"वर्षा ऋतु": अवतरणों में अंतर
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'''वर्षा ऋतु''' [[भारत]] की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। हमारे देश में सामान्य रूप से [[15 जून]] से [[15 सितम्बर]] तक [[वर्षा]] की ऋतु होती है, जब सम्पूर्ण देश पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएं प्रभावी होती हैं। इस समय उत्तर पश्चिमी भारत में [[ग्रीष्म ऋतु]] में बना निम्न [[वायुदाब]] का क्षेत्र अधिक तीव्र एवं व्यवस्थति होता हैं। इस निम्न वायुदाब के कारण ही दक्षिणी-पूर्वी सन्मागी हवाएं, जो कि दक्षिणी गोलार्द्ध में [[मकर रेखा]] की ओर से भूमध्यरेखा को पार करती है, भारत की ओर आकृष्ट होती है तथा भारतीय प्रायद्वीप से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] एवं [[अरब सागर]] पर प्रसारित हो जाती है। समुद्री भागों से आने के कारण आर्द्रता से परिपूर्ण ये पवनें अचानक भारतीय परिसंचरण से घिर कर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं तथा प्रायद्वीपीय भारत एवं [[म्यांमार]] की ओर तेजी से आगे बढ़ती है। | '''वर्षा ऋतु''' [[भारत]] की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। हमारे देश में सामान्य रूप से [[15 जून]] से [[15 सितम्बर]] तक [[वर्षा]] की ऋतु होती है, जब सम्पूर्ण देश पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएं प्रभावी होती हैं। इस समय उत्तर पश्चिमी भारत में [[ग्रीष्म ऋतु]] में बना निम्न [[वायुदाब]] का क्षेत्र अधिक तीव्र एवं व्यवस्थति होता हैं। इस निम्न वायुदाब के कारण ही दक्षिणी-पूर्वी सन्मागी हवाएं, जो कि दक्षिणी गोलार्द्ध में [[मकर रेखा]] की ओर से भूमध्यरेखा को पार करती है, भारत की ओर आकृष्ट होती है तथा भारतीय प्रायद्वीप से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] एवं [[अरब सागर]] पर प्रसारित हो जाती है। समुद्री भागों से आने के कारण आर्द्रता से परिपूर्ण ये पवनें अचानक भारतीय परिसंचरण से घिर कर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं तथा प्रायद्वीपीय भारत एवं [[म्यांमार]] की ओर तेजी से आगे बढ़ती है।<br /> | ||
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें जब स्थलीय भागों में प्रवेश करती हैं, तो प्रचण्ड गर्जन एवं तड़ित झंझावत के साथ तीव्रता से घनघोर वर्षा करती हैं। इस प्रकार की पवनों के आगमन एवं उनसे होने वाली वर्षा को 'मानसून का फटना अथवा टूटना' कहा जाता है। इन पवनों की गति 30 कि.मी. प्रति घंटे से भी अधिक होती है और ये एक महीने की भीतर ही सम्पूर्ण देश में प्रभावी हो जाती हैं। इन पवनों को देश का उच्चावन काफ़ी मात्रा में नियन्त्रित करता है, क्योंकि अपने प्रारम्भ में ही प्रायद्वीप की उपस्थिति के कारण दो शाखओं में विभाजित हो जाती हैं - बंगाल की खाड़ी का मानूसन तथा अरब सागर का मानसून। | दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें जब स्थलीय भागों में प्रवेश करती हैं, तो प्रचण्ड गर्जन एवं तड़ित झंझावत के साथ तीव्रता से घनघोर वर्षा करती हैं। इस प्रकार की पवनों के आगमन एवं उनसे होने वाली वर्षा को 'मानसून का फटना अथवा टूटना' कहा जाता है। इन पवनों की गति 30 कि.मी. प्रति घंटे से भी अधिक होती है और ये एक महीने की भीतर ही सम्पूर्ण देश में प्रभावी हो जाती हैं। इन पवनों को देश का उच्चावन काफ़ी मात्रा में नियन्त्रित करता है, क्योंकि अपने प्रारम्भ में ही प्रायद्वीप की उपस्थिति के कारण दो शाखओं में विभाजित हो जाती हैं - बंगाल की खाड़ी का मानूसन तथा अरब सागर का मानसून। | ||
==बंगाल की खाड़ी का मानसून== | ==बंगाल की खाड़ी का मानसून== | ||
बंगाल की खाड़ी का मानूसन दक्षिणी [[हिन्द महासागर]] की स्थायी पवनों की वह शाखा है, जो भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर प्रवेश करती है। इसके द्वारा सबसे पहले म्यांमार की [[अराकानयोमा]] तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराकर तीव्र वर्षा की जाती है। इसके बाद ये पवनें सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर [[गंगा]] के डेल्टा क्षेत्र से होकर [[खासी पहाड़ियाँ|खासी पहाड़ियों]] तक पहुंचती हैं तथा लगभग 15,00 मी. की ऊंचाई तक उठकर [[मेघालय]] के चेरापूंजी तथा मासिनराम नामक स्थानों पर घनघोर वर्षा करती हैं। ख़ासी पहाड़ियों को पार करने के बाद यह शाखा दो भागों में विभाजित हो जाती है। एक शाखा [[हिमालय]] पर्वतमाला के सहारे उसके तराई के क्षेत्र में घनघोर वर्षा करती है, जबकि दूसरी शाखा [[असम]] की ओर चली जाती है। हिमालय पर्वतमाला के सहारे आगे बढ़ने वाली शाखा ज्यो-त्यों पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है। इन पवनों की शुष्कता का कारण इनका स्थानीय पवनों से मिलना भी है। | बंगाल की खाड़ी का मानूसन दक्षिणी [[हिन्द महासागर]] की स्थायी पवनों की वह शाखा है, जो भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर प्रवेश करती है। इसके द्वारा सबसे पहले म्यांमार की [[अराकानयोमा]] तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराकर तीव्र वर्षा की जाती है। इसके बाद ये पवनें सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर [[गंगा]] के डेल्टा क्षेत्र से होकर [[खासी पहाड़ियाँ|खासी पहाड़ियों]] तक पहुंचती हैं तथा लगभग 15,00 मी. की ऊंचाई तक उठकर [[मेघालय]] के चेरापूंजी तथा मासिनराम नामक स्थानों पर घनघोर वर्षा करती हैं। ख़ासी पहाड़ियों को पार करने के बाद यह शाखा दो भागों में विभाजित हो जाती है। एक शाखा [[हिमालय]] पर्वतमाला के सहारे उसके तराई के क्षेत्र में घनघोर वर्षा करती है, जबकि दूसरी शाखा [[असम]] की ओर चली जाती है। हिमालय पर्वतमाला के सहारे आगे बढ़ने वाली शाखा ज्यो-त्यों पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है। इन पवनों की शुष्कता का कारण इनका स्थानीय पवनों से मिलना भी है। | ||
==अरब सागर का मानसून== | ==अरब सागर का मानसून== | ||
भूमध्यरेखा के दक्षिण से आने वाली स्थायी पवने जब मानसून के रूप में अरब सागर की ओर बढ़ती हैं तो सबसे पहले पश्चिमी घाट पहाड़ से टकराती हैं और लगभग 900 से 2,100 मी. की ऊंचाई पर चढ़ने के कारण आर्द्र पवनें सम्पृक्त होकर पश्चिमी तटीय मैदानी भाग में तीव्र वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट पर्वत को पार करते समय इनकी शुष्कता में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण दक्षिण पठार पर इनसे बहुत ही कम वर्षा प्राप्त होती है तथा यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के अन्तर्गत आ जाता है। अरब सागरीय मानसून की एक शाखा [[मुम्बई]] के उत्तर में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तथा [[ताप्ती नदी|ताप्ती]] नदियों की घाटी में प्रवेश करके [[छोटा नागपुर पठार|छोटा नागपुर के पठार]] पर वर्षा करती है और बंगाल की खाड़ी के मानूसन से मिल जाती है। इसकी दूसरी शाखा [[सिन्धु नदी]] के डेल्टा से आगे बढ़कर [[राजस्थान]] के मरुस्थल से होती हुई सीधे हिमालय पर्वत से जा टकराती है। राजस्थान में इसके मार्ग में कोई अवरोधक न होने के कारण वर्षा का एकदम अभाव पाया जाता है, क्योंकि [[अरावली पर्वतमाला]] इनके समानान्तर पड़ती है। | भूमध्यरेखा के दक्षिण से आने वाली स्थायी पवने जब मानसून के रूप में अरब सागर की ओर बढ़ती हैं तो सबसे पहले पश्चिमी घाट पहाड़ से टकराती हैं और लगभग 900 से 2,100 मी. की ऊंचाई पर चढ़ने के कारण आर्द्र पवनें सम्पृक्त होकर पश्चिमी तटीय मैदानी भाग में तीव्र वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट पर्वत को पार करते समय इनकी शुष्कता में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण दक्षिण पठार पर इनसे बहुत ही कम वर्षा प्राप्त होती है तथा यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के अन्तर्गत आ जाता है। अरब सागरीय मानसून की एक शाखा [[मुम्बई]] के उत्तर में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तथा [[ताप्ती नदी|ताप्ती]] नदियों की घाटी में प्रवेश करके [[छोटा नागपुर पठार|छोटा नागपुर के पठार]] पर वर्षा करती है और बंगाल की खाड़ी के मानूसन से मिल जाती है। इसकी दूसरी शाखा [[सिन्धु नदी]] के डेल्टा से आगे बढ़कर [[राजस्थान]] के मरुस्थल से होती हुई सीधे हिमालय पर्वत से जा टकराती है। राजस्थान में इसके मार्ग में कोई अवरोधक न होने के कारण वर्षा का एकदम अभाव पाया जाता है, क्योंकि [[अरावली पर्वतमाला]] इनके समानान्तर पड़ती है। | ||
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12:09, 28 अगस्त 2014 का अवतरण
वर्षा ऋतु भारत की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। हमारे देश में सामान्य रूप से 15 जून से 15 सितम्बर तक वर्षा की ऋतु होती है, जब सम्पूर्ण देश पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएं प्रभावी होती हैं। इस समय उत्तर पश्चिमी भारत में ग्रीष्म ऋतु में बना निम्न वायुदाब का क्षेत्र अधिक तीव्र एवं व्यवस्थति होता हैं। इस निम्न वायुदाब के कारण ही दक्षिणी-पूर्वी सन्मागी हवाएं, जो कि दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा की ओर से भूमध्यरेखा को पार करती है, भारत की ओर आकृष्ट होती है तथा भारतीय प्रायद्वीप से लेकर बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर पर प्रसारित हो जाती है। समुद्री भागों से आने के कारण आर्द्रता से परिपूर्ण ये पवनें अचानक भारतीय परिसंचरण से घिर कर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं तथा प्रायद्वीपीय भारत एवं म्यांमार की ओर तेजी से आगे बढ़ती है।
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें जब स्थलीय भागों में प्रवेश करती हैं, तो प्रचण्ड गर्जन एवं तड़ित झंझावत के साथ तीव्रता से घनघोर वर्षा करती हैं। इस प्रकार की पवनों के आगमन एवं उनसे होने वाली वर्षा को 'मानसून का फटना अथवा टूटना' कहा जाता है। इन पवनों की गति 30 कि.मी. प्रति घंटे से भी अधिक होती है और ये एक महीने की भीतर ही सम्पूर्ण देश में प्रभावी हो जाती हैं। इन पवनों को देश का उच्चावन काफ़ी मात्रा में नियन्त्रित करता है, क्योंकि अपने प्रारम्भ में ही प्रायद्वीप की उपस्थिति के कारण दो शाखओं में विभाजित हो जाती हैं - बंगाल की खाड़ी का मानूसन तथा अरब सागर का मानसून।
बंगाल की खाड़ी का मानसून
बंगाल की खाड़ी का मानूसन दक्षिणी हिन्द महासागर की स्थायी पवनों की वह शाखा है, जो भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर प्रवेश करती है। इसके द्वारा सबसे पहले म्यांमार की अराकानयोमा तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराकर तीव्र वर्षा की जाती है। इसके बाद ये पवनें सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर गंगा के डेल्टा क्षेत्र से होकर खासी पहाड़ियों तक पहुंचती हैं तथा लगभग 15,00 मी. की ऊंचाई तक उठकर मेघालय के चेरापूंजी तथा मासिनराम नामक स्थानों पर घनघोर वर्षा करती हैं। ख़ासी पहाड़ियों को पार करने के बाद यह शाखा दो भागों में विभाजित हो जाती है। एक शाखा हिमालय पर्वतमाला के सहारे उसके तराई के क्षेत्र में घनघोर वर्षा करती है, जबकि दूसरी शाखा असम की ओर चली जाती है। हिमालय पर्वतमाला के सहारे आगे बढ़ने वाली शाखा ज्यो-त्यों पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है। इन पवनों की शुष्कता का कारण इनका स्थानीय पवनों से मिलना भी है।
अरब सागर का मानसून
भूमध्यरेखा के दक्षिण से आने वाली स्थायी पवने जब मानसून के रूप में अरब सागर की ओर बढ़ती हैं तो सबसे पहले पश्चिमी घाट पहाड़ से टकराती हैं और लगभग 900 से 2,100 मी. की ऊंचाई पर चढ़ने के कारण आर्द्र पवनें सम्पृक्त होकर पश्चिमी तटीय मैदानी भाग में तीव्र वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट पर्वत को पार करते समय इनकी शुष्कता में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण दक्षिण पठार पर इनसे बहुत ही कम वर्षा प्राप्त होती है तथा यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के अन्तर्गत आ जाता है। अरब सागरीय मानसून की एक शाखा मुम्बई के उत्तर में नर्मदा तथा ताप्ती नदियों की घाटी में प्रवेश करके छोटा नागपुर के पठार पर वर्षा करती है और बंगाल की खाड़ी के मानूसन से मिल जाती है। इसकी दूसरी शाखा सिन्धु नदी के डेल्टा से आगे बढ़कर राजस्थान के मरुस्थल से होती हुई सीधे हिमालय पर्वत से जा टकराती है। राजस्थान में इसके मार्ग में कोई अवरोधक न होने के कारण वर्षा का एकदम अभाव पाया जाता है, क्योंकि अरावली पर्वतमाला इनके समानान्तर पड़ती है।
वर्षा का वितरण
वर्षा का मौसम | समयावधि | वार्षिक वर्षा का प्रतिशत (लगभग) |
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दक्षिणी-पश्चिमी मानसून | जून से सितम्बर तक | 73.7 |
परवर्ती मानसून | अक्टूबर से दिसम्बर | 13.3 |
शीत ऋतु अथवा उत्तरी पश्चिमी मानसून | जनवरी - फरवरी | 2.6 |
पूर्व-मानसून | मार्च से मई | 10.0 |
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
पश्चिमी घाट पर्वत का पश्चिमी तटीय भाग, हिमालय पर्वतमाला की दक्षिणावर्ती तलहटी में सम्मिलित राज्य- असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार तट (केरल), दक्षिणी किनारा, मणिपुर एवं मेघालय इत्यादि सम्मिलित हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 सेमी. से अधिक होती है। विश्व की सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान मासिनराम तथा चेरापूंजी मेघालय में ही स्थित हैं।
साधारण वर्षा वाले क्षेत्र
इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की मात्रा 100 से 200 सेमी. तक होती है। यह मानसूनी वन प्रदेशों का क्षेत्र है। इसमें पश्चिमी घाट का पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा, बिहार, दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा तराई क्षेत्र के समानान्तर पतली पट्टी में स्थित उत्तर प्रदेश पंजाब होते हुए जम्मू कश्मीर के क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक पायी जाती है। अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि के कारण फसलों की बहुत हानि होती है।
न्यून वर्षा वाले क्षेत्र
इसके अन्तर्गत मध्य प्रदेश, दक्षिणी का पठारी भाग गुजरात, उत्तरी तथा दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब, हरियाणा तथा दक्षिणी उत्तरी प्रदेश आते हैं। यहाँ 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा की विषमता 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक होती है।
अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र
इन क्षेत्रों में होने वाली वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सेमी. से भी कम होती है। कच्छ, पश्चिमी राजस्थान, लद्दाख आदि क्षेत्र इसके अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं। यहाँ कृषि बिना सिंचाई के सम्भव नहीं है।
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