"सोम ठाकुर": अवतरणों में अंतर
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सोम ठाकुर का [[विवाह]] [[मुरैना ज़िला|मुरैना ज़िले]] के निवासी जगन्नाथ सिंह की इकलौती पुत्री सुमन लता से [[5 मई]], [[1954]] को संपन्न हुआ। इनकी पत्नी सुमन लता ने पग-पग पर जीवन संघर्ष में इनका साथ दिया। सोम ठाकुर चार पुत्रियों- वंदना, अर्चना, नीराजना तथा आराधना और दो पुत्रों- अजित वरदान सिंह व अमित श्रीदान सिंह के पिता भी बने। | सोम ठाकुर का [[विवाह]] [[मुरैना ज़िला|मुरैना ज़िले]] के निवासी जगन्नाथ सिंह की इकलौती पुत्री सुमन लता से [[5 मई]], [[1954]] को संपन्न हुआ। इनकी पत्नी सुमन लता ने पग-पग पर जीवन संघर्ष में इनका साथ दिया। सोम ठाकुर चार पुत्रियों- वंदना, अर्चना, नीराजना तथा आराधना और दो पुत्रों- अजित वरदान सिंह व अमित श्रीदान सिंह के पिता भी बने। | ||
====अध्यापन कार्य तथा विदेश गमन==== | |||
सोम ठाकुर ने 'आगरा कॉलेज' में [[1959]] से पढ़ाने का कार्य शुरू किया। 1959 से 1963 तक इन्होंने 'आगरा कॉलेज' में अध्यापन कर्य किया और फिर 1963 से [[1969]] तक 'सेन्ट जोन्स कॉलेज', [[आगरा]] में पढ़ाया। उसके बाद में इस्तीफा देकर [[मैनपुरी]] चले गए। मैनपुरी में 'नॅशनल कॉलेज', भोगांव में ये विभागाद्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। वहाँ इन्होंने [[1984]] तक नौकरी की। फिर ये [[अमेरिका]] चले गए। लेकिन अमेरिका जाने से पहले ये कनाडा गए, फिर केंद्र सरकार की तरफ से [[हिन्दी]] के प्रसार के लिए मॉरिसस भेजे गए। वहाँ से अमेरिका चले गए। यहाँ सोम ठाकुर [[2004]] तक रहे। जब वापस आये तो [[मुलायम सिंह यादव]] ने इन्हें 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया। वहाँ ये साढ़े तीन साल तक रहे, फिर [[आगरा]] लौट आए।<ref>{{cite web |url=http://hi.navgeet.wikia.com/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AE_%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0|title=सोम ठाकुर गीतकार|accessmonthday=06 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
==कवि यात्रा== | ==कवि यात्रा== | ||
सन [[1945]] में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ था, ब्रिटिश शासन के आगे जर्मनी व जापान आदि देशो ने समर्पण कर दिया था। इसी विजय दिवस के अवसर पर राजकीय विद्यालय में बच्चों की काव्य- पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में सोम ठाकुर भी अपनी कविता लेकर पहुँचे थे, लेकिन साहस ना जुटा पाने के कारण वे अपनी कविता नही पढ़ सके। यह पहला अवसर था, जब सोम ठाकुर स्वरचित तुकबंदी लेकर वहाँ पहुँचे थे। बाद के समय में सोम ठाकुर एक दिन '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]', [[आगरा]] पहुँचे। वे पहले उसके सदस्य बने, फिर कविताओं की पुस्तकों का चयन किया, जिसमें [[महादेवी वर्मा]] द्वारा लिखित 'दीपशिखा' अपने नाम पर लिखा ली। 'दीपशिखा' की ओर प्रभावित होने का एक कारण ये भी था की इसमें [[कविता]] के साथ जो काव्य रूप चित्र थे, उनसे वे प्रभावित हुए। एक शब्दकोष भी खरीदा और एक कविता प्रारम्भ में लिखी "यातनाएँ ये नहीं निर्माण के पल है"। सोम ठाकुर ने ये कविता मित्रों को पढ़कर सुनाई। उन्होंने सराहना की तथा सोम ठाकुर ने 'अम्बुज' उपनाम शीर्षक से नामकरण संस्कार भी कर दिया। कुर्ता पयज़ामा पहनकर कवि सम्मेलन में जाना उन्हें रुचिकार लगने लगा और इसी रूप में अपनी पहचान बनाने का वे प्रयास करने लगे।<ref name="aa"/> | सन [[1945]] में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ था, ब्रिटिश शासन के आगे जर्मनी व जापान आदि देशो ने समर्पण कर दिया था। इसी विजय दिवस के अवसर पर राजकीय विद्यालय में बच्चों की काव्य- पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में सोम ठाकुर भी अपनी कविता लेकर पहुँचे थे, लेकिन साहस ना जुटा पाने के कारण वे अपनी कविता नही पढ़ सके। यह पहला अवसर था, जब सोम ठाकुर स्वरचित तुकबंदी लेकर वहाँ पहुँचे थे। बाद के समय में सोम ठाकुर एक दिन '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]', [[आगरा]] पहुँचे। वे पहले उसके सदस्य बने, फिर कविताओं की पुस्तकों का चयन किया, जिसमें [[महादेवी वर्मा]] द्वारा लिखित 'दीपशिखा' अपने नाम पर लिखा ली। 'दीपशिखा' की ओर प्रभावित होने का एक कारण ये भी था की इसमें [[कविता]] के साथ जो काव्य रूप चित्र थे, उनसे वे प्रभावित हुए। एक शब्दकोष भी खरीदा और एक कविता प्रारम्भ में लिखी "यातनाएँ ये नहीं निर्माण के पल है"। सोम ठाकुर ने ये कविता मित्रों को पढ़कर सुनाई। उन्होंने सराहना की तथा सोम ठाकुर ने 'अम्बुज' उपनाम शीर्षक से नामकरण संस्कार भी कर दिया। कुर्ता पयज़ामा पहनकर कवि सम्मेलन में जाना उन्हें रुचिकार लगने लगा और इसी रूप में अपनी पहचान बनाने का वे प्रयास करने लगे।<ref name="aa"/> | ||
====व्यावसायिक शुरुआत==== | |||
सोम ठाकुर ने सर्वप्रथम [[आगरा]] के एक प्रकाशक के यहाँ लिपिक के रूप में नौकरी की तथा वे ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे। नौकरी और ट्यूशन की आय ही उनकी कुल आय थी। किशोर अवस्था में उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता था और इसी से संतोष होता था, परंतु भाग्य रेखा कुछ और ही कह रही थी। सन [[1953]] में [[हाथरस ज़िला]] [[अलीगढ़]] के मेले में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सोम ठाकुर को भी इसमें आमंत्रित किया गया था। सोम ठाकुर के लिए यह पहला नगर के बाहर का आमंत्रण था, अत: सोम ठाकुर के लिए अति प्रसन्नता का विषय भी बना और जाने की उत्सुकता भी। इसलिए अपने कुर्ते पयज़ामे में हाथरस जा पहुँचे। उनकी कविताओं को लोगो ने बेहद पसंद किया। दो गीत पढ़ने के बाद जब वे विदा हुए तो कुछ रुपये, पत्र-पुष्प भेंट में मिले। रास्ते भर अपने आने-जाने का कुल खर्चा जोड़ के हिसाब लगाया की इससे अच्छा काम और क्या हो सकता है की आय भी और [[हिन्दी साहित्य]] के निर्माण में योगदान भी। [[आगरा]] वापस सोम ठाकुर ने नौकरी व ट्यूशन करना त्याग दिया और अपने स्वप्न को पूरा करने में जुट गये। | |||
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*[http://www.brandbihar.com/hindi/literature/kavya/somthakur.html हिन्दी के कवि सोम ठाकुर] | *[http://www.brandbihar.com/hindi/literature/kavya/somthakur.html हिन्दी के कवि सोम ठाकुर] | ||
*[http://www.anubhuti-hindi.org/geet/s/som_thakur/index.htm सोम ठाकुर की रचनाएँ] | *[http://www.anubhuti-hindi.org/geet/s/som_thakur/index.htm सोम ठाकुर की रचनाएँ] | ||
*[http://www.hindibhawan.com/linkpages_hindibhawan/vividh_karyakrama/linkpages_vividh_karyakrama/vk_Kaya_yatra/linkpage_KV/KV6/VA_KV6.html श्री सोम ठाकुर] | *[http://www.hindibhawan.com/linkpages_hindibhawan/vividh_karyakrama/linkpages_vividh_karyakrama/vk_Kaya_yatra/linkpage_KV/KV6/VA_KV6.html श्री सोम ठाकुर] |
10:07, 6 अक्टूबर 2013 का अवतरण
सोम ठाकुर (जन्म- 5 मार्च, 1934, आगरा, उत्तर प्रदेश) मुक्तक, ब्रज के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। इन्होंने 1959 से 1963 तक 'आगरा क़ोलेज', उत्तर प्रदेश में अध्यापन कार्य भी कराया। वर्ष 1984 में सोम ठाकुर पहले कनाडा, फिर हिन्दी के प्रसार के लिए मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में 'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।
जन्म
सोम ठाकुर का जन्म 5 मार्च, 1934 को अहीर पाड़ा, राजामंडी, आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता का नाम दीपचन्द ठाकुर तथा माता श्रीमति श्यामदेवी थीं। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण इनका पालन-पोषण बड़े प्यार से हुआ। इनका बाल्यकाल का नाम सोम प्रकाश ठाकुर रखा गया था, किंतु कविता लिखने के पश्चात इनके नाम से 'प्रकाश' हट गया और प्रसिद्ध कवि तथा गीतकार प्रो. जगत प्रकाश चतुर्वेदी के कहने पर इनका नाम सिर्फ़ सोम ठाकुर रह गया। जन्म के गणित के अनुसार इनका नाम निरंजन सिंह था।[1]
शिक्षा
सोम ठाकुर को माता-पिता ने इकलौती संतान होने के कारण दस वर्ष तक घर पर ही अंग्रेज़ी, गणित तथा हिन्दी की पढ़ाई मास्टर पंडित रामप्रसाद तथा पंडित सेवाराम द्वारा करवाई। 5वीं कक्षा से 10वीं कक्षा तक की शिक्षा इन्होंने 'गवर्नमेंट हाईस्कूल', आगरा से प्राप्त की। हाईस्कूल के बाद इन्होंने 'आगरा कॉलेज' से जीव विज्ञान के साथ इण्टर किया और फिर बी.एस.सी. की पढ़ाई करने लगे। लेकिन इसी बीच सोम ठाकुर की रूचि साहित्य और हिन्दी कविता की ओर हो गई। अत: उन्होंने बी.एस.सी. छोड़ दी। अब सोम ठाकुर ने अंग्रेज़ी साहित्य और हिन्दी साहित्य के साथ बी.ए. किया और फिर हिन्दी से एम.ए. किया।
विवाह
सोम ठाकुर का विवाह मुरैना ज़िले के निवासी जगन्नाथ सिंह की इकलौती पुत्री सुमन लता से 5 मई, 1954 को संपन्न हुआ। इनकी पत्नी सुमन लता ने पग-पग पर जीवन संघर्ष में इनका साथ दिया। सोम ठाकुर चार पुत्रियों- वंदना, अर्चना, नीराजना तथा आराधना और दो पुत्रों- अजित वरदान सिंह व अमित श्रीदान सिंह के पिता भी बने।
अध्यापन कार्य तथा विदेश गमन
सोम ठाकुर ने 'आगरा कॉलेज' में 1959 से पढ़ाने का कार्य शुरू किया। 1959 से 1963 तक इन्होंने 'आगरा कॉलेज' में अध्यापन कर्य किया और फिर 1963 से 1969 तक 'सेन्ट जोन्स कॉलेज', आगरा में पढ़ाया। उसके बाद में इस्तीफा देकर मैनपुरी चले गए। मैनपुरी में 'नॅशनल कॉलेज', भोगांव में ये विभागाद्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। वहाँ इन्होंने 1984 तक नौकरी की। फिर ये अमेरिका चले गए। लेकिन अमेरिका जाने से पहले ये कनाडा गए, फिर केंद्र सरकार की तरफ से हिन्दी के प्रसार के लिए मॉरिसस भेजे गए। वहाँ से अमेरिका चले गए। यहाँ सोम ठाकुर 2004 तक रहे। जब वापस आये तो मुलायम सिंह यादव ने इन्हें 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया। वहाँ ये साढ़े तीन साल तक रहे, फिर आगरा लौट आए।[2]
कवि यात्रा
सन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ था, ब्रिटिश शासन के आगे जर्मनी व जापान आदि देशो ने समर्पण कर दिया था। इसी विजय दिवस के अवसर पर राजकीय विद्यालय में बच्चों की काव्य- पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में सोम ठाकुर भी अपनी कविता लेकर पहुँचे थे, लेकिन साहस ना जुटा पाने के कारण वे अपनी कविता नही पढ़ सके। यह पहला अवसर था, जब सोम ठाकुर स्वरचित तुकबंदी लेकर वहाँ पहुँचे थे। बाद के समय में सोम ठाकुर एक दिन 'नागरी प्रचारिणी सभा', आगरा पहुँचे। वे पहले उसके सदस्य बने, फिर कविताओं की पुस्तकों का चयन किया, जिसमें महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'दीपशिखा' अपने नाम पर लिखा ली। 'दीपशिखा' की ओर प्रभावित होने का एक कारण ये भी था की इसमें कविता के साथ जो काव्य रूप चित्र थे, उनसे वे प्रभावित हुए। एक शब्दकोष भी खरीदा और एक कविता प्रारम्भ में लिखी "यातनाएँ ये नहीं निर्माण के पल है"। सोम ठाकुर ने ये कविता मित्रों को पढ़कर सुनाई। उन्होंने सराहना की तथा सोम ठाकुर ने 'अम्बुज' उपनाम शीर्षक से नामकरण संस्कार भी कर दिया। कुर्ता पयज़ामा पहनकर कवि सम्मेलन में जाना उन्हें रुचिकार लगने लगा और इसी रूप में अपनी पहचान बनाने का वे प्रयास करने लगे।[1]
व्यावसायिक शुरुआत
सोम ठाकुर ने सर्वप्रथम आगरा के एक प्रकाशक के यहाँ लिपिक के रूप में नौकरी की तथा वे ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे। नौकरी और ट्यूशन की आय ही उनकी कुल आय थी। किशोर अवस्था में उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता था और इसी से संतोष होता था, परंतु भाग्य रेखा कुछ और ही कह रही थी। सन 1953 में हाथरस ज़िला अलीगढ़ के मेले में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सोम ठाकुर को भी इसमें आमंत्रित किया गया था। सोम ठाकुर के लिए यह पहला नगर के बाहर का आमंत्रण था, अत: सोम ठाकुर के लिए अति प्रसन्नता का विषय भी बना और जाने की उत्सुकता भी। इसलिए अपने कुर्ते पयज़ामे में हाथरस जा पहुँचे। उनकी कविताओं को लोगो ने बेहद पसंद किया। दो गीत पढ़ने के बाद जब वे विदा हुए तो कुछ रुपये, पत्र-पुष्प भेंट में मिले। रास्ते भर अपने आने-जाने का कुल खर्चा जोड़ के हिसाब लगाया की इससे अच्छा काम और क्या हो सकता है की आय भी और हिन्दी साहित्य के निर्माण में योगदान भी। आगरा वापस सोम ठाकुर ने नौकरी व ट्यूशन करना त्याग दिया और अपने स्वप्न को पूरा करने में जुट गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कवि सोम ठाकुर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2013।
- ↑ सोम ठाकुर गीतकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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