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*'वीरावल' या 'वेरावल' का प्राचीन नाम 'वेलाकूल' कहा जाता है। 'वेलाकूल' का अर्थ है- 'समुद्रतट'।
*'वीरावल' या 'वेरावल' का प्राचीन नाम 'वेलाकूल' कहा जाता है। 'वेलाकूल' का अर्थ है- 'समुद्रतट'।
*प्राचीन [[सोमनाथ मंदिर]] के [[खंडहर]] यहाँ समुद्र तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित हैं।
*प्राचीन [[सोमनाथ मंदिर]] के [[खंडहर]] यहाँ समुद्र तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित हैं।
*इस स्थान के निकट युद्ध में आहत [[ग़ज़नी]] के सैनिकों की सैकड़ों कब्रें दिखाई पड़ती हैं, जिससे जान पड़ता है कि ग़ज़नी की सेना को भी बहुत क्षति उठानी पड़ी थी और स्थानीय राजपूतों ने बड़ी वीरता से उसका सामना किया था।
*इस स्थान के निकट युद्ध में आहत [[ग़ज़नी]] के सैनिकों की सैकड़ों क़ब्रें दिखाई पड़ती हैं, जिससे जान पड़ता है कि ग़ज़नी की सेना को भी बहुत क्षति उठानी पड़ी थी और स्थानीय राजपूतों ने बड़ी वीरता से उसका सामना किया था।
*सोमनाथ का अपेक्षाकृत नया मंदिर, जो पुराने के समीप है, अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था।
*सोमनाथ का अपेक्षाकृत नया मंदिर, जो पुराने के समीप है, अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था।
*वीरावल के पास ही 'प्रभास' क्षेत्र है, जिसे भगवान कृष्ण का देहोत्सर्ग स्थल माना जाता है।
*वीरावल के पास ही 'प्रभास' क्षेत्र है, जिसे भगवान कृष्ण का देहोत्सर्ग स्थल माना जाता है।

12:01, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

वीरावल काठियावाड़, गुजरात का बंदरगाह और शहर है। यह छोटा-सा बंदरगाह वहीं स्थान है, जहाँ भारतीय इतिहास का प्रसिद्ध 'सोमनाथ मंदिर' स्थित था। इस मंदिर को 1024 ई. में महमूद ग़ज़नवी ने लूटा तथा इसे काफ़ी नुकसान पहुँचाया था।[1]

  • 'वीरावल' या 'वेरावल' का प्राचीन नाम 'वेलाकूल' कहा जाता है। 'वेलाकूल' का अर्थ है- 'समुद्रतट'।
  • प्राचीन सोमनाथ मंदिर के खंडहर यहाँ समुद्र तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित हैं।
  • इस स्थान के निकट युद्ध में आहत ग़ज़नी के सैनिकों की सैकड़ों क़ब्रें दिखाई पड़ती हैं, जिससे जान पड़ता है कि ग़ज़नी की सेना को भी बहुत क्षति उठानी पड़ी थी और स्थानीय राजपूतों ने बड़ी वीरता से उसका सामना किया था।
  • सोमनाथ का अपेक्षाकृत नया मंदिर, जो पुराने के समीप है, अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था।
  • वीरावल के पास ही 'प्रभास' क्षेत्र है, जिसे भगवान कृष्ण का देहोत्सर्ग स्थल माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 867 |

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