"लट्ठमार होली": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "श्रृंगार" to "शृंगार") |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा त्योहार | |||
'''लट्ठमार होली''' [[ब्रज]] क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है [[बरसाना]] की लट्ठमार होली। बरसाना [[राधा]] का जन्मस्थान है। [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। | |चित्र=Holi Barsana Mathura 1.jpg | ||
|चित्र का नाम=लट्ठमार होली, बरसाना | |||
|अन्य नाम = | |||
|अनुयायी = [[हिंदू]], भारतीय | |||
|उद्देश्य = | |||
|प्रारम्भ = पौराणिक काल | |||
|तिथि=[[27 फ़रवरी]] (2015) | |||
|उत्सव =इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुष ([[गोप]]) [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। | |||
|अनुष्ठान = | |||
|धार्मिक मान्यता =इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और [[राधा]] के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। | |||
|प्रसिद्धि = | |||
|संबंधित लेख=[[बरसाना]], [[होली बलदेव मन्दिर, मथुरा|होली बलदेव मन्दिर]] | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ [[बाँके बिहारी मंदिर]] की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''लट्ठमार होली''' [[ब्रज]] क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। [[होली]] शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है [[बरसाना]] की लट्ठमार होली। बरसाना [[राधा]] का जन्मस्थान है। [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। | |||
==मान्यता== | ==मान्यता== | ||
इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुषों (गोप) जो [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। | इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुषों (गोप) जो [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। |
11:06, 25 फ़रवरी 2015 का अवतरण
लट्ठमार होली
| |
अनुयायी | हिंदू, भारतीय |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | 27 फ़रवरी (2015) |
उत्सव | इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुष (गोप) राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। |
धार्मिक मान्यता | इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। |
संबंधित लेख | बरसाना, होली बलदेव मन्दिर |
अन्य जानकारी | यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। |
लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।
मान्यता
इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।
परंपरा एवं महत्त्व
उत्तर प्रदेश में वृन्दावन और मथुरा की होली का अपना ही महत्त्व है। इस त्योहार को किसानों द्वारा फसल काटने के उत्सव एक रूप में भी मनाया जाता है। गेहूँ की बालियों को आग में रख कर भूना जाता है और फिर उसे खाते है। होली की अग्नि जलने के पश्चात बची राख को रोग प्रतिरोधक भी माना जाता है। इन सब के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन क्षेत्रों की होली तो विश्वप्रसिद्ध है। मथुरा में बरसाने की होली प्रसिद्ध है। बरसाना राधा जी का गाँव है जो मथुरा शहर से क़रीब 42 किमी अन्दर है। यहाँ एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है लट्ठमार होली। बरसाने में ऐसी परंपरा हैं कि श्री कृष्ण के गाँव नंदगाँव के पुरुष बरसाने में घुसने और राधा जी के मंदिर में ध्वज फहराने की कोशिश करते है और बरसाने की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और डंडों से पीटती हैं और अगर कोई मर्द पकड़ जाये तो उसे महिलाओं की तरह शृंगार करना होता है और सब के सम्मुख नृत्य करना पड़ता है, फिर इसके अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगाँव जा कर वहाँ की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृन्दावन की होली में पूरा समां प्यार की ख़ुशी से सुगन्धित हो उठता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी।
होली विडियो
इन्हें भी देखें: मथुरा होली चित्र वीथिका, बरसाना होली चित्र वीथिका एवं बलदेव होली चित्र वीथिका
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख