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भारतीय विदेश सेवा की बुनियाद, ब्रिटिश शासन के दौरान उस समय रखी गई जब ‘विदेशी यूरोपीय शक्तियों’ के साथ कार्य संचालन के लिए विदेश विभाग का सृजन किया गया था। वस्तुत: [[13 सितंबर]], 1783 को [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के निदेशक मंडल ने [[फोर्ट विलियम कोलकाता|फोर्ट विलियम, कलकत्ता]] (अब [[कोलकाता]]) में एक ऐसे विभाग के सृजन हेतु संकल्प पारित किया जो [[वारेन हेस्टिंग्स]] प्रशासन पर अपने ‘गुप्त और राजनैतिक कार्य संचालन’ पर पड़ रहे दबाव को ‘कम करने में सहायक’ हो। तदुपरांत ‘भारतीय विदेश विभाग’ नामक इस विभाग ने ब्रिटिश हितों की रक्षा हेतु, जहां आवश्यक ‘हुआ’ राजनयिक प्रतिनिधित्व का विस्तार किया। 1843 में गवर्नर जनरल एलनबारो ने प्रशासनिक सुधार किया जिसके तहत सरकार के सचिवालय को चार विभागों विदेश, गृह, वित्त और सैन्य में व्यवस्थित किया गया। प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष, सचिव स्तर का अधिकारी था। विदेश विभाग के सचिव को ‘सरकार के विदेशी और आंतरिक राजनयिक संबंधों के बारे में हर प्रकार का पत्राचार करने’ का कार्य सौंपा गया था। | भारतीय विदेश सेवा की बुनियाद, ब्रिटिश शासन के दौरान उस समय रखी गई जब ‘विदेशी यूरोपीय शक्तियों’ के साथ कार्य संचालन के लिए विदेश विभाग का सृजन किया गया था। वस्तुत: [[13 सितंबर]], 1783 को [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के निदेशक मंडल ने [[फोर्ट विलियम कोलकाता|फोर्ट विलियम, कलकत्ता]] (अब [[कोलकाता]]) में एक ऐसे विभाग के सृजन हेतु संकल्प पारित किया जो [[वारेन हेस्टिंग्स]] प्रशासन पर अपने ‘गुप्त और राजनैतिक कार्य संचालन’ पर पड़ रहे दबाव को ‘कम करने में सहायक’ हो। तदुपरांत ‘भारतीय विदेश विभाग’ नामक इस विभाग ने ब्रिटिश हितों की रक्षा हेतु, जहां आवश्यक ‘हुआ’ राजनयिक प्रतिनिधित्व का विस्तार किया। 1843 में गवर्नर जनरल एलनबारो ने प्रशासनिक सुधार किया जिसके तहत सरकार के सचिवालय को चार विभागों विदेश, गृह, वित्त और सैन्य में व्यवस्थित किया गया। प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष, सचिव स्तर का अधिकारी था। विदेश विभाग के सचिव को ‘सरकार के विदेशी और आंतरिक राजनयिक संबंधों के बारे में हर प्रकार का पत्राचार करने’ का कार्य सौंपा गया था। | ||
08:22, 26 अप्रैल 2014 का अवतरण
विदेश मंत्रालय मुख्यतः साउथ ब्लॉक में अवस्थित है जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय और रक्षा मंत्रालय भी है। विदेश मंत्रालय के कुछ कार्यालय अकबर भवन, शास्त्री भवन, पटियाला हाउस तथा आई एस आई एल भवन में भी स्थित है।
जवाहरलाल नेहरू भवन
गौरवपूर्ण लाल बलुआ पत्थर तथा धौलपुर पत्थर के कारीगरी से निर्मित, जवाहरलाल नेहरू भवन, विदेश मंत्रालय का नया आवास है, जिसका निर्मित क्षेत्र 60,000 वर्ग मीटर है और नई दिल्ली के जनपथ तथा मौलाना आज़ाद चौराहे पर, दक्षिण खण्ड से मात्र कुछ ही दूरी पर, शीघ्र ही निर्मित हो रहा है। इसमें हरित विशेषतापूर्ण मेजबान का समायोजन होगा, यह भारत में प्रथम सरकारी भवन होगा, जिसमें 100% डिजिटल प्रावधान होगा और 10 जीबी डाटा हस्तानांतरण की सुविधा के लिए, तैयार ढाँचागत संरचना उपलब्ध होगी। एक्स पी मण्डल भी इसी भवन में होगा और संचार माध्यमों को विज्ञप्ति सार उपलब्ध कराने के लिए, आधुनिकतम् सुविधायें प्रदान करेगा।
भारतीय विदेश सेवा
भारतीय विदेश सेवा की बुनियाद, ब्रिटिश शासन के दौरान उस समय रखी गई जब ‘विदेशी यूरोपीय शक्तियों’ के साथ कार्य संचालन के लिए विदेश विभाग का सृजन किया गया था। वस्तुत: 13 सितंबर, 1783 को ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल ने फोर्ट विलियम, कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक ऐसे विभाग के सृजन हेतु संकल्प पारित किया जो वारेन हेस्टिंग्स प्रशासन पर अपने ‘गुप्त और राजनैतिक कार्य संचालन’ पर पड़ रहे दबाव को ‘कम करने में सहायक’ हो। तदुपरांत ‘भारतीय विदेश विभाग’ नामक इस विभाग ने ब्रिटिश हितों की रक्षा हेतु, जहां आवश्यक ‘हुआ’ राजनयिक प्रतिनिधित्व का विस्तार किया। 1843 में गवर्नर जनरल एलनबारो ने प्रशासनिक सुधार किया जिसके तहत सरकार के सचिवालय को चार विभागों विदेश, गृह, वित्त और सैन्य में व्यवस्थित किया गया। प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष, सचिव स्तर का अधिकारी था। विदेश विभाग के सचिव को ‘सरकार के विदेशी और आंतरिक राजनयिक संबंधों के बारे में हर प्रकार का पत्राचार करने’ का कार्य सौंपा गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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