"कांचीपुरम": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Kanchipuram-Temple- India.jpg|thumb|250px|कांचीपुरम मंदिर, भारत<br />Kanchipuram Temple, India]]
[[चित्र:Kanchipuram-Temple- India.jpg|thumb|250px|कांचीपुरम मंदिर, भारत<br />Kanchipuram Temple, India]]
*कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील दक्षिण –पश्चिम  में स्थित है । कांची आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है ।
*कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है। यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है।
*ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्म्मा ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था ।
*ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्म जी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था।
*मोक्षदायिनी सप्त पुरियों [[अयोध्या]],[[मथुरा]],[[द्वारका]], माया([[हरिद्वार]]),[[काशी]] और अवन्तिका ([[उज्जैन]]) में इसकी गणना है ।
*मोक्षदायिनी सप्त पुरियों [[अयोध्या]], [[मथुरा]], [[द्वारका]], माया([[हरिद्वार]]), [[काशी]] और अवन्तिका ([[उज्जैन]]) में इसकी गणना है।
*कांची हरिहरात्मक पुरी है । इसके शिवकांची, विष्णुकांची दो भाग हैं । सम्भवत: कामाक्षी मन्दिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है । दक्षिण के पंच तत्वलिंगो में से भूतत्वलिंग के सम्बन्ध में कुछ मतभेद है । कुछ लोग कांची के एकाम्रेश्वर लिंग को भूतत्वलिंग मानते हैं, और कुछ लोग तिरूवारूर की त्यागराजलिंग मूर्ति को । इसका माहात्म्य निम्नलिखित हैं ।:<br />
*कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। सम्भवत: कामाक्षी मन्दिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है। दक्षिण के पंच तत्वलिंगो में से भूतत्वलिंग के सम्बन्ध में कुछ मतभेद है। कुछ लोग कांची के एकाम्रेश्वर लिंग को भूतत्वलिंग मानते हैं, और कुछ लोग तिरूवारूर की त्यागराजलिंग मूर्ति को। इसका माहात्म्य निम्नलिखित हैं।<br />
<blockquote>रहस्यं सम्प्रवक्ष्यामि लोपामुद्रापते श्रृणु।<br />
<blockquote>रहस्यं सम्प्रवक्ष्यामि लोपामुद्रापते श्रृणु।<br />
नेत्रद्वयं महेशस्य काशीकाञ्चीपुरीद्वयम्॥<br />
नेत्रद्वयं महेशस्य काशीकाञ्चीपुरीद्वयम्॥<br />
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
काञ्चीक्षेत्रें पुरा धाता सर्वलोकपितामह:॥<br />
काञ्चीक्षेत्रें पुरा धाता सर्वलोकपितामह:॥<br />
श्रीदेवीदर्शनार्थाय तपस्तेपे सुदुष्करम्।<br />
श्रीदेवीदर्शनार्थाय तपस्तेपे सुदुष्करम्।<br />
प्रादुरास पुरो लक्ष्मी: पद्महस्तपुरस्सरा ।<br />
प्रादुरास पुरो लक्ष्मी: पद्महस्तपुरस्सरा।<br />
पद्मासने च तिष्ठ्न्ती विष्णुना जिष्णुना सह ।<br />
पद्मासने च तिष्ठ्न्ती विष्णुना जिष्णुना सह।<br />
सर्वश्रृगांर वेषाढया सर्वाभरण्भूषिता ॥    (ब्रह्माण्डपु॰ ललितोपाख्यान 35)<br /></blockquote>
सर्वश्रृगांर वेषाढया सर्वाभरण्भूषिता॥ (ब्रह्माण्डपु॰ ललितोपाख्यान 35)<br /></blockquote>
[[चित्र:Kailasanathar-Temple-Kanchipuram.jpg|thumb|250px|कैलाशनाथार मंदिर, कांचीपुरम<br />Kailasanathar Temple Kanchipuram]]
[[चित्र:Kailasanathar-Temple-Kanchipuram.jpg|thumb|250px|कैलाशनाथार मंदिर, कांचीपुरम<br />Kailasanathar Temple Kanchipuram]]
*यह ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था । सम्भवत: यह  दक्षिण भारत का नहीं तो तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था ।
*यह ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था। सम्भवत: यह  दक्षिण भारत का नहीं तो तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था।
*बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्म स्थान यहीं था, इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय जीवन का केन्द्र था ।
*बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्म स्थान यहीं था, इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय जीवन का केन्द्र था।
*यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस वात को प्रमाणित करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक केन्द्र रहा है ।
*यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस वात को प्रमाणित करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक केन्द्र रहा है।
*छ्ठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल के मध्य 1000 वर्ष के द्रविड़ मन्दिर शिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान में देखा जा सकता है ।
*छ्ठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल के मध्य 1000 वर्ष के द्रविड़ मन्दिर शिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान में देखा जा सकता है।
*‘कैलासनाथ’ मन्दिर इस कला के चरमोत्कर्ष का उदाहरण है । एक दशाब्दी पीछे का बना ‘वैकुण्ठ पेरुमल’ इस कला के सौष्ठव का सूचक है । उपयुक्त दोनों मन्दिर पल्ल्व नृपों के शिल्पकला प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं ।
*‘कैलासनाथ’ मन्दिर इस कला के चरमोत्कर्ष का उदाहरण है। एक दशाब्दी पीछे का बना ‘वैकुण्ठ पेरुमल’ इस कला के सौष्ठव का सूचक है। उपयुक्त दोनों मन्दिर पल्ल्व नृपों के शिल्पकला प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
 
 


[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]   
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]   
__INDEX__
__INDEX__

13:36, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

कांचीपुरम मंदिर, भारत
Kanchipuram Temple, India
  • कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है। यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है।
  • ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्म जी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था।
  • मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में इसकी गणना है।
  • कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। सम्भवत: कामाक्षी मन्दिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है। दक्षिण के पंच तत्वलिंगो में से भूतत्वलिंग के सम्बन्ध में कुछ मतभेद है। कुछ लोग कांची के एकाम्रेश्वर लिंग को भूतत्वलिंग मानते हैं, और कुछ लोग तिरूवारूर की त्यागराजलिंग मूर्ति को। इसका माहात्म्य निम्नलिखित हैं।

रहस्यं सम्प्रवक्ष्यामि लोपामुद्रापते श्रृणु।

नेत्रद्वयं महेशस्य काशीकाञ्चीपुरीद्वयम्॥
विख्यातं वैष्णवं क्षेत्रं शिवसांनिध्यकाकम्।
काञ्चीक्षेत्रें पुरा धाता सर्वलोकपितामह:॥
श्रीदेवीदर्शनार्थाय तपस्तेपे सुदुष्करम्।
प्रादुरास पुरो लक्ष्मी: पद्महस्तपुरस्सरा।
पद्मासने च तिष्ठ्न्ती विष्णुना जिष्णुना सह।

सर्वश्रृगांर वेषाढया सर्वाभरण्भूषिता॥ (ब्रह्माण्डपु॰ ललितोपाख्यान 35)

कैलाशनाथार मंदिर, कांचीपुरम
Kailasanathar Temple Kanchipuram
  • यह ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था। सम्भवत: यह दक्षिण भारत का नहीं तो तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था।
  • बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्म स्थान यहीं था, इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय जीवन का केन्द्र था।
  • यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस वात को प्रमाणित करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक केन्द्र रहा है।
  • छ्ठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल के मध्य 1000 वर्ष के द्रविड़ मन्दिर शिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान में देखा जा सकता है।
  • ‘कैलासनाथ’ मन्दिर इस कला के चरमोत्कर्ष का उदाहरण है। एक दशाब्दी पीछे का बना ‘वैकुण्ठ पेरुमल’ इस कला के सौष्ठव का सूचक है। उपयुक्त दोनों मन्दिर पल्ल्व नृपों के शिल्पकला प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।