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||[[चित्र:Krishna-2.jpg|150px|right|श्रीकृष्ण]]जब [[महाभारत]] का युद्ध अनिवार्य हो गया, तब दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार हुई। [[कृष्ण]], [[धृष्टद्युम्न]] तथा [[सात्यकि]] ने [[पांडव]] सैना की ब्यूह-रचना की। [[कुरुक्षेत्र]] के प्रसिद्ध मैदान में दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सामने आ डटीं। महाभारत युद्ध में शंख का बहुत महत्त्व था। शंखनाद के साथ युद्ध प्रारंभ होता था। जिस प्रकार प्रत्येक रथी सेनानायक का अपना ध्वज होता था, उसी प्रकार प्रमुख योद्धाओं के पास अलग-अलग शंख भी होते थे। भीष्मपर्वांतर्गत गीता उपपर्व के प्रारंभ में विविध योद्धाओं के नाम दिए गए हैं। [[कृष्ण]] के शंख का नाम 'पंचजन्य' था, [[अर्जुन]] का 'देवदत्त', [[युधिष्ठिर]] का 'अनंतविजय', [[भीम]] का 'पौण्ड्र', [[नकुल]] का 'सुघोष' और [[सहदेव]] का 'मणिपुष्पक'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]
||[[चित्र:Krishna-2.jpg|100px|right|श्रीकृष्ण]]जब [[महाभारत]] का युद्ध अनिवार्य हो गया, तब दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार हुई। [[कृष्ण]], [[धृष्टद्युम्न]] तथा [[सात्यकि]] ने [[पांडव]] सैना की ब्यूह-रचना की। [[कुरुक्षेत्र]] के प्रसिद्ध मैदान में दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सामने आ डटीं। महाभारत युद्ध में शंख का बहुत महत्त्व था। शंखनाद के साथ युद्ध प्रारंभ होता था। जिस प्रकार प्रत्येक रथी सेनानायक का अपना ध्वज होता था, उसी प्रकार प्रमुख योद्धाओं के पास अलग-अलग शंख भी होते थे। भीष्मपर्वांतर्गत गीता उपपर्व के प्रारंभ में विविध योद्धाओं के नाम दिए गए हैं। [[कृष्ण]] के शंख का नाम 'पंचजन्य' था, [[अर्जुन]] का 'देवदत्त', [[युधिष्ठिर]] का 'अनंतविजय', [[भीम]] का 'पौण्ड्र', [[नकुल]] का 'सुघोष' और [[सहदेव]] का 'मणिपुष्पक'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]
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