"हिन्दी सामान्य ज्ञान 13": अवतरणों में अंतर
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+[[नरोत्तमदास]] | +[[नरोत्तमदास]] | ||
-[[सेनापति कवि|सेनापति]] | -[[सेनापति कवि|सेनापति]] | ||
|| [[चित्र:Narottamdas.jpg| | || [[चित्र:Narottamdas.jpg|100px|right|नरोत्तमदास]] नरोत्तमदास [[हिन्दी]] के प्रमुख साहित्यकार थे। [[हिन्दी साहित्य]] में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, [[उत्तर प्रदेश]] के [[सीतापुर]] जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘[[सुदामा चरित -नरोत्तमदास|सुदामा चरित]]’ ([[ब्रजभाषा]] में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[नरोत्तमदास]] | ||
{जीवन में हास्य का महत्त्व इसलिए है कि, वह जीवन को- | {जीवन में हास्य का महत्त्व इसलिए है कि, वह जीवन को- | ||
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+सरस बनाता है | +सरस बनाता है | ||
{ | {[[शृंगार रस]] का स्थायी भाव है- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+रति | +रति | ||
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-सत्य प्रकाश मिश्र | -सत्य प्रकाश मिश्र | ||
-[[खुशवन्त सिंह]] | -[[खुशवन्त सिंह]] | ||
|| [[चित्र:Kamleshwar.jpg|right|100px]] ‘कितने पाकिस्तान’ ने कमलेश्वर को सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। [[हिन्दी]] में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, 2002 से 2008 तक | || [[चित्र:Kamleshwar.jpg|right|100px]] ‘कितने पाकिस्तान’ ने कमलेश्वर को सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। [[हिन्दी]] में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, 2002 से 2008 तक 11 संस्करण हो चुके हैं। कमलेश्वर, बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक हैं। [[कहानी]], [[उपन्यास]], [[पत्रकारिता]], स्तंभ लेखन, फ़िल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कमलेश्वर]] | ||
{राजेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित पुस्तक 'आलोचना का विवेक' किस विधा से संबंधित है? | {राजेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित पुस्तक 'आलोचना का विवेक' किस विधा से संबंधित है? | ||
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-[[घनानन्द]] | -[[घनानन्द]] | ||
-शिवसिंह | -शिवसिंह | ||
||[[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-19.jpg|सूरदास, सूरसरोवर, आगरा|100px|right]]सूरदास जी के पिता श्री रामदास गायक थे। सूरदास जी के [[जन्मांध]] होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको [[वल्लभ-सम्प्रदाय|पुष्टिमार्ग]] में [[दीक्षा]] | ||[[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-19.jpg|सूरदास, सूरसरोवर, आगरा|100px|right]]सूरदास जी के पिता श्री रामदास गायक थे। सूरदास जी के [[जन्मांध]] होने के विषय में भी मतभेद हैं। [[आगरा]] के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको [[वल्लभ-सम्प्रदाय|पुष्टिमार्ग]] में [[दीक्षा]] देकर कृष्णलीला के ([[काव्य]]) [[पद (काव्य)|पद]] गाने का आदेश दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरदास]] | ||
{'[[ईदगाह -प्रेमचंद|ईदगाह]]' कहानी के रचनाकार हैं? | {'[[ईदगाह -प्रेमचंद|ईदगाह]]' कहानी के रचनाकार हैं? | ||
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-[[जयशंकर प्रसाद]] | -[[जयशंकर प्रसाद]] | ||
-[[जैनेन्द्र कुमार]] | -[[जैनेन्द्र कुमार]] | ||
||[[चित्र:Premchand.jpg|right|80px|मुंशी प्रेमचंद]] [[भारत]] के उपन्यास सम्राट '''मुंशी प्रेमचंद''' (जन्म- [[31 जुलाई]], [[1880]] - मृत्यु- [[8 अक्टूबर]], [[1936]]) के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा।<br />प्रेमचंद का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मुंशी प्रेमचंद|प्रेमचंद]] | ||[[चित्र:Premchand.jpg|right|80px|मुंशी प्रेमचंद]] [[भारत]] के उपन्यास सम्राट '''मुंशी प्रेमचंद''' (जन्म- [[31 जुलाई]], [[1880]] - मृत्यु- [[8 अक्टूबर]], [[1936]]) के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड [[भारत]] के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा।<br />प्रेमचंद का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मुंशी प्रेमचंद|प्रेमचंद]] | ||
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12:23, 23 नवम्बर 2014 का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
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