"बख्शी ग्रन्थावली-7": अवतरणों में अंतर
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'''बख्शी ग्रन्थावली-7''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का सातवाँ खण्ड है। इस खंड में निबन्ध रचनाओं को संग्रहित किया गया है। | '''बख्शी ग्रन्थावली-7''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का सातवाँ खण्ड है। इस खंड में [[निबन्ध]] रचनाओं को संग्रहित किया गया है। | ||
बख्शी जी निबन्ध कला के सौन्दर्यीकरण के लिए एक ही निबन्ध को अनेक शैलियों में अनेक बार लिखते थे। बख्शी के निबन्धों में स्टीवेंसन, सॉमरसेट मॉम, ए.जी. गार्डनर और मातेन शैली का विशेष प्रभाव है। बख्शी जी के निबन्धों की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इन निबन्धों को पढ़ने से पाठकों के [[हृदय]] को एक | बख्शी जी निबन्ध कला के सौन्दर्यीकरण के लिए एक ही निबन्ध को अनेक शैलियों में अनेक बार लिखते थे। बख्शी के निबन्धों में स्टीवेंसन, सॉमरसेट मॉम, ए.जी. गार्डनर और मातेन शैली का विशेष प्रभाव है। बख्शी जी के निबन्धों की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इन निबन्धों को पढ़ने से पाठकों के [[हृदय]] को एक आत्मीय [[ऊर्जा]] मिलती है, लिखने की ललक का अंकुरण होता है। बख्शी जी निबन्ध साहित्य का जीवन पर सरल स्वाभाविक प्रभाव मानते थे। उसे दैनिक चर्चाओं का अंग भी कहते थे। जिस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में किसी एक ही वस्तु के भाव-विचार, घटना आदि की प्रमुखता नहीं रहती वरन वह सबकुछ मिला-जुला रूप होता है। उसी तरह बख्शी जी के निबन्ध भी उनके अपने जीवन के विशेषकर अध्यापकीय जीवन के अंग रहे हैं। उनमें जीवन की सच्ची कथाएँ ताज़ी प्रतिक्रियाएँ व एक विशिष्ट नैतिकता विद्यमान है। बख्शी के निबन्ध सम-सामयिक होते हुए भी उससे सर्वथा पृथक हैं। वे राष्ट्रीय काव्य-धारा और राष्ट्रीय आन्दोलनों के प्रति अपना उदार दृष्टिकोण रखते हैं। <ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref> | ||
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04:00, 17 जुलाई 2013 का अवतरण
बख्शी ग्रन्थावली-7
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लेखक | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
मूल शीर्षक | बख्शी ग्रन्थावली |
संपादक | डॉ. नलिनी श्रीवास्तव |
प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
ISBN | 81-8143-516-08 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विधा | निबन्ध |
बख्शी ग्रन्थावली-7 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का सातवाँ खण्ड है। इस खंड में निबन्ध रचनाओं को संग्रहित किया गया है।
बख्शी जी निबन्ध कला के सौन्दर्यीकरण के लिए एक ही निबन्ध को अनेक शैलियों में अनेक बार लिखते थे। बख्शी के निबन्धों में स्टीवेंसन, सॉमरसेट मॉम, ए.जी. गार्डनर और मातेन शैली का विशेष प्रभाव है। बख्शी जी के निबन्धों की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इन निबन्धों को पढ़ने से पाठकों के हृदय को एक आत्मीय ऊर्जा मिलती है, लिखने की ललक का अंकुरण होता है। बख्शी जी निबन्ध साहित्य का जीवन पर सरल स्वाभाविक प्रभाव मानते थे। उसे दैनिक चर्चाओं का अंग भी कहते थे। जिस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में किसी एक ही वस्तु के भाव-विचार, घटना आदि की प्रमुखता नहीं रहती वरन वह सबकुछ मिला-जुला रूप होता है। उसी तरह बख्शी जी के निबन्ध भी उनके अपने जीवन के विशेषकर अध्यापकीय जीवन के अंग रहे हैं। उनमें जीवन की सच्ची कथाएँ ताज़ी प्रतिक्रियाएँ व एक विशिष्ट नैतिकता विद्यमान है। बख्शी के निबन्ध सम-सामयिक होते हुए भी उससे सर्वथा पृथक हैं। वे राष्ट्रीय काव्य-धारा और राष्ट्रीय आन्दोलनों के प्रति अपना उदार दृष्टिकोण रखते हैं। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।