"रसखान की कविताएँ": अवतरणों में अंतर

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<blockquote><poem>मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।  
<blockquote><poem>मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।  
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पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल [[कालिन्दी नदी|कालिन्दी]]-कूल-कदम्ब की डारन।।</poem></blockquote>
जो खग हौं बसेरो करौं मिल [[कालिन्दी नदी|कालिन्दी]]-कूल-कदम्ब की डारन।।</poem></blockquote>
==रसखान की कविताएँ==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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09:36, 13 दिसम्बर 2013 का अवतरण

रसखान की कविताएँ
पूरा नाम सैय्यद इब्राहीम (रसखान)
जन्म सन् 1533 से 1558 बीच (लगभग)
जन्म भूमि पिहानी, हरदोई ज़िला, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि महावन (मथुरा)
कर्म-क्षेत्र कृष्ण भक्ति काव्य
विषय सगुण कृष्णभक्ति
भाषा साधारण ब्रज भाषा
विशेष योगदान प्रकृति वर्णन, कृष्णभक्ति
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

रसखान की कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं- 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका'। 'सुजान रसखान' में 139 सवैये और कवित्त है। 'प्रेमवाटिका' में 52 दोहे हैं, जिनमें प्रेम का बड़ा अनूठा निरूपण किया गया है। रसखानि के सरस सवैय सचमुच बेजोड़ हैं। सवैया का दूसरा नाम 'रसखान' भी पड़ गया है। शुद्ध ब्रजभाषा में रसखानि ने प्रेमभक्ति की अत्यंत सुंदर प्रसादमयी रचनाएँ की हैं। यह एक उच्च कोटि के भक्त कवि थे, इसमें संदेह नहीं।

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।

रसखान की कविताएँ



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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