"जाल परे जल जात बहि -रहीम": अवतरणों में अंतर
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जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।<br /> | जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।<br /> | ||
‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति | ‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥ | ||
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12:16, 4 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥
- अर्थ
धन्य है मीन की अनन्य भावना! सदा साथ रहने वाला जल मोह छोड़कर उससे विलग हो जाता है, फिर भी मछली अपने प्रिय का परित्याग नहीं करती, उससे बिछुड़कर तड़प-तड़पकर अपने प्राण दे देती है।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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