"कहा करौं वैकुण्ठ लै -रहीम": अवतरणों में अंतर

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[[वैकुण्ठ]] जाकर [[कल्पवृक्ष]] की छांहतले बैठने में रक्खा क्या है, यदि वहां प्रियतम पास न हो। उससे तो ढाक का पेड़ ही सुखदायक है, यदि उसकी छांह में प्रियतम के साथ गलबाँह देकर बैठने को मिले।  
[[वैकुण्ठ]] जाकर [[कल्पवृक्ष]] की छांहतले बैठने में रक्खा क्या है, यदि वहां प्रियतम पास न हो। उससे तो ढाक का पेड़ ही सुखदायक है, यदि उसकी छांह में प्रियतम के साथ गलबाँह देकर बैठने को मिले।  


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{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन प्रीति सराहिये -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जे सुलगे ते बुझ गए -रहीम}}
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13:00, 5 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

कहा करौं वैकुण्ठ लै, कल्पबृच्छ की छांह।
‘रहिमन’ ढाक सुहावनो, जो गल पीतम-बाँह॥

अर्थ

वैकुण्ठ जाकर कल्पवृक्ष की छांहतले बैठने में रक्खा क्या है, यदि वहां प्रियतम पास न हो। उससे तो ढाक का पेड़ ही सुखदायक है, यदि उसकी छांह में प्रियतम के साथ गलबाँह देकर बैठने को मिले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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