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==वंश ब्राह्मण / Vansha Brahman==
==वंश ब्राह्मण / Vansha Brahman==
वंश ब्राह्मण [[सामवेद]] का अष्टम ब्राह्मण है इसमें साम-सम्प्रदाय प्रवर्तक ॠषियों और आचार्यों की वंश-परम्परा दी गई है, जिनसे सामवेद का अध्ययनक्रम अग्रसर हुआ है। इसमें तीन खण्ड हैं। ग्रन्थारम्भ में [[ब्रह्मा]], [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]], आचार्यों, ॠषियों और देवों-[[वायु]], मृत्यु, [[विष्णु]] और वैश्रवण को नमस्कार किया गया है। [[सायण]] के अनुसार ये सभी परापर गुरु हैं। तदनन्तर प्रथम दो खण्डों में शर्वदत्त गार्ग्य, जो परम्परा की अन्तिम कड़ी हैं, से प्रारम्भ करके कश्यपान्ता ॠषि-परम्परा है। कश्यप ने [[अग्नि]] से, अग्नि ने [[इन्द्र]] से, इन्द्र ने वायु से, वायु ने मृत्यु से, मृत्यु ने [[प्रजापति]] से और प्रजापति ने ब्रह्मा से सामवेद को उपलब्ध किया। इस प्रकार सामवेद की परम्परा वस्तुत: स्वयम्भू ब्रह्मा से प्रारम्भ हुई, जो विभिन्न देवों के माध्यम से [[कश्यप]] ॠषि तक पहुँची तथा कश्यप ॠषि से प्रारम्भ परम्परा शर्वदत्त गार्ग्य तक गई। ॠषि-आचार्यों की इस परम्परा में गौतम राध से एक द्वितीय धारा निस्सृत हुई है, जो नयन तक जाती है।  
वंश ब्राह्मण [[सामवेद]] का अष्टम ब्राह्मण है इसमें साम-सम्प्रदाय प्रवर्तक ॠषियों और आचार्यों की वंश-परम्परा दी गई है, जिनसे सामवेद का अध्ययनक्रम अग्रसर हुआ है। इसमें तीन खण्ड हैं। ग्रन्थारम्भ में [[ब्रह्मा]], [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]], आचार्यों, ॠषियों और देवों-[[वायु]], मृत्यु, [[विष्णु]] और वैश्रवण को नमस्कार किया गया है। [[सायण]] के अनुसार ये सभी परापर गुरु हैं। तदनन्तर प्रथम दो खण्डों में शर्वदत्त गार्ग्य, जो परम्परा की अन्तिम कड़ी हैं, से प्रारम्भ करके कश्यपान्ता ॠषि-परम्परा है। कश्यप ने [[अग्नि]] से, अग्नि ने [[इन्द्र]] से, इन्द्र ने वायु से, वायु ने मृत्यु से, मृत्यु ने [[प्रजापति]] से और प्रजापति ने ब्रह्मा से सामवेद को उपलब्ध किया। इस प्रकार सामवेद की परम्परा वस्तुत: स्वयम्भू ब्रह्मा से प्रारम्भ हुई, जो विभिन्न देवों के माध्यम से [[कश्यप]] ॠषि तक पहुँची तथा कश्यप ॠषि से प्रारम्भ परम्परा शर्वदत्त गार्ग्य तक गई। ॠषि-आचार्यों की इस परम्परा में गौतम राध से एक द्वितीय धारा निस्सृत हुई है, जो नयन तक जाती है।  

07:48, 25 मार्च 2010 का अवतरण

वंश ब्राह्मण / Vansha Brahman

वंश ब्राह्मण सामवेद का अष्टम ब्राह्मण है इसमें साम-सम्प्रदाय प्रवर्तक ॠषियों और आचार्यों की वंश-परम्परा दी गई है, जिनसे सामवेद का अध्ययनक्रम अग्रसर हुआ है। इसमें तीन खण्ड हैं। ग्रन्थारम्भ में ब्रह्मा, ब्राह्मणों, आचार्यों, ॠषियों और देवों-वायु, मृत्यु, विष्णु और वैश्रवण को नमस्कार किया गया है। सायण के अनुसार ये सभी परापर गुरु हैं। तदनन्तर प्रथम दो खण्डों में शर्वदत्त गार्ग्य, जो परम्परा की अन्तिम कड़ी हैं, से प्रारम्भ करके कश्यपान्ता ॠषि-परम्परा है। कश्यप ने अग्नि से, अग्नि ने इन्द्र से, इन्द्र ने वायु से, वायु ने मृत्यु से, मृत्यु ने प्रजापति से और प्रजापति ने ब्रह्मा से सामवेद को उपलब्ध किया। इस प्रकार सामवेद की परम्परा वस्तुत: स्वयम्भू ब्रह्मा से प्रारम्भ हुई, जो विभिन्न देवों के माध्यम से कश्यप ॠषि तक पहुँची तथा कश्यप ॠषि से प्रारम्भ परम्परा शर्वदत्त गार्ग्य तक गई। ॠषि-आचार्यों की इस परम्परा में गौतम राध से एक द्वितीय धारा निस्सृत हुई है, जो नयन तक जाती है।

वंश ब्राह्मण के संस्करण

वंश ब्राह्मण के चार संस्करण उपलब्ध हैं-
(क) सत्यव्रत सामश्रमी द्वारा सम्पादित कलकत्ता-संस्करण,
(ख) वेबर द्वारा 'इन्दिशे स्तूदियन' में प्रकाशित,
(ग) ए॰सी॰ बर्नेल द्वारा सम्पादित तथा मंगलोर से प्रकाशित,
(घ) बी॰आर॰ शर्मा द्वारा सम्पादित तथा तिरुपति से 1965 में प्रकाशित।