"गुरुकुल जीवन": अवतरणों में अंतर
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*यह शिक्षा गुरुकुलों में जाकर प्राप्त की जाती थी, जहाँ वेदादि शास्त्रों के अतिरिक्त क्षत्रिय शस्त्रास्त्र विद्या और वैश्य कारीगरी, पशुपालन एवं कृषि का कार्य भी सीखता था। | *यह शिक्षा गुरुकुलों में जाकर प्राप्त की जाती थी, जहाँ वेदादि शास्त्रों के अतिरिक्त क्षत्रिय शस्त्रास्त्र विद्या और वैश्य कारीगरी, पशुपालन एवं कृषि का कार्य भी सीखता था। | ||
*गुरुकुल की सेवा, भिक्षाटन पर जीविका, गुरु के पशुओं को चराना, कृषिकर्म करना, समिधा जुटाना आदि कर्म करने के | *गुरुकुल की सेवा, भिक्षाटन पर जीविका, गुरु के पशुओं को चराना, कृषिकर्म करना, समिधा जुटाना आदि कर्म करने के पश्चात् अध्ययन में मन लगाना पड़ता था। | ||
*धनी, निर्धन सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार का जीवन होता था। | *धनी, निर्धन सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार का जीवन होता था। | ||
*इस तपस्थलों से निकलने पर स्नातक समाज का सम्माननीय सदस्य के रूप में आदृत होता एवं [[विवाह संस्कार|विवाह]] कर गृहस्थ आश्रम का अधिकारी बनता था। | *इस तपस्थलों से निकलने पर स्नातक समाज का सम्माननीय सदस्य के रूप में आदृत होता एवं [[विवाह संस्कार|विवाह]] कर गृहस्थ आश्रम का अधिकारी बनता था। |
07:47, 23 जून 2017 का अवतरण
- द्विय या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों को जीवन की पहली अवस्था में अच्छे गृहस्थजीवन की शिक्षा लेना अनिवार्य था।
- यह शिक्षा गुरुकुलों में जाकर प्राप्त की जाती थी, जहाँ वेदादि शास्त्रों के अतिरिक्त क्षत्रिय शस्त्रास्त्र विद्या और वैश्य कारीगरी, पशुपालन एवं कृषि का कार्य भी सीखता था।
- गुरुकुल की सेवा, भिक्षाटन पर जीविका, गुरु के पशुओं को चराना, कृषिकर्म करना, समिधा जुटाना आदि कर्म करने के पश्चात् अध्ययन में मन लगाना पड़ता था।
- धनी, निर्धन सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार का जीवन होता था।
- इस तपस्थलों से निकलने पर स्नातक समाज का सम्माननीय सदस्य के रूप में आदृत होता एवं विवाह कर गृहस्थ आश्रम का अधिकारी बनता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ