"क़ाफ़िया": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''क़ाफ़िया''' वह शब्द है जो प्रत्येक शे'र में [[रदीफ़़]...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''क़ाफ़िया''' वह शब्द  है जो प्रत्येक [[शे'र]] में [[रदीफ़़]] के ठीक पहले आता है और सम तुकांतता के साथ हर शे'र में बदलता रहता है। शे'र का आकर्षण क़ाफ़िये पर ही टिका होता है, क़ाफ़िये का जितनी सुंदरता से निर्वहन किया जायेगा शे'र उतना ही प्रभावशाली होगा।
'''क़ाफ़िया''' वह शब्द  है जो प्रत्येक [[शे'र]] में [[रदीफ़]] के ठीक पहले आता है और सम तुकांतता के साथ हर शे'र में बदलता रहता है। शे'र का आकर्षण क़ाफ़िये पर ही टिका होता है, क़ाफ़िये का जितनी सुंदरता से निर्वहन किया जायेगा शे'र उतना ही प्रभावशाली होगा।
; उदाहरण  
; उदाहरण  
<poem>किस महूरत में दिन निकलता है
<poem>किस महूरत में दिन निकलता है

10:02, 23 फ़रवरी 2013 का अवतरण

क़ाफ़िया वह शब्द है जो प्रत्येक शे'र में रदीफ़ के ठीक पहले आता है और सम तुकांतता के साथ हर शे'र में बदलता रहता है। शे'र का आकर्षण क़ाफ़िये पर ही टिका होता है, क़ाफ़िये का जितनी सुंदरता से निर्वहन किया जायेगा शे'र उतना ही प्रभावशाली होगा।

उदाहरण

किस महूरत में दिन निकलता है
शाम तक सिर्फ हाथ मलता है
वक़्त की दिल्लगी के बारे में
सोचता हूँ तो दिल दहलता है -(बाल स्वरूप राही)[1]

  • उपरोक्त उदाहरण से हम 'रदीफ़' की पहचान कर सकते हैं इसलिए स्पष्ट है कि प्रस्तुत अश'आर में 'है' शब्द रदीफ़़ है तथा उसके पहले के शब्द निकलता, मलता, दहलता सम तुकान्त शब्द हैं तथा प्रत्येक शे'र में बदल रहे हैं इसलिए यह क़ाफ़िया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ (हिंदी) open books online। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख