"अहिच्छत्र": अवतरणों में अंतर
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आँवला नामक स्थान के निकट इस महाभारतकालीन नगर के विस्तीर्ण खण्डहर अवस्थित हैं। यह नगर [[महाभारत]]काल में तथा उसके पश्चात पूर्व [[बौद्ध]]काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी [[पंचाल|पांचाल]] की राजधानी थी। 'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्। दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी। द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:। पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्, अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत' <ref>महा॰ आदि॰, 137, 73-74-76</ref>। इस उद्धरण से सूचित होता है कि [[द्रोणाचार्य]] ने पांचाल-नरेश [[द्रुपद]] को हरा कर दक्षिण पांचाल का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र [[कुरुदेश]] के पार्श्व में ही स्थित था-- 'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'। सम्राट [[अशोक]] ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप बनवाया था। [[जैन]]सूत्र प्रज्ञापणा में अहिच्छत्र का कई अन्य जनपदों के साथ उल्लेख है। | आँवला नामक स्थान के निकट इस महाभारतकालीन नगर के विस्तीर्ण खण्डहर अवस्थित हैं। यह नगर [[महाभारत]]काल में तथा उसके पश्चात पूर्व [[बौद्ध]]काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी [[पंचाल|पांचाल]] की राजधानी थी। 'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्। दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी। द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:। पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्, अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत' <ref>महा॰ आदि॰, 137, 73-74-76</ref>। इस उद्धरण से सूचित होता है कि [[द्रोणाचार्य]] ने पांचाल-नरेश [[द्रुपद]] को हरा कर दक्षिण पांचाल का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र [[कुरुदेश]] के पार्श्व में ही स्थित था-- 'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'। सम्राट [[अशोक]] ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप बनवाया था। [[जैन]]सूत्र प्रज्ञापणा में अहिच्छत्र का कई अन्य जनपदों के साथ उल्लेख है। | ||
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चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] जो यहाँ 640 ई॰ के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि | चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] जो यहाँ 640 ई॰ के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि क़िले के बाहर नागह्रद नामक एक ताल है जिसके निकट नागराज ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पश्चात इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था। अहिच्छत्र के खण्डहरों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण ढूह एक [[स्तूप]] है जिसकी आकृति चक्की के समान होने से इसे स्थानीय लोग 'पिसनहारी का छत्र' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है जहाँ किंवदंती के अनुसार बुद्ध ने स्थानीय नाग राजाओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। वेबर ने [[शतपथ ब्राह्मण]] (13, 5, 4, 7) में उल्लिखित परिवका या परिचका नगरी का अभिज्ञान महाभारत की एकचका (सम्भवत: अहिच्छत्र) के साथ किया है <ref>(दे॰ वैदिक इंडेक्स 1,494)</ref>। महाभारत में इसे अहिक्षेत्र तथा छत्रवती नामों से भी अभिहित किया गया है। जैन-ग्रन्थ विविध तीर्थ कल्प में इसका एक अन्य नाम संख्यावती भी मिलता है <ref>दे॰ संख्यावती</ref>। एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ तीर्थ माला चैत्यवंदन में अहिक्षेत्र का शिवपुर नाम भी बताया गया है--'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'। जैन-ग्रन्थों में इसका एक अन्य नाम शिवनयरी भी मिलता है <ref>दे॰ एंशेंट जैन हिम्स पृ॰ 56</ref>। टॉलमी ने अहिच्छत्र का अदिसद्रा नाम से उल्लेख किया है <ref>दे॰ ए क्लासिकल डिक्शनरी ऑव हिन्दू माइथोलोजी एण्ड रिलीजन, ज्योग्रेफी, हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर--सप्तम संस्करण)</ref>। | ||
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06:11, 29 जुलाई 2010 का अवतरण
अहिच्छत्र / अहिक्षेत्र
आँवला नामक स्थान के निकट इस महाभारतकालीन नगर के विस्तीर्ण खण्डहर अवस्थित हैं। यह नगर महाभारतकाल में तथा उसके पश्चात पूर्व बौद्धकाल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी पांचाल की राजधानी थी। 'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्। दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी। द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:। पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्, अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत' [1]। इस उद्धरण से सूचित होता है कि द्रोणाचार्य ने पांचाल-नरेश द्रुपद को हरा कर दक्षिण पांचाल का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र कुरुदेश के पार्श्व में ही स्थित था-- 'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'। सम्राट अशोक ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप बनवाया था। जैनसूत्र प्रज्ञापणा में अहिच्छत्र का कई अन्य जनपदों के साथ उल्लेख है।
चीनी यात्री युवानच्वांग जो यहाँ 640 ई॰ के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि क़िले के बाहर नागह्रद नामक एक ताल है जिसके निकट नागराज ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पश्चात इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था। अहिच्छत्र के खण्डहरों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण ढूह एक स्तूप है जिसकी आकृति चक्की के समान होने से इसे स्थानीय लोग 'पिसनहारी का छत्र' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है जहाँ किंवदंती के अनुसार बुद्ध ने स्थानीय नाग राजाओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। वेबर ने शतपथ ब्राह्मण (13, 5, 4, 7) में उल्लिखित परिवका या परिचका नगरी का अभिज्ञान महाभारत की एकचका (सम्भवत: अहिच्छत्र) के साथ किया है [2]। महाभारत में इसे अहिक्षेत्र तथा छत्रवती नामों से भी अभिहित किया गया है। जैन-ग्रन्थ विविध तीर्थ कल्प में इसका एक अन्य नाम संख्यावती भी मिलता है [3]। एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ तीर्थ माला चैत्यवंदन में अहिक्षेत्र का शिवपुर नाम भी बताया गया है--'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'। जैन-ग्रन्थों में इसका एक अन्य नाम शिवनयरी भी मिलता है [4]। टॉलमी ने अहिच्छत्र का अदिसद्रा नाम से उल्लेख किया है [5]।