"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 41-44": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  षष्ठ अध्याय: श्लोक 41-44 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  षष्ठ अध्याय: श्लोक 41-44 का हिन्दी अनुवाद </div>
नन्दबाबा के साथ आने वाले ब्रजवासियों की नाक में जब चिता के धुएँ की सुगन्ध पहुँची, तब ‘यह क्या है? कहाँ से ऐसी सुगन्ध आ रही है?’ इस प्रकार कहते हुए वे ब्रज में पहुँचे। वहाँ गोपों ने उन्हें पूतना के आने से लेकर, मरने तक का सारा वृतान्त कह सुनाया। वे लोग पूतना की मृत्यु और श्रीकृष्ण के कुशलपूर्वक बच जाने की बात सुनकर बड़े ही आश्चर्यचकित हुए। परीक्षित्! उदारशिरोमणि नन्दबाबा ने मृत्यु के मुख से बचे हुए अपने लाला को गोद में उठा लिया और बार-बार उसका सर सूँघकर मन-ही-मन बहुत आनन्दित हुए।  
नन्दबाबा के साथ आने वाले ब्रजवासियों की नाक में जब चिता के धुएँ की सुगन्ध पहुँची, तब ‘यह क्या है? कहाँ से ऐसी सुगन्ध आ रही है?’ इस प्रकार कहते हुए वे ब्रज में पहुँचे। वहाँ गोपों ने उन्हें पूतना के आने से लेकर, मरने तक का सारा वृत्तांत कह सुनाया। वे लोग पूतना की मृत्यु और श्रीकृष्ण के कुशलपूर्वक बच जाने की बात सुनकर बड़े ही आश्चर्यचकित हुए। परीक्षित्! उदारशिरोमणि नन्दबाबा ने मृत्यु के मुख से बचे हुए अपने लाला को गोद में उठा लिया और बार-बार उसका सर सूँघकर मन-ही-मन बहुत आनन्दित हुए।  


यह ‘पूतना-मोक्ष’ भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला है। जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इसका श्रवण करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम प्राप्त होता है।
यह ‘पूतना-मोक्ष’ भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला है। जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इसका श्रवण करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम प्राप्त होता है।

13:04, 29 जून 2017 के समय का अवतरण

दशम स्कन्ध: षष्ठ अध्याय (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षष्ठ अध्याय: श्लोक 41-44 का हिन्दी अनुवाद

नन्दबाबा के साथ आने वाले ब्रजवासियों की नाक में जब चिता के धुएँ की सुगन्ध पहुँची, तब ‘यह क्या है? कहाँ से ऐसी सुगन्ध आ रही है?’ इस प्रकार कहते हुए वे ब्रज में पहुँचे। वहाँ गोपों ने उन्हें पूतना के आने से लेकर, मरने तक का सारा वृत्तांत कह सुनाया। वे लोग पूतना की मृत्यु और श्रीकृष्ण के कुशलपूर्वक बच जाने की बात सुनकर बड़े ही आश्चर्यचकित हुए। परीक्षित्! उदारशिरोमणि नन्दबाबा ने मृत्यु के मुख से बचे हुए अपने लाला को गोद में उठा लिया और बार-बार उसका सर सूँघकर मन-ही-मन बहुत आनन्दित हुए।

यह ‘पूतना-मोक्ष’ भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला है। जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इसका श्रवण करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम प्राप्त होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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