"गति": अवतरणों में अंतर
('कुछ वस्तुओं में समय के साथ–साथ उनकी स्थिति में परिव...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
मुख्यतः गति को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- | मुख्यतः गति को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- | ||
====स्थानान्तरीय गति==== | ====स्थानान्तरीय गति==== | ||
जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गति करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति भी कहा जाता है। जैसे सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी। स्थानान्तरीय गति में मूल बिंदु से दायीं ओर की दूरी को धनात्मक और बायीं ओर की दूरी को ऋणात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है। | जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गति करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति भी कहा जाता है। जैसे सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी। स्थानान्तरीय गति में मूल बिंदु से दायीं ओर की [[दूरी]] को धनात्मक और बायीं ओर की दूरी को ऋणात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है। | ||
====घूर्णन गति==== | ====घूर्णन गति==== | ||
जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं। जैसे [[पृथ्वी]] का अपने अक्ष पर घूमाना। | जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं। जैसे [[पृथ्वी]] का अपने अक्ष पर घूमाना। |
12:16, 8 अगस्त 2010 का अवतरण
कुछ वस्तुओं में समय के साथ–साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन होता है, जबकि कुछ अपने स्थान पर ही स्थित रहती हैं। उदाहरण स्वरूप हमारे सामने से जाती रेलगाड़ी, मोटर आदि की स्थिति में समय के साथ परिवर्तन होता है। जबकि मेज पर पड़ी किताब आदि में परिवर्तन नहीं होता है। इससे पता चलता है कि हमारे चारों ओर स्थित वस्तुएँ या तो स्थिर हैं या गतिमान हैं। परन्तु वस्तु की यह स्थिरता अथवा गति हमारे सापेक्ष है, क्योंकि हो सकता है कि जो वस्तुएँ हमें गति में दिखाई देती हैं, किसी और दृष्टा की दृष्टि से वह स्थिर हों। जैसे हमारे सामने से रेलगाड़ी जा रही है तो हमारी अपेक्षा से रेलगाड़ी की स्थिति में समय के साथ परिवर्तन होता है, इसीलिए हम कहते हैं कि रेलगाड़ी गति में है, परन्तु उसमें बैठे यात्री की अपेक्षा से गाड़ी की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अतः उस यात्री की अपेक्षा रेल स्थिर है। अतः स्थिरता अथवा गति की अवस्थाओं का वर्णन सापेक्ष होता है।
गति के प्रकार
मुख्यतः गति को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
स्थानान्तरीय गति
जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गति करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति भी कहा जाता है। जैसे सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी। स्थानान्तरीय गति में मूल बिंदु से दायीं ओर की दूरी को धनात्मक और बायीं ओर की दूरी को ऋणात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है।
घूर्णन गति
जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं। जैसे पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमाना।
कम्पनीय गति
जब कोई किसी निश्चित बिन्दु के इधर–उधर गति करती है तो उसे कम्पनीय गति कहते हैं। जैसे घड़ी की लोलक का अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन करना।
|
|
|
|
|