"प्रियप्रवास चतुर्दश सर्ग": अवतरणों में अंतर
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जो बालायें व्यथित वह भी आज हैं उन्मना हो। | जो बालायें व्यथित वह भी आज हैं उन्मना हो। | ||
प्यारा-न्यारा-निज हृदय जो श्याम को दे चुकी है। | प्यारा-न्यारा-निज हृदय जो श्याम को दे चुकी है। | ||
हा! क्यों बाला न वह | हा! क्यों बाला न वह दु:ख से दग्ध हो रो मरेगी॥11॥ | ||
ज्यों ए बातें व्यथित-चित से गोपिका ने सुनाई। | ज्यों ए बातें व्यथित-चित से गोपिका ने सुनाई। | ||
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ज्यों पाते ही सम-तल धार वारि-उन्मुक्त-धारा। | ज्यों पाते ही सम-तल धार वारि-उन्मुक्त-धारा। | ||
पा जाती है प्रमित-थिरता त्याग तेजस्विता को। | पा जाती है प्रमित-थिरता त्याग तेजस्विता को। | ||
त्योंही होता प्रबल | त्योंही होता प्रबल दु:ख का वेग विभ्रान्तकारी। | ||
पा ऊधो को प्रशमित हुआ सर्व-गोपी-जनों का॥13॥ | पा ऊधो को प्रशमित हुआ सर्व-गोपी-जनों का॥13॥ | ||
पंक्ति 217: | पंक्ति 217: | ||
स्वार्थों को भी जगत-हित के अर्थ सानन्द त्यागो। | स्वार्थों को भी जगत-हित के अर्थ सानन्द त्यागो। | ||
भूलो मोहो न तुम लख के वासना-मुर्तियों को। | भूलो मोहो न तुम लख के वासना-मुर्तियों को। | ||
यों होवेगा | यों होवेगा दु:ख शमन औ शान्ति न्यारी मिलेगी॥39॥ | ||
ऊधो बातें, हृदय-तल की वेधिनी गूढ़ प्यारी। | ऊधो बातें, हृदय-तल की वेधिनी गूढ़ प्यारी। |
14:05, 2 जून 2017 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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