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| | #REDIRECT [[अकिलन]] |
| पी. वी. अखिलंदम (जन्म-[[27 जून]] [[1922]], पेरुंगलूर, [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[31 जनवरी]] [[1988]]) [[तमिल भाषा]] के सुविख्यात साहित्यकार थे।
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| ==जीवन परिचय==
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| अखिलंदम के पिता फ़ॉरेस्ट रेंजर थे और उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा आई. सी.एस. बने लेकिन 1938 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई और अखिलंदम आर्थिक परेशानियों व निराशाओं से घिर गए। इन्हीं दिनों की अनुभूतियां प्रेरणा बनीं और 1939 में उनकी सबसे पहली कहानी अर्थकष्ट से मृत्यु प्रकाश में आई। कुछ समय बाद [[कवि]] सुब्रह्मण्यम भारतीय एवं [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] की रचनाओं ने उनके मानस में राष्ट्रीयता की चिंगारी जला दी। अत: 1940 में मैट्रिक करते ही अपने मित्रों के सहयोग से उन्होंने एक 'शक्ति युवा संघ' बनाया और जी-जान से स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। '[[भारत छोड़ो आंदोलन|भारत छोड़ो]]' की ललकार गूंजी, तो अखिलंदम ने मुक्त भाव से सरकार विरोधी कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी।
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| ==कार्यक्षेत्र==
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| 1945 में वह रेलवे मेल सर्विस में सॉर्टर के काम पर नियुक्त हुए और 23 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना पहला उपन्यास 'पेन' लिखा। प्रतिष्ठित तमिल मासिक कलैमगल ने इसे प्रतियोगिता में प्रथम स्थान देकर पुरस्कृत किया। द्वितीय महायुद्ध के दौरान देश की स्वाधीनता के लिए सशस्त्र संघर्ष [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] ने ब्रिटिश सेनाओं के विरुद्ध किया, उसके प्रति अखिलंदम के मन में विशेष लगाव और आदर भाव था।
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| ====साहित्य से लगाव====
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| आई. एन. ए. के अनेक सैनिकों और सेनानायकों से उनके घनिष्ठ संबंध थे। अखिलंदम की भावनाओं ने अभिव्यक्ति पाई नेंजिन अलैगल में उनका यह उपन्यास 1951 में प्रकाशित हुआ और 1955 में तमिल अकादमी द्वारा पुरस्कृत हुआ। 1958 में पावै विलक्कु लिखने के दौरान उन्होंने अचानक नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और त्रिची से [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]) चले गए। साहित्यमर्मियों के मत से पावै विलक्कु और चित्तिरप्पावै उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएं हैं। चित्तिरप्पावै के कारण अखिलंदम का नाम तमिलनाडु के ही नहीं, [[श्रीलंका]], [[मलेशिया]] और [[सिंगापुर]] में बसे लाखों तमिलभाषियों तक पहुँचा गया। यह उपन्यास गद्य की काव्यमयता का सुंदर उदाहरण है और आधुनिक तमिल उपन्यास साहित्य की प्रौढ़ता का प्रतीक माना जाता है।
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| ====पहला ऐतिहासिक उपन्यास====
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| अखिलंदन ने कुछ ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे। 1961 में प्रकाशित वेंगैयिन मैंदन उनका पहला ऐतिहासिक उपन्यास था, जिसे 1963 में [[साहित्य अकादमी]] ने पुरस्कृत किया। फिर 1965 में कयल विषि निकला इस पर उन्हें 1968 में तमिल विकास परिषद का पुरस्कार मिला। अखिलंदम का तीसरा ऐतिहासिक उपन्यास है वेत्री तिरुनगर, जो 1966 में प्रकाशित हुआ। 1973 में प्रकाशित उनकी रचना एंगे पोगीरोम एक सामाजिक उपन्यास है, जिसमें समाज और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का चित्रण किया गया है। अखिलंदम को इसी कृति पर 1976 में राजा अण्णमलै चेट्टियार पुरस्कार भी मिला।
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| ==प्रमुख कृतियाँ==
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| |+ अखिलंदम की प्रमुख कृतियाँ
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| ;उपन्यास
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| * मंगिय निलवु (1944)
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| * पेन (1947)
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| * तुनैवि (1951)
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| * संदिप्पु (1952)
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| * अवलुक्कु (1953)
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| * वेंगयिन मैंदन (1961)
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| * पुदु वेल्लम् (1964)
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| * कयल विषि (1965)
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| * वेत्री तिरुनगर (1966)
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| * चित्तिरप्पावै (1968)
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| * कोल्लैकारन (1969)
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| * एंगे पोगिरोम (1973)
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| ;कहानी
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| * सक्तिवेल (1946)
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| * सांति (1952)
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| * नेल्लूर अरिसी (1967)
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| * एरिमलै (1970)
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| * पसियुम रूसियुम (1974)
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| ;निबंध
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| * मणमक्कलुक्कु (1953)
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| * कदैकलै (1972)
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| ;नाटक
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| * वाषविल इनबम (1955)
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| ==निधन==
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| पी. वी. अखिलंदम का निधन [[31 जनवरी]] [[1988]] को हुआ।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| * भारत ज्ञानकोश खण्ड-1
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{साहित्यकार}}
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| [[Category:साहित्यकार]][[Category:उपन्यासकार]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:चरित कोश]]
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| [[Category:आधुनिक साहित्यकार]]
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| [[Category:आधुनिक लेखक]]
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