"नेली सेनगुप्ता": अवतरणों में अंतर
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==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
नेली सेनगुप्ता का जन्म सन 1886 ई. में | नेली सेनगुप्ता का जन्म सन 1886 ई. में कॅम्ब्रिज, इंग्लैंड में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम फ़्रेडरिक विलियम ग्रे और [[माता]] ऐडिथ हेनेरिअता ग्रे थीं। उन्होंने इंग्लैंड से ही अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। जब [[चटगांव]] ([[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]]) के निवासी [[जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता]] अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए तो वहीं पर वर्ष [[1909]] में नेली से उनका [[विवाह]] हुआ। इसके बाद जब जतीन्द्र जी अपनी शिक्षा पूर्ण करके [[भारत]] वापस आये तो नेली भी उनके साथ यहीं आ गईं।<ref name="ab">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=442|url=}}</ref> | ||
====क्रांतिकारी गतिविधि==== | ====क्रांतिकारी गतिविधि==== | ||
वर्ष [[1921]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में जब उनके पति जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता कूद पड़े तो नेली ने भी सुख-सुविधा का जीवन त्याग कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय कर लिया। [[असम]]-[[बंगाल]] की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब जतीन्द्र मोहन | वर्ष [[1921]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' में जब उनके पति जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता कूद पड़े तो नेली ने भी सुख-सुविधा का जीवन त्याग कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय कर लिया। [[असम]]-[[बंगाल]] की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब जतीन्द्र मोहन गिफ़्तार हुए तो उनके बाद नेली ने मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने खद्दर बेचने पर लगा प्रतिबंध तोड़ा, जिस कारण [[अंग्रेज़]] पुलिस ने उन्हें गिफ़्तार किया और जेल में डाल दिया। | ||
==कांग्रेस की अध्यक्षता== | ==कांग्रेस की अध्यक्षता== | ||
नेली सेनगुप्ता का सबसे साहसपूर्ण कार्य था, सन [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता। इस अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष [[महामना मदन मोहन मालवीय]] पहले ही | नेली सेनगुप्ता का सबसे साहसपूर्ण कार्य था, सन [[1933]] की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता। इस अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष [[महामना मदन मोहन मालवीय]] पहले ही गिफ़्तार कर लिए गए थे। इस पर चुपचाप नेली को अध्यक्ष चुन लिया गया। पर [[ब्रिटिश सरकार]] अधिवेशन रोकने के लिए हर उपाय कर रही थी। जो स्वागताध्यक्ष बनाया जाता उसे गिफ़्तार कर लिया जाता, जो स्थान निर्धारित होता, उस पर पुलिस कब्ज़ा कर लेती। इस पर लोगों ने बिना विचार किये 'इसप्लेनेड' नामक स्थान में अधिवेशन आयोजित किया और अध्यक्ष पद से नेली ने भाषण दिया। उन्हें तुरन्त गिफ़्तार कर लिया गया। उनके पति पहले से ही जेल में बन्द थे।<ref name="ab"/> | ||
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07:50, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण
नेली सेनगुप्ता
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पूरा नाम | नेली सेनगुप्ता |
जन्म | 12 जनवरी, 1886 |
जन्म भूमि | कॅम्ब्रिज, इंग्लैंड |
मृत्यु | 23 अक्टूबर, 1973 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
पति/पत्नी | जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
जेल यात्रा | 'इसप्लेनेड' नामक स्थान पर आयोजित अधिवेशन में भाषण देने के कारण इन्हें गिरफ़्तार किया गया। |
नेली सेनगुप्ता (जन्म- 12 जनवरी, 1886,कॅम्ब्रिज (इंग्लैंड); मृत्यु- 23 अक्टूबर, 1973, कोलकाता) को 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम' में योगदान देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। वे महात्मा गाँधी के 'असहयोग आन्दोलन' में भाग लेने वाले जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता की पत्नी थीं। नेली सेनगुप्ता ने वर्ष 1933 की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। उन्हें 1940 और 1946 में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य भी चुना गया था।
जन्म तथा शिक्षा
नेली सेनगुप्ता का जन्म सन 1886 ई. में कॅम्ब्रिज, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता का नाम फ़्रेडरिक विलियम ग्रे और माता ऐडिथ हेनेरिअता ग्रे थीं। उन्होंने इंग्लैंड से ही अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। जब चटगांव (बंगाल) के निवासी जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए तो वहीं पर वर्ष 1909 में नेली से उनका विवाह हुआ। इसके बाद जब जतीन्द्र जी अपनी शिक्षा पूर्ण करके भारत वापस आये तो नेली भी उनके साथ यहीं आ गईं।[1]
क्रांतिकारी गतिविधि
वर्ष 1921 के 'असहयोग आन्दोलन' में जब उनके पति जतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता कूद पड़े तो नेली ने भी सुख-सुविधा का जीवन त्याग कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय कर लिया। असम-बंगाल की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब जतीन्द्र मोहन गिफ़्तार हुए तो उनके बाद नेली ने मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने खद्दर बेचने पर लगा प्रतिबंध तोड़ा, जिस कारण अंग्रेज़ पुलिस ने उन्हें गिफ़्तार किया और जेल में डाल दिया।
कांग्रेस की अध्यक्षता
नेली सेनगुप्ता का सबसे साहसपूर्ण कार्य था, सन 1933 की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता। इस अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष महामना मदन मोहन मालवीय पहले ही गिफ़्तार कर लिए गए थे। इस पर चुपचाप नेली को अध्यक्ष चुन लिया गया। पर ब्रिटिश सरकार अधिवेशन रोकने के लिए हर उपाय कर रही थी। जो स्वागताध्यक्ष बनाया जाता उसे गिफ़्तार कर लिया जाता, जो स्थान निर्धारित होता, उस पर पुलिस कब्ज़ा कर लेती। इस पर लोगों ने बिना विचार किये 'इसप्लेनेड' नामक स्थान में अधिवेशन आयोजित किया और अध्यक्ष पद से नेली ने भाषण दिया। उन्हें तुरन्त गिफ़्तार कर लिया गया। उनके पति पहले से ही जेल में बन्द थे।[1]
'बंगाल असेम्बली' की सदस्य
नेली सेनगुप्ता वर्ष 1940 और 1946 में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य चुनी गई थीं। 1947 के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और 1954 में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं।
निधन
भारत की आज़ादी में योगदान देने वाली नेली सेनगुप्ता जब बहुत बीमार हुईं तो वर्ष 23 अक्टूबर, 1973 में इलाज के लिए कोलकाता आयीं, तभी उनका देहान्त हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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