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*ये अकलंकदेव के उत्तरवर्ती और आचार्य [[विद्यानन्द]] के पूर्ववर्ती अर्थात 8वीं, 9वीं शताब्दी के विद्वान है। | *ये अकलंकदेव के उत्तरवर्ती और आचार्य [[विद्यानन्द]] के पूर्ववर्ती अर्थात 8वीं, 9वीं शताब्दी के विद्वान है। |
08:33, 25 मार्च 2010 का अवतरण
आचार्य कुमारनन्दि / Acharya Kumarnandi
- ये अकलंकदेव के उत्तरवर्ती और आचार्य विद्यानन्द के पूर्ववर्ती अर्थात 8वीं, 9वीं शताब्दी के विद्वान है।
- विद्यानन्द ने इनका और इनके 'वादन्याय' का अपने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक<balloon title="तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ0 280" style=color:blue>*</balloon>, प्रमाण-परीक्षा<balloon title="तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक,1991,पृ0 49 " style=color:blue>*</balloon> और पत्र-परीक्षा<balloon title="पत्र-परीक्षा,पृ0 5" style=color:blue>*</balloon> में नामोल्लेख किया है<balloon title="इस लेख के लेखक (डॉ0 कोठिया) द्वारा संपादित, अनूदित एवं वीर सेवा मन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) से 1945 में प्रकाशित नया संस्करण, जिसके दो संस्करण और निकल चुके हैं।" style=color:blue>*</balloon> तथा उनके इस ग्रन्थ से कुछ प्रासंगिक कारिकाएँ उद्धृत की हैं।
- एक जगह<balloon title="तत्त्वार्थ-श्लो0 पृ0 280 में" style=color:blue>*</balloon> तो विद्यानन्द ने इन्हें बहुसम्मान देते हुए 'वादन्यायविचक्षण' भी कहा है।
- इनका यह 'वादन्याय' ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है।
- बौद्ध विद्वान धर्मकीर्ति<balloon title="635" style=color:blue>*</balloon> का 'वादन्याय' उपलब्ध है।
- संभव है कुमारनन्दि को अपना 'वादन्याय' रचने की प्रेरणा उसी से मिली हो।
- दु:ख है कि जैनों ने अपने वाङमय की रक्षा करने में घोर प्रमाद किया तथा उसकी उपेक्षा की है।
- आज भी वही स्थिति है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।