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==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
मात्र अठारह [[वर्ष]] की उम्र में हरिशंकर परसाई ने 'जंगल विभाग' में नौकरी की। वे खण्डवा में छ: माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। उन्होंन ए दो वर्ष ([[1941]]–[[1943]] में) जबलपुर में 'स्पेस ट्रेनिंग कॉलिज' में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से हरिशंकर जी वहीं 'मॉडल हाई स्कूल' में अध्यापक हो गये। किंतु वर्ष [[1952]] में हरिशंकर परसाई को यह सरकारी नौकरी छोड़ी। उन्होंने वर्ष [[1953]] से [[1957]] तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। [[1957]] में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की। | |||
==पूछिये परसाई से== | |||
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हरिशंकर परसाई की [[भाषा]] में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित [[हिंदी]] के साथ साथ [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है। | हरिशंकर परसाई की [[भाषा]] में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित [[हिंदी]] के साथ साथ [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है। | ||
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09:28, 10 अगस्त 2013 का अवतरण
हरिशंकर परसाई
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पूरा नाम | हरिशंकर परसाई |
जन्म | 22 अगस्त, 1922 |
जन्म भूमि | गाँव- जमानी, होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 10 अगस्त, 1995 |
मृत्यु स्थान | जबलपुर, मध्य प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखक और व्यंग्यकार |
विषय | सामाजिक |
भाषा | हिंदी |
विद्यालय | 'नागपुर विश्वविद्यालय' |
शिक्षा | एम.ए. (हिंदी) |
पुरस्कार-उपाधि | 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'शिक्षा सम्मान', 'शरद जोशी सम्मान' |
प्रसिद्धि | व्यंग्यकार व रचनाकार |
नागरिकता | भारतीय |
विधाएँ | निबंध, कहानी, उपन्यास, संस्मरण |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
हरिशंकर परसाई (अंग्रेज़ी: Harishankar Parsai, जन्म- 22 अगस्त, 1922, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 10 अगस्त, 1995, जबलपुर) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। ये हिंदी के पहले रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को हरिशंकर परसाई ने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा-शैली में एक ख़ास प्रकार का अपनापन नज़र आता है।
जीवन परिचय
हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में 'जमानी' नामक गाँव में हुआ था। गाँव से प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये थे। 'नागपुर विश्वविद्यालय' से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की। कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन भी किया, परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा-शैली में ख़ास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।
कार्यक्षेत्र
मात्र अठारह वर्ष की उम्र में हरिशंकर परसाई ने 'जंगल विभाग' में नौकरी की। वे खण्डवा में छ: माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। उन्होंन ए दो वर्ष (1941–1943 में) जबलपुर में 'स्पेस ट्रेनिंग कॉलिज' में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से हरिशंकर जी वहीं 'मॉडल हाई स्कूल' में अध्यापक हो गये। किंतु वर्ष 1952 में हरिशंकर परसाई को यह सरकारी नौकरी छोड़ी। उन्होंने वर्ष 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की।
पूछिये परसाई से
हरिशंकर परसाई जबलपुर-रायपुर से निकलने वाले अख़बार 'देशबंधु' में पाठकों द्वारा पूछे जाने वाले उनके अनेकों प्रश्नों के उत्तर देते थे। अख़बार में इस स्तम्भ का नाम था- "पूछिये परसाई से"। पहले इस स्तम्भ में हल्के इश्किया और फ़िल्मी सवाल पूछे जाते थे। धीरे-धीरे परसाईजी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों की ओर भी प्रवृत्त किया। कुछ समय बाद ही इसका दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह सहज जन शिक्षा थी। लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अख़बार का बड़ी बेचैनी से इंतजार करते थे।[1]
साहित्यिक परिचय
हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना "स्वर्ग से नरक जहाँ तक" है जो कि मई 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी जिसमें उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ पहली बार जमकर लिखा था। धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था। वैसे हरिशंकर परसाई कार्लमार्क्स से अधिक प्रभावित थे। परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में "सदाचार का ताबीज" प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी जिसमें रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है।
रचनाएँ
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साहित्यिक विशेषताएँ
पाखंड, बेईमानी आदि पर परसाई जी ने अपने व्यंग्यों से गहरी चोट की है। वे बोलचाल की सामन्य भाषा का प्रयोग करते हैं और चुटीला व्यंग्य करने में परसाई जी बेजोड़ हैं।
भाषा शैली
हरिशंकर परसाई की भाषा में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित हिंदी के साथ साथ उर्दू, अंग्रेज़ी शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है।
सम्मान और पुरस्कार
- साहित्य अकादमी पुरस्कार - 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए
- शिक्षा सम्मान - मध्य प्रदेश शासन द्वारा
- डी.लिट् की मानद उपाधि - 'जबलपुर विश्वविद्यालय' द्वारा
- शरद जोशी सम्मान
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हरिशंकर परसाई, परिचय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 अगस्त, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- हरिशंकर परसाई की रचनाएं
- गर्दिश के दिन -हरिशंकर परसाई
- व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है- हरिशंकर परसाई
- व्यंग्य के प्रतिमान और परसाई
- दस दिन का अनशन
- हरिशंकर परसाई
- हरिशंकर परिचाओ
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