"यतीन्द्रनाथ दास": अवतरणों में अंतर

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'''यतीन्द्रनाथ दास''' (जन्म- [[27 अक्टूबर]], [[1904]], [[कलकत्ता]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[13 सितम्बर]], [[1929]], [[लाहौर]], [[पाकिस्तान]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए और शहादत पाई। यतीन्द्रनाथ दास 'कांग्रेस सेवादल' में [[सुभाषचन्द्र बोस]] के सहायक थे। [[भगत सिंह]] से भेंट होने के बाद ये बम बनाने के लिए [[आगरा]] आ गये थे। भगत सिंह और [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके थे, वे इन्हीं के द्वारा बनाये गए थे। जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने [[13 जुलाई]], [[1929]] से अनशन आरम्भ कर दिया। यतीन्द्रनाथ भी इसमें सम्मिलित हुए। अनशन के 63वें दिन जेल में ही इनका देहान्त हो गया।
#REDIRECT [[जतीन्द्रनाथ दास]]
==जन्म और शिक्षा==
अमर शहीद यतीन्द्रनाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर, 1904 ई. को कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]), ब्रिटिश भारत में एक साधारण [[बंगाली भाषा|बंगाली]] परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम बंकिम बिहारी दास और [[माता]] का नाम सुहासिनी देवी था। यतीन्द्र नौ वर्ष के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। 16 वर्ष की उम्र में [[1920]] में यतीन्द्र ने मैट्रिक की परीक्षा पास की।
====क्रांतिकारी गतिविधि====
जब यतीन्द्रनाथ अपनी आगे की शिक्षा पूर्ण कर रहे थे, तभी [[महात्मा गाँधी]] ने '[[असहयोग आन्दोलन]]' प्रारम्भ किया। यतीन्द्र इस आन्दोलन में कूद पड़े। विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देते हुए वे गिरफ़्तार कर लिये गए। उन्हें 6 महीने की सज़ा हुई। लेकिन जब [[चौरी चौरा|चौरी-चौरा]] की घटना के बाद गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो निराश यतीन्द्रनाथ फिर कॉलेज में भर्ती हो गए। कॉलेज का यह प्रवेश यतीन्द्र के जीवन में निर्णायक सिद्ध हुआ।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=667|url=}}</ref>
==शचीन्द्रनाथ से भेंट==
एक युवक के माध्यम से यतीन्द्रनाथ प्रसिद्ध क्रान्तिकारी [[शचीन्द्रनाथ सान्याल]] के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के सदस्य बन गये। अपने सम्पर्कों और साहसपूर्ण कार्यों से उन्होंने दल में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया और अनेक क्रान्तिकारी कार्यों में भाग लिया। इस बीच यतीन्द्र ने बम बनाना भी सीख लिया था।
====नज़रबन्द====
[[1925]] में यतीन्द्रनाथ को 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और '[[काकोरी कांड]]' के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया, किन्तु प्रमाणों के अभाव में मुकदमा न चल पाने पर वे नज़रबन्द कर लिये गए। जेल में दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने 21 [[दिन]] तक जब भूख हड़ताल कर दी तो बिगड़ते स्वास्थ्य को देखकर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा।
==लाहौर षड़यंत्र केस में गिरफ़्तार==
जेल से बाहर आने पर यतीन्द्रनाथ दास ने अपना अध्ययन और राजनीति दोनों काम जारी रखे। [[1928]] की 'कोलकाता कांग्रेस' में वे 'कांग्रेस सेवादल' में [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] के सहायक थे। वहीं उनकी [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] से भेंट हुई और उनके अनुरोध पर बम बनाने के लिए [[आगरा]] आए। [[8 अप्रैल]], [[1929]] को भगत सिंह और [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके, वे इन्हीं के द्वारा बनाये हुए थे। [[14 जून]], 1929 को यतीन्द्र गिरफ़्तार कर लिये गए और उन पर 'लाहौर षड़यंत्र केस' में मुकदमा चला।<ref name="aa"/>
==अनशन==
जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने [[13 जुलाई]], [[1929]] से अनशन आरम्भ कर दिया। यतीन्द्र भी इसमें सम्मिलित हुए। उनका कहना था कि एक बार अनशन आरम्भ होने पर हम अपनी मांगों की पूर्ति के बिना उसे नहीं तोड़ेंगे। कुछ समय के बाद जेल अधिकारियों ने नाक में नली डालकर बलपूर्वक अनशन पर बैठे क्रांतिकारियों के के पेट में [[दूध]] डालना शुरू कर दिया। यतीन्द्र को 21 दिन के पहले अपने अनशन का अनुभव था। उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आई। नाक से डाली नली को सांस से खींचकर वे दांतों से दबा लेते थे। अन्त में पागल खाने के एक डॉक्टर ने एक नाक की नली दांतों से दब जाने पर दूसरी नाक से नली डाल दी, जो यतीन्द्र के फेफड़ों में चली गई। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया। कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा, लेकिन यतीन्द्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए।
==निधन==
अनशन के 63वें दिन [[13 सितम्बर]], [[1929]] को यतीन्द्रनाथ दास का देहान्त हो गया। यतीन्द्र के भाई किरण चंद्रदास ट्रेन से उनके शव को [[कोलकाता]] ले गए। सभी स्टेशनों पर लोगों ने इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। [[कोलकाता]] में शवदाह के समय लाखों की भीड़ एकत्र थी। उनकी इस शानदार अहिंसात्मक शहादत का उल्लेख [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] ने अपनी आत्मकथा में किया है।<ref name="aa"/>
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
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09:42, 2 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

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