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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {किस [[सिक्ख]] गुरु ने [[सिक्ख धर्म]] को नया स्वरूप, नयी शक्ति और नयी ओजस्विता प्रदान की?
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| -[[गुरु रामदास]]
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| -[[गुरु अर्जुन सिंह]]
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| -[[गुरु हरगोविन्द सिंह]]
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| +[[गुरु गोविन्द सिंह]]
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| ||[[चित्र:Guru Gobind Singh.jpg|right|100px|गुरु गोविन्द सिंह]]'गुरु गोविन्द सिंह' [[सिक्ख|सिक्खों]] के दसवें और अंतिम गुरु माने जाते हैं। [[गुरु गोविन्द सिंह]] ने सिक्खों में युद्ध का उत्साह बढ़ाने के लिए प्रत्येक आवश्यक क़दम उठाया। वीर काव्य और [[संगीत]] का सृजन उन्होंने किया था। उन्होंने अपने लोगों में कृपाण जो उनकी लौह कृपा था, के प्रति प्रेम विकसित किया। 'ख़ालसा' को पुर्नसंगठित सिक्ख सेना का मार्गदर्शक बनाकर उन्होंने दो मोर्चों पर सिक्खों के शत्रुओं के ख़िलाफ़ क़दम उठाये। उनकी सैन्य टुकड़ियाँ सिक्ख आदर्शो के प्रति पूरी तरह समर्पित थीं, और सिक्खों की धार्मिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार थीं। लेकिन गुरु गोविंद सिंह को इस स्वतंत्रता की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। [[अंबाला]] के पास एक युद्ध में उनके चारों बेटे मारे गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु गोविन्द सिंह]], [[सिक्ख धर्म]]
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| {[[वैष्णव धर्म]] का मूलभूत सिद्धांत क्या था?
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| +[[अवतारवाद]]
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| -[[अहिंसा व्रत|अहिंसा]]
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| -[[एकेश्वरवाद]]
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| -भजन-कीर्तन
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| ||[[चित्र:Narasimha.jpg|right|90px|नृसिंह अवतार]]'अवतारवाद' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा महत्त्व है। [[पुराण|पुराणों]] आदि में [[अवतारवाद]] का विस्तृत तथा व्यापकता के साथ वर्णन किया गया है। 'अवतार' का अर्थ होता है- "ईश्वर का पृथ्वी पर जन्म लेना"। संसार के भिन्न-भिन्न देशों तथा धर्मों में अवतारवाद धार्मिक नियम के समान आदर और श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। पूर्वी और पश्चिमी धर्मों में यह सामान्यत: मान्य तथ्य के रूप में स्वीकार भी किया गया है। [[बौद्ध धर्म]] के [[महायान|महायान पंथ]] में [[अवतार]] की कल्पना दृढ़ मूल है। [[पारसी धर्म]] में अनेक सिद्धांत [[हिन्दू|हिन्दुओं]] और विशेषत: वैदिक [[आर्य|आर्यों]] के समान हैं, परंतु यहाँ अवतार की कल्पना उपलब्ध नहीं है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अवतारवाद]], [[वैष्णव धर्म]]
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| {प्रसिद्ध 'तिरुपाल मन्दिर' कहाँ अवस्थित है?
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| -[[भद्राचलम]]
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| -[[चिदम्बरम|चिदम्बर]]
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| +[[हम्पी]]
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| -श्रीकालहस्ती
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| ||[[चित्र:Lakshmi-Narsmiha-Hampi.jpg|right|100px|लक्ष्मी नरसिंह, हम्पी]]'हम्पी' [[मध्य काल|मध्यकालीन]] [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य]] की राजधानी था, जो [[तुंगभद्रा नदी]] के तट पर स्थित है। यह प्राचीन शानदार नगर अब मात्र [[खंडहर|खंडहरों]] के रूप में ही [[अवशेष]] अंश में उपस्थित है। यहाँ के खंडहरों को देखने से यह सहज ही प्रतीत होता है कि किसी समय में [[हम्पी]] में एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती थी। [[भारत]] के [[कर्नाटक|कर्नाटक राज्य]] में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा '[[विश्व विरासत स्थल|विश्व विरासत स्थलों]]' की सूची में भी शामिल है। कहा जाता है कि 'पम्पपति' के कारण ही इस स्थान का नाम 'हम्पी' हुआ है। यहाँ के स्थानीय लोग 'प' का उच्चारण 'ह' करते हैं और 'पंपपति' को 'हम्पपति' (हंपपथी) कहते हैं। हम्पी 'हम्पपति' का ही लघुरूप है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हम्पी]], [[विजयनगर साम्राज्य]]
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| {[[श्रवणबेलगोला मैसूर|श्रवणबेलगोला]] में गोमतेश्वर की मूर्ति का निर्माण किसने करवाया था?
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| -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
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| -[[खारवेल]]
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| -[[अमोघवर्ष प्रथम|अमोघवर्ष]]
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| +[[चामुण्डराय]]
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| ||[[चित्र:Gomateshwara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा]]'चामुण्डराय' [[श्रवणबेलगोला मैसूर|श्रवणबेलगोला]] के [[गंग वंश|गंग वंशीय]] शासक राजमल्ल के शासन काल में उसका मंत्री था। प्रसिद्ध गोमतेश्वर की विशाल प्रतिमा का निर्माण [[चामुण्डराय]] ने ही लगभग 989 ई. में करवाया था। यह प्रतिमा विंद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। चामुण्डराय का एक नाम 'गोमट्ट' भी था। इसी कारण श्रवणबेलगोला पर इनके द्वारा स्थापित विशालकाय भगवान बाहुबली की प्रतिमा का नाम 'गोमटेश्वर' (गोमतेश्वर) पड़ गया। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती द्वारा रचित 'सिद्धान्त ग्रन्थ' का नाम भी गोमट्ट के नाम पर ही 'गोमट्टसार' पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चामुण्डराय]]
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| {[[नैमिषारण्य]] किस नदी का तटवर्ती प्राचीनतम [[तीर्थ स्थान]] है।
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| +[[गोमती नदी]]
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| -[[गंगा नदी]]
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| -[[नर्मदा नदी]]
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| -[[कावेरी नदी]]
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| ||[[चित्र:Gomti-River.jpg|right|100px|गोमती नदी]][[पुराण|पुराणों]] तथा [[महाभारत]] में वर्णित '[[नैमिषारण्य]]' वह पुण्य स्थान है, जहाँ 88 सहस्त्र ऋषिश्वरों को [[वेदव्यास]] के शिष्य सूत ने महाभारत तथा पुराणों की कथाएँ सुनाई थीं। नैमिषारण्य [[उत्तर प्रदेश]] के [[सीतापुर ज़िला|सीतापुर ज़िले]] में [[गोमती नदी]] का तटवर्ती एक प्राचीन [[तीर्थ स्थान]] है। पुराणों में नैमिषारण्य तीर्थ का बहुधा उल्लेख मिलता है। जब भी कोई धार्मिक समस्या उत्पन्न होती थी, तब उसके समाधान के लिए ऋषिगण यहाँ एकत्र होते थे। वैदिक ग्रन्थों के कतिपय उल्लेखों में प्राचीन 'नैमिष वन' की स्थिति [[सरस्वती नदी]] के तट पर [[कुरुक्षेत्र]] के समीप भी मानी गई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नैमिषारण्य]], [[गोमती नदी]]
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| {"तुम्हारा अधिकार कर्म पर है, फल की प्राप्ति पर नहीं", यह कथन किस [[ग्रंथ]] में कहा गया है? | | {"तुम्हारा अधिकार कर्म पर है, फल की प्राप्ति पर नहीं", यह कथन किस [[ग्रंथ]] में कहा गया है? |
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