"प्रियप्रवास तृतीय सर्ग": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "८" to "8") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "९" to "9") |
||
पंक्ति 59: | पंक्ति 59: | ||
शयन – सूचक श्वास - समूह को। | शयन – सूचक श्वास - समूह को। | ||
झलमलाहट – हीन – शिखा लिए। | झलमलाहट – हीन – शिखा लिए। | ||
परम – निद्रित सा गृह – दीप | परम – निद्रित सा गृह – दीप था॥9॥ | ||
भनक थी निशि-गर्भ तिरोहिता। | भनक थी निशि-गर्भ तिरोहिता। | ||
तम – निमज्जित आहट थी हुई। | तम – निमज्जित आहट थी हुई। | ||
पंक्ति 99: | पंक्ति 99: | ||
कर रही अति - भैरव - हास थी। | कर रही अति - भैरव - हास थी। | ||
विपुल – अस्थि - समूह विभीषिका। | विपुल – अस्थि - समूह विभीषिका। | ||
भर रही भय थी बन | भर रही भय थी बन भैरवी॥19॥ | ||
इस भयंकर - घोर - निशीथ में। | इस भयंकर - घोर - निशीथ में। | ||
विकलता अति – कातरता - मयी। | विकलता अति – कातरता - मयी। | ||
पंक्ति 139: | पंक्ति 139: | ||
भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | ||
विपुल – व्याकुल वे इस काल थीं। | विपुल – व्याकुल वे इस काल थीं। | ||
जटिलता – वश कौशल – जाल | जटिलता – वश कौशल – जाल की॥29॥ | ||
परम चिंतित वे बनती कभी। | परम चिंतित वे बनती कभी। | ||
सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | ||
पंक्ति 179: | पंक्ति 179: | ||
कलपते कुल का यक चिन्ह है। | कलपते कुल का यक चिन्ह है। | ||
पर प्रभो! उसके प्रतिकूल भी। | पर प्रभो! उसके प्रतिकूल भी। | ||
अति – प्रचंड समीरण है | अति – प्रचंड समीरण है उठा॥39॥ | ||
यदि हुई न कृपा पद - कंज की। | यदि हुई न कृपा पद - कंज की। | ||
टल नहीं सकती यह आपदा। | टल नहीं सकती यह आपदा। | ||
पंक्ति 225: | पंक्ति 225: | ||
जगत की जननी भव–वल्लभे। | जगत की जननी भव–वल्लभे। | ||
जननि के जिय की सकला व्यथा। | जननि के जिय की सकला व्यथा। | ||
जननि ही जिय है कुछ | जननि ही जिय है कुछ जानता॥49॥ | ||
अवनि में ललना जन जन्म को। | अवनि में ललना जन जन्म को। | ||
विफल है करती अनपत्यता। | विफल है करती अनपत्यता। | ||
पंक्ति 265: | पंक्ति 265: | ||
जननि! जो अब कौशल है हुआ। | जननि! जो अब कौशल है हुआ। | ||
सह नहीं सकता उसको कभी। | सह नहीं सकता उसको कभी। | ||
पवि विनिर्मित मानव-प्राण | पवि विनिर्मित मानव-प्राण भी॥59॥ | ||
कुबलया सम मत्त – गजेन्द्र से। | कुबलया सम मत्त – गजेन्द्र से। | ||
भिड़ नहीं सकते दनुजात भी। | भिड़ नहीं सकते दनुजात भी। |
12:07, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
| ||||||||||||||||||||||||
|
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख