"साँचा:एक रचना": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
|-
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
<div style="padding:3px">[[चित्र:Sri-ramcharitmanas.jpg|right|100px|link=रामचरितमानस|border]]</div>
<div style="padding:3px">[[चित्र:Sri-ramcharitmanas.jpg|right|90px|link=रामचरितमानस|border]]</div>
<poem>
<poem>
'''[[रामचरितमानस]]''' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना [[संवत]] 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] (वाराणसी) में भी निर्मित हुआ था, यह इसके [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धा काण्ड]] के प्रारम्भ में आने वाले एक [[सोरठा|सोरठे]] से निकलती है, उसमें काशी सेवन का उल्लेख है। इसकी समाप्ति संवत 1633 ई. की [[मार्गशीर्ष]], [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] 5, [[रविवार]] को हुई थी किन्तु उक्त तिथि गणना से शुद्ध नहीं ठहरती, इसलिए विश्वसनीय नहीं कही जा सकती। यह रचना [[अवधी भाषा|अवधी बोली]] में लिखी गयी है। इसके मुख्य छन्द [[चौपाई]] और [[दोहा]] हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्राय: 8 या अधिक अर्द्धलियों के बाद दोहा होता है और इन दोहों के साथ [[कड़वक]] संख्या दी गयी है। </poem>
'''[[रामचरितमानस]]''' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना [[संवत]] 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] (वाराणसी) में भी निर्मित हुआ था, यह इसके [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धा काण्ड]] के प्रारम्भ में आने वाले एक [[सोरठा|सोरठे]] से निकलती है, उसमें काशी सेवन का उल्लेख है। इसकी समाप्ति संवत 1633 ई. की [[मार्गशीर्ष]], [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] 5, [[रविवार]] को हुई थी किन्तु उक्त तिथि गणना से शुद्ध नहीं ठहरती, इसलिए विश्वसनीय नहीं कही जा सकती। यह रचना [[अवधी भाषा|अवधी बोली]] में लिखी गयी है। इसके मुख्य छन्द [[चौपाई]] और [[दोहा]] हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्राय: 8 या अधिक अर्द्धलियों के बाद दोहा होता है और इन दोहों के साथ [[कड़वक]] संख्या दी गयी है। </poem>

13:21, 16 अक्टूबर 2015 का अवतरण

एक रचना

रामचरितमानस तुलसीदास की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना संवत 1631 ई. की रामनवमी को अयोध्या में प्रारम्भ हुई थी किन्तु इसका कुछ अंश काशी (वाराणसी) में भी निर्मित हुआ था, यह इसके किष्किन्धा काण्ड के प्रारम्भ में आने वाले एक सोरठे से निकलती है, उसमें काशी सेवन का उल्लेख है। इसकी समाप्ति संवत 1633 ई. की मार्गशीर्ष, शुक्ल 5, रविवार को हुई थी किन्तु उक्त तिथि गणना से शुद्ध नहीं ठहरती, इसलिए विश्वसनीय नहीं कही जा सकती। यह रचना अवधी बोली में लिखी गयी है। इसके मुख्य छन्द चौपाई और दोहा हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्राय: 8 या अधिक अर्द्धलियों के बाद दोहा होता है और इन दोहों के साथ कड़वक संख्या दी गयी है।

पिछले लेख वंदे मातरम् · पद्मावत