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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[भीमसेन जोशी|पण्डित भीमसेन जोशी]] हैं?
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| - [[बाँसुरी]] वादक
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| - [[ओडिसी नृत्य|ओडिसी नर्तक]]
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| + शास्त्रीय गायक
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| - [[सितार]] वादक
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| ||[[चित्र:Bhimsen-Joshi-2.jpg|right|100px|भीमसेन जोशी]][[भारत रत्न]] सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी (जन्म-[[14 फ़रवरी]], [[1922]], गड़ग, [[कर्नाटक]]; मृत्यु- [[24 जनवरी]], [[2011]] [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]]) [[किराना घराना|किराना घराने]] के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक हैं। उन्होंने 19 साल की उम्र से ही गायन शुरू किया था और वह सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। [[भीमसेन जोशी]] ने [[कर्नाटक]] को गौरवान्वित किया है। भारतीय [[संगीत]] के क्षेत्र में इससे पहले [[एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी]], [[बिस्मिल्ला ख़ान|उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान]], [[रवि शंकर|पंडित रविशंकर]] और [[लता मंगेशकर]] को '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित किया जा चुका है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीमसेन जोशी]]
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| {गायन की [[ध्रुपद]] शैली का आरम्भ किसने किया था?
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| - [[अमीर खुसरो]]
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| + मानसिंह तोमर
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| - [[तानसेन]]
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| - [[विष्णु दिगम्बर पलुस्कर]]
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| ||अभी तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि [[ध्रुपद]] का अविष्कार कब और किसने किया था। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। बहुसंख्य विद्वानों के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की थी। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया था। [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागर, नायक बैजू और गोपाल जैसे प्रख्यात गायक ही इसे गाया करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुपद]]
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| {[[बेगम अख़्तर]] [[कला]] की किस विधा से सम्बन्धित हैं?
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| - [[नृत्य कला|नृत्य]]
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| - [[चित्रकला]]
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| + गायन
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| - लोककला
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| ||[[चित्र:Begum-akhtar.jpg|right|100px|बेगम अख़्तर]] बेगम अख़्तर [[भारत]] की प्रसिद्ध ग़ज़ल और ठुमरी गायिका थीं जिन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन [[1968]] में [[पद्म श्री]] और सन [[1975]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। बेगम अख़्तर को मल्लिका-ए-ग़ज़ल भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बेगम अख़्तर]]
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| {[[तानसेन]], [[स्वामी हरिदास जी|स्वामी हरिदास]] तथा [[बैजू बावरा]] [[हिन्दुस्तानी संगीत]] शैली के किस रूप से सम्बद्ध थे?
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| - तराना
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| - [[धमार]]
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| + [[ध्रुपद]]
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| - तिल्लाना
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| ||आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि [[ध्रुपद]] का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। बहुसंख्य विद्वानों के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया। [[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागर, नायक बैजू और गोपाल आदि प्रख्यात गायक ही इसे गाते थे। ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और [[फेफड़ा|फेफड़े]] पर बल पड़ता है। इसलिये लोग इसे 'मर्दाना गीत' कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुपद]]
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| {'कर्नाटक संगीत का पितामह' किसे कहा जाता है?
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| - [[त्यागराज]]
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| + पुरन्दर दास
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| - स्वाति तिरुपाल
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| - मुत्तुस्वामी दीक्षितर
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| {[[शास्त्रीय संगीत]] का प्रारम्भिक स्रोत कौन-सा [[वेद]] है? | | {[[शास्त्रीय संगीत]] का प्रारम्भिक स्रोत कौन-सा [[वेद]] है? |
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