वे जो सन्देश युद्ध-त्रस्त संसार को देना चाहते हैं, वह उन्हीं के शब्दों में : ‘मनुष्य ने अपने अनुभव और विकास से शान्ति की रक्षा का अधिक विश्वास योग्य उपाय खोज लिया है। यह सत्य बहुत सरल है। मनुष्य अन्तर्राष्ट्रीय रूप में दूसरों की भावना और सदिच्छा पर विश्वास करे, दूसरों के लिए भी अपने समान ही जीवित रहने और आत्म-निर्णय से सह-अस्तित्व के अधिकार को स्वीकार करे। सभी राष्ट्र और समाज अपने राष्ट्रों की सीमाओं में, अपने सिद्धान्तों और विश्वासों के अनुसार व्यवस्था रखने में स्वतन्त्र हों। जीवन में समृद्धि और सन्तोष पाने का मार्ग अपनी शक्ति को उत्पादन में लगाना है, दूसरों को डरा कर और मारकर छीन लेने की इच्छा करना नहीं है।’
ऐतिहासिकता
‘अमिता’ इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर व्यक्ति और समाज की प्रवृत्ति और गति का चित्र है। लेखक ने कला के अनुराग से काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण के आधार पर यथार्थ का रंग देने का प्रयत्न किया है।
बालिका अमिता का चित्रण
यशपाल ने बालिका अमिता की बाल सुलभ क्रिया कलापों का सुंदर चित्रण किया है। - बालिका महाराजकुमारी प्रति दो पग दौड़कर तीसरे पग पर उछलती आ रही थी। उनके पीछे-पीछे आता वृद्ध कंचुकी उद्दाल लम्बे चोंगे पर राजकीय चिह्न बाँधे, द्रुत गति के कारण हाँफ रहा था। उद्दाल का चेहरा अतिवार्धक्य के कारण पीले पड़ गये दाढ़ी-मूँछ से ढँका हुआ था। उसके माथे पर अनुभव की रेखायें थीं जिन्हें उत्तरदायित्व के बोझ ने और भी गहरा कर दिया था। उद्दाल के पीछे हाँफती हुई प्रौढ़ा दासी वापी आ रही थी। वापी के हाथ में राजकुमारी के लिये लाल चमड़े के छोटे-छोटे, सुन्दर जूते थे।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्रांतिकारी यशपाल:एक समर्पित व्यक्तित्व (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
- ↑ अमिता (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।